‘क़ैद में है बुलबुल’ - जबीन जलील
...........शिशिर कृष्ण शर्मा
(‘बीते हुए दिन’ के अभिन्न अंग श्री गजेन्द्र खन्ना द्वारा संचालित वेबसाईट www.anmolfankaar.com में सर्वप्रथम प्रकाशित|)
1950 और 60 के दशक के हिन्दी सिनेमा के प्रेमियों के लिए अभिनेत्री जबीन जलील का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। क़रीब 20 साल के अपने करियर के दौरान भले ही जबीन ने महज़ 23 हिन्दी और 4 पंजाबी फ़िल्मों में काम किया हो, लेकिन अपनी ख़ूबसूरती और दिलकश अभिनय के दम पर उस जमाने में उन्होंने लाखों लोगों को अपना दीवाना बनाया था। हिन्दी सिनेमा का स्वर्णकाल कहलाए जाने वाले उस दौर की चर्चित अभिनेत्री जबीन अब एक बार फिर से हिन्दी सिनेमा के क्षेत्र में प्रोडयूसर के रूप में सक्रिय हुई हैं।
जबीन का ताल्लुक बंगाल के एक बेहद ज़हीन और पढ़े-लिखे ख़ानदान से रहा है। उनके दादा सैयद मौलवी अहमद कोलकाता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने वाले पहले बंगाली मुस्लिम थे तो पिता सैयद अबू अहमद जलील अंग्रेज़ों के ज़माने के आई.सी.एस. अफ़सर। जबीन की अम्मी दिलारा जलील भी एक पढ़ी-लिखी और मुंशी फ़ाजिल की डिग्री हासिल कर चुकी महिला थीं जिनका ताल्लुक़ लाहौर के मशहूर फ़कीर ब्रदर्स के ख़ानदान से था।
ये तीनों भाई सैयद फ़कीर नूरुद्दीन, सैयद फ़कीर सईदुद्दीन और सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन महाराजा रणजीत सिंह के बेहद विश्वस्त मन्त्रियों में से थे। महाराजा रणजीत सिंह ने ही इन भाईयों को फ़कीर टाईटिल से नवाज़ा था और इनका नाम हिन्दुस्तान के इतिहास में भी दर्ज है। लाहौर का मशहूर फ़कीरखाना म्यूज़ियम भी इन्हीं तीन भाईयों के नाम पर है। सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में विदेश मंत्री थे। जबीन की अम्मी दिलारा बेगम इन्हीं सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन की पड़पोती थीं।जबीन का जन्म 1 अप्रैल 1937 को दिल्ली में हुआ था, लेकिन वो सिर्फ़ दो महिने की थीं जब उनके पिता का ट्रांसफर हुआ और वो माता-पिता के साथ जापान चली गयीं। चार साल जापान में गुज़ारने के बाद उनके पिता कण्ट्रोलर आफ टेक्सटाईल बनकर मुम्बई चले आए जहां नानाचौक-मुम्बई स्थित मशहूर क्वीन मेरी स्कूल में जबीन को दाख़िला दिलाया गया। स्कूली पढ़ाई क्वीन मेरी से पूरी करने के दौरान जबीन अपने स्कूल की हेडगर्ल भी रहीं। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने एल्फ़िन्स्टन कॉलेज में दाख़िला लिया।
जबीन बताती हैं, “पढ़ाई के साथ साथ मैं पूरे जोशोख़रोश के साथ कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेती थी। कॉलेज के एक नाटक ‘नेक-परवीन’ में मैं अहम रोल निभा रही थी, जिसमें उस ज़माने के जाने माने प्रोडयूसर-डायरेक्टर एस.एम.यूसुफ़ और उनकी पत्नी निगार सुल्ताना जज बनकर आए थे। उन्हें मेरा अभिनय इतना पसन्द आया कि यूसुफ़ साहब के हाथों मुझे सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार तो मिला ही, उन्होंने मुझे अपनी अगली फ़िल्म में हिरोईन का रोल भी ऑफ़र किया। फ़िल्मों से हमारे परिवार का सिर्फ़ इतना ही रिश्ता था कि प्रोडयूसर-डायरेक्टर और अभिनेता सोहराब मोदी मेरे पिता के अच्छे दोस्त थे। मेरे पिता साल 1949 में ही ग़ुज़र गए थे। बड़ी दोनों बहनें शादी के बाद पाकिस्तान चली गयी थीं। घर में सिर्फ़ अम्मी, मैं और मेरा छोटा भाई थे। यूसुफ़ साहब के इस ऑफ़र पर मेरे लिए ख़ुद कोई फ़ैसला ले पाना मुमकिन नहीं था इसलिए अगले ही दिन वो मेरे घर चले आए। उनके समझाने पर अम्मी ने थोड़ी ना-नुकुर के बाद आखिरकार मुझे फ़िल्म में काम करने की इजाज़त दे दी”।
साल 1954 में रिलीज हुई ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके हीरो करण दीवान थे। संगीत ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं। साल 1955 में उनकी दूसरी फ़िल्म ‘लुटेरा’ रिलीज़ हुई जिसमें उनके हीरो नासिर ख़ान थे। लेकिन सही मायनों में उन्हें पहचान मिली अपनी तीसरी फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ से जिसमें उन्होंने हीरो किशोर कुमार की बहन निक्की का रोल किया था। 1956 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में जबीन के हीरो की भूमिका अभिनेत्री नलिनी जयवन्त के पति प्रभुदयाल ने की थी। शंकर-जयकिशन के संगीत से सजी, प्रोडयूसर-डायरेक्टर मोहन सहगल की ये फ़िल्म उस दौर की सफलतम फ़िल्मों में से थी।
फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ की सफलता का जबीन को भरपूर फायदा मिला। 1950 के दशक के आख़िर में उनकी ‘चारमीनार’, ‘फ़ैशन’, ‘जीवनसाथी’, ‘हथकड़ी’, ‘पंचायत’, ‘रागिनी’, ‘बेदर्द ज़माना क्या जाने’ और ‘रात के राही’ जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुईं। ‘तुम और हम’ (फ़ैशन), ‘मदभरे ये प्यार की पलकें’ (फ़ैशन), ‘ता थैय्या करते आना’ (पंचायत), ‘इस दुनिया से निराला हूं’ (रागिनी), ‘पिया मैं हूं पतंग तू डोर’ (रागिनी), ‘क़ैद में है बुलबुल सय्याद मुस्कुराए’ (बेदर्द ज़माना क्या जाने), ‘दूर कहीं तू चल’ (बेदर्द ज़माना क्या जाने), ‘आ भी जा बेवफा’ (रात के राही), ‘तू क्या समझे तू क्या जाने’ (रात के राही) और ‘एक नज़र एक अदा’ (रात के राही) जैसे उन पर फ़िल्माए गए कई गीत भी उस दौर में बेहद मशहूर हुए थे।
1960 के दशक में जबीन ने ‘बंटवारा’, ‘खिलाड़ी’, ‘सच्चे मोती’, ‘ताजमहल’ और ‘राजू’ जैसी कुछ फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म ‘ताजमहल’ में लाडली बानो का उनका किरदार बेहद सराहा गया था। फ़िल्म ‘बंटवारा’ का जवाहर कौल और जबीन पर पिक्चराईज हुआ गीत ‘ये रात ये फिजाएं फिर आएं या न आएं’ तो आज भी संगीतप्रेमियों के बीच उतना ही लोकप्रिय है। उसी दौरान उन्हें साल 1962 में बनी पंजाबी फ़िल्म ‘चौधरी करनैल सिंह’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नेशनल अवार्ड भी मिला जिसमें उनके हीरो प्रेम चोपड़ा थे। ‘चौधरी करनैल सिंह’ प्रेम चोपड़ा की पहली फ़िल्म थी। इसके बाद जबीन ने तीन और पंजाबी फ़िल्मों ‘कदी धूप कदी छांव’, ‘ऐ धरती पंजाब दी’ और ‘गीत बहारां दे’ में काम किया।
साल 1968 में जबीन की शादी हुई। जोधपुर के रहने वाले कश्मीरी मूल के उनके पति अशोक काक कोडक कम्पनी के प्रेसिडेण्ट थे और उस दौर में देश के सबसे कम उम्र के सी.ई.ओ. थे। पिलानी से एम.बी.ए. पास अशोक भी बेहद पढ़े-लिखे ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे और वो जबीन के छोटे भाई असजद जलील के दोस्त थे। जबीन कहती हैं, ‘मैं सैयद मुस्लिम थी और अशोक कश्मीरी पण्डित। लेकिन हम दोनों ही के परिवारों का माहौल इतना खुला हुआ था कि धर्म कहीं भी हमारी शादी में आड़े नहीं आया। शादी के बाद मैंने अपना पूरा ध्यान गृहस्थी सम्भालने में लगा दिया। शादी के बाद मैंने सिर्फ़ एक फ़िल्म की और वो थी ‘वचन’ जो 1974 में रिलीज़ हुई थी।
फ़िल्मों से अलग होने के बाद जबीन सामाजिक कार्यों में भी व्यस्त हो गयी थीं। बेटा स्कूल जाने लगा तो उन्होंने उसके कैथेड्रल स्कूल की पी.टी.ए. के चेयरपर्सन की कुर्सी सम्भाल ली। उनकी दोनों बड़ी बहनें पाकिस्तान में और छोटा भाई अमेरिका में सेटल हो चुके थे। भारत में उनका कोई भी रिश्तेदार नहीं था इसलिए बेटे की पढ़ाई और अच्छे भविष्य के लिए जबीन ने भी अमेरिका में सेटल हो जाना बेहतर समझा। पति और बेटे के साथ शुरु से ही उनका अमेरिका जाना-आना लगा रहता था इसलिए ग्रीन कार्ड मिलने में भी कोई मुश्किल नहीं हुई। आख़िरकार साल 1989 में वो परिवार सहित अमेरिका चली गयीं।
जबीन और उनके परिवार ने क़रीब 10 साल अमेरिका में गुज़ारे। उनकी सास और मां दोनों ही अमेरिका में उनके साथ रहती थीं। जबीन की मां गुजरीं तो बेटा दिविज जो अपनी नानी के बेहद क़रीब था डिप्रेशन में चला गया। नतीजन डाक्टर्स की सलाह पर जबीन को साल 1998 में वापस मुम्बई आना पड़ा क्योंकि डाक्टरों का कहना था कि जल्द रिकवरी के लिए दिविज का वापस उस माहौल में जाना ज़रुरी था जिसमें उसका बचपन गुज़रा था। दिविज को डाक्टरों की इस सलाह का फ़ायदा भी हुआ और मुम्बई आकर उनकी तबीयत में पूरी तरह से ठीक हो गयी।
अशोक काक साल 2002 में भारत लौटे। जाने माने उधोगपति के.के.बिडला उनकी प्रबन्धन क्षमता से पहले ही से परिचित थे इसलिए उन्होंने अशोक काक से अपनी सबसे पुरानी कम्पनियों में से एक, कोलकाता स्थित घाटे में चल रही इंडिया स्टीमशिप कम्पनी के हालात सुधारने का आग्रह किया। अशोक ने तीन साल के काण्ट्रेक्ट के दौरान न सिर्फ़ कम्पनी को घाटे से उबारा, बल्कि उसे लाभ की स्थिति में भी ला खड़ा किया। वो तीन साल जबीन ने कोलकाता में गुज़ारे और फिर पति और बेटे के साथ वापस मुम्बई लौट आयीं। फ़िल्म ‘वचन’ के क़रीब 30 साल बाद 2004-05 में जबीन ने दूरदर्शन धारावाहिक ‘हवाएं’ में अभिनय किया।
अब जबीन मुम्बई के वर्ली इलाक़े में अपने पति और बेटे के साथ रहती हैं। उनकी बुज़ुर्ग सास भी उन्हीं के साथ रहती थीं जिनका 101 साल की उम्र में 24 जून 2013 को निधन हुआ। जबीन के पति विक्रोली की एक कंपनी में सर्वोच्च पद पर हैं और बेटे दिविज काक ने अपनी मां के नक्शे कदम पर चलते हुए अभिनय को पेशे के तौर पर चुना है। ज़िंदगी के दस साल अमेरिका में गुज़ारने के बावजूद हिन्दी और उर्दू पर दिविज की पकड़ अचम्भित कर देने वाली है। साल 2005 में दिविज की बतौर हीरो पहली फ़िल्म ‘साथी’ रिलीज़ हुई थी जिसके निर्देशक फ़ैज़ अनवर थे। दिविज की दूसरी फ़िल्म ‘पहली नज़र का प्यार’ रिलीज़ के लिए तैयार है। ‘जबीन इण्टरनेशनल’ के बैनर में बनी इस फ़िल्म से जबीन बतौर प्रोडयूसर एक बार फिर से हिन्दी सिनेमा के मैदान में उतरने जा रही हैं।
जबीन कहती हैं, “करियर के दौरान अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि, पालन-पोषण और संस्कारों की वजह से मैं हमेशा ख़ुद को इण्डस्ट्री के माहौल में अनुपयुक्त महसूस करती रही। लेकिन उस दौरान हुए अनुभवों का फ़ायदा मेरे बेटे को मिलेगा इसमें कोई शक़ नहीं है। जहां तक सवाल है उस दौर की यादों का तो मेरे ज़हन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे याद करके ख़ुशी मिले। और तक़लीफ़देह बातों को भूल जाना ही बेहतर है”। लेकिन जबीन गुज़रे ज़माने की मशहूर अभिनेत्री शकीला के गुणगान करते नहीं थकतीं जिन्होंने जबीन को मुम्बई में एक बार फिर से जड़ें जमाने में निस्वार्थ भाव से हर तरह से मदद की।
We
are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Jabeen Jalil on YT Channel BHD
“Qaid Me Hai Bulbul” – Jabeen Jalil
……..Shishir Krishna Sharma
(First
published in www.anmolfankaar.com founded
by Mr.Gajendra Khanna, an integral part of the blog ‘Beete Hue Din’.)
Actress Jabeen Jaleel's name is well known to fans of hindi cinema of the 1950s and 60s. Although She acted in merely 23 Hindi and 4 Punjabi films in her almost 20-year career, she made millions of fans of her beauty and wonderful acting. This popular actress of the Golden Period of Hindi cinema is once again active in the field in the form of a producer.
Jabeen belongs to an illustrious and well-educated family of Bengal. On one hand, her paternal grandfather Sayyad Maulvi Ahmed was the first Bengali Muslim to get the graduation degree from Kolkata University and on the other her father Sayyad Abu Ahmed Jaleel was an I.C.S. officer during the British period.
Jabeen's mother Dilaara Jaleel was also a well-educated lady who had got Munshi Faazil's degree. She hailed from Lahore's famous Faqeer brothers’ family. These three brothers Sayyad Faqeer Nooruddin, Sayyad faqeer Saeeduddin and Sayyad Faqeer Azizuddin were much respected ministers in the court of Maharaja Ranjeet Singh. It was maharaja Ranjeet Singh who had bestowed them with the title of Faqeer and their name is a part of Indian History. Lahore's famous Faqeerkhana Museum is named after them. Sayyad Faqeer Azizuddin was the Foreign minister in the Maharaja's court. Jabeen's mother Dilaara Begum was his great granddaughter.
Jabeen was born on 1st April 1937 in Delhi and was merely two years old when her family shifted to Japan due to her father's transfer. After staying in Japan for four years, her father moved to Mumbai on his appointment as The Controller of Textiles. Jabeen joined the famous Queen Mary School situated at Nana Chowk, Mumbai. During her education there she also served as the school's Head Girl. For further studies she took admission in the Elphinston College.
Jabeen recalls, "I used to participate in the college's cultural programs with great vigor and enthusiasm. I once played a major role in the play ‘Nek Parveen’ whose judges were famous producer-director S.M. Yusuf and his actress-wife Nigar Sultana. They both liked my performance so much that not only did I get the Best Actress award but they offered me the heroine's role in their next movie. Our family's only filmy connection was that actor-producer-director Sohrab Modi was my father's good friend. My father had passed away in 1949 itself. My two elder sisters had migrated to Pakistan after their marriages. My home consisted of just my mother, myself and my younger brother. It was difficult for me to take a decision on the offer independently, hence Yusuf sahib came to my home the following day itself. On his persuasion, my mother gave me the permission to work in the film, albeit after some resistance."
Jabeen's first film ‘Guzaara’ released in 1954 where her hero was Karan Dewan. Music of the film was composed by Ghulam Mohammad. Although the film was not very successful but Jabeen managed to attract people's attention towards herself. Her second film ‘Lutera’ released in 1955 where her hero was Nasir Khan. She however got true recognition with her third film ‘New Delhi’ where she played the role of Kishore Kumar's sister Nikki. This 1956 release had veteran actor Prabhu Dayal, who was actress Nalini Jaywant's husband, cast opposite her. Shankar Jaikishan had composed the music for this producer-director Mohan Sehgal's film and was a successful movie of its time.
She got benefitted by the success of ‘New Delhi’. Towards the end of the decade, many films starring her released, including ‘Char Minar’, ‘Fashion’, ‘Jeevan Sathi’, ‘Hathkadi’, ‘Panchayat’, ‘Raagini’, ‘Bedard Zamana Kya Jaane’ and ‘Raat ke Raahi’. Many songs picturised on her were extremely popular including ‘Tum Aur Hum’ (Fashion), ‘Madbhari Yeh Pyaar Ki Palken’ (Fashion), ‘Ta Thaiyya Karte Aana’ (Panchayat), ‘Piya mai hoon patang tu dor’ (Raagini), ‘Qaid mein Hai Bulbul Sayyad Muskuraye’ (Bedard Zamana Kya Jaane), ‘Door Kahin Tu Chal’ (Bedard Zamana Kya Jaane), ‘Aa Bhi Ja Bewafa’ (Raat Ke Rahi), ‘Tu Kya Samjhe Tu Kya Jaane’ (Raat Ke Rahi) and ‘Ek Nazar Ek Ada’ (Raat Ke Rahi).
In the 1960’s, Jabeen acted in films like ‘Batwara’, ‘Khiladi’, ‘Sachche Moti’, ‘Taj Mahal’ and ‘Raju’. Her portrayal of ‘Laadli Bano’ in ‘Taj Mahal’ was quite appreciated. The ‘Batwara’ song, ‘Yeh Raat Yeh Fizaayen Phir Aayen Na Aayen’ picturised on her and Jawahar Kaul is popular to this day. She also got the National Award for the 1962 Punjabi film ‘Chaudhary Karnail Singh’ in which her hero was Prem Chopra which was incidentally his debut movie. Jabeen acted in three other Punjabi movies ‘Kadi Dhoop Kadi Chhaon’, ‘Aye Dharti Punjab Di’ and ‘Geet Baharaan De’.
Jabeen got married in the year 1968. Her Husband Ashok Kak was of Kashmiri Origin and hailed from Jodhpur. He was the President of the Kodak Company and was the youngest CEO of that time. He had completed his MBA from Pilani and belonged to an extremely educated family. He was a friend of Jabeen's younger brother Asjed Jaleel. Jabeen says, "I am a Sayyad Muslim while Ashok is a Kashmiri Pandit. However, both our families were so liberal that religion did not play any role in our marriage. After marriage I acted in only one film Vachan which released in 1974."
After moving away from films Jabeen was active in social work also. When her son started attending renowned Cathedral school, she became the Chairperson of school's Parent Teacher Association. While her elder sisters were settled in Pakistan, her younger brother had settled in America. They no longer had any relatives in India. Keeping in view their son's education and better future the family decided to settle in America. Due to the family's regular visits to America, getting a green card was just a matter of time. The family moved to America in 1989.
Jabeen and her family stayed in America for nearly ten years. Her mother and mother-in-law used to stay with them. When Jabeen's mother passed away, her son Divvij who was extremely close to his maternal grandmother went into depression. The doctors suggested that for quick recovery Divvij should move back to the environment where he grew up. On their advice, they moved back to Mumbai in 1998 and Divvij recovered quickly.
Mr. Ashok Kak returned to India in 2002. Well known industrialist K.K. Birla was familiar with his management capabilities. Hence, he requested Ashok to help improve the financial condition of their loss making, Kolkata-based India Steamship Company which was one of the oldest companies of the group. During his three year contract, Ashok not only recovered the losses but made the company profitable as well. During the three years the family stayed in Kolkata and then returned to Mumbai. During this period, Jabeen also acted in the TV serial Hawaayen which was telecasted on DD-1 in 2004-05, nearly 30 years after her last release Vachan(1974).
Jabeen now lives in Mumbai’s Worli area with her husband and son. Her elderly mother-in-law also stayed with them who passed away at the age of 101 years on 24th June 2013. Her Husband is the top executive of a company situated in Vikroli. Her son has taken up the acting profession following in her footsteps. Inspite of spending ten years in America, Divvij has an amazing command over Hindi and Urdu. His first release ‘Saathi’ in 2005 was directed by Faiz Anwar. His second movie ‘Pehli Nazar Ka Pyar’ is ready for release. The film sees Jabeen return to Hindi Cinema as a producer under her banner ‘Jabeen International’. Jabeen says, "During my career, due to my family background, upbringing and values, I always found myself bit of a misfit in the industry. But my son will without doubt get benefited from my experience. As far as my memories of the period are concerned, I don't recall anything which gives me great happiness and its better to forget many of the painful incidents of the time. I however cannot forget the help of famous actress Shakeela who helped me selflessly in settling in Mumbai again. She is really a gem of a person whom I am glad to have as a friend."
The artist in Yeh Raat Yeh Fizaayein of Batwara is either the same or identical twin of one in Ae Dilruba Nazarein Mila of Rustom Sohrab, so if the former is Jabeen Jalil, why does her filmography omit the latter film? The appearance may be short but it is a very memorable one in a superlative one of a kind film, with much to recommend it to true quality film connoisseurs.
ReplyDeleteI hv an original post card of her first film Guzara..... How can I add it to ur blog?
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=YwqyDQu9s_M
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=52q7TErQBj4
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=R1M0Yxk8fTY
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=NjVY_XW9zqs
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी
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