“सब्ज़े की दुर्फ़िशानी, फूलों का शामियाना” - रामकृष्ण शिंदे
.........शिशिर कृष्ण शर्मा
हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसे बहुत से गुणी संगीतकारों के नाम मौजूद हैं जिन्होंने मौक़ा मिलते ही बेहद मधुर धुनें रचीं लेकिन तमाम काबिलियत और संगीत का भरपूर ज्ञान होने के बावजूद सिनेजगत में उन्हें वो जगह नहीं मिल पायी जिसके वो हक़दार थे। इसकी एकमात्र वजह यही है कि उनमें इस चकाचौंध भरी दुनिया में ख़ुद को बनाए रखने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी, ख़ुद को बेच पाने का गुण नहीं था। ऐसे ही संगीतकारों में शामिल है नाम रामकृष्ण शिंदे का, जिन्होंने साल 1947
में बनी फ़िल्म “मैनेजर” से अपने करियर की शुरूआत की थी।
रामकृष्ण शिंदे का निधन हुए तो क़रीब छब्बीस बरस गुज़र चुके हैं लेकिन उनकी पत्नी और दोनों बेटियां आज भी मुम्बई में ही रहती हैं। फ़िल्मी दुनिया से इस परिवार का नाता न तो कभी पूरी तरह से जुड़ा था और न ही कभी इन्होंने उसे जोड़ने की कोशिश की। जो थोड़ा बहुत नाता ख़ुद-ब-ख़ुद जुड़ा भी था, वो भी रामकृष्ण शिंदे के निधन के बाद पूरी तरह से टूट गया।
पश्चिमी महाराष्ट्र के मालवण इलाक़े के एक मराठा परिवार में जन्मे रामकृष्ण शिंदे के जन्म की सही तारीख और साल कहीं दर्ज तो नहीं है लेकिन उनके परिवार के अंदाज़े के मुताबिक़ उनका जन्म साल 1918 में, रामनवमी के दिन हुआ था और इसी वजह से उनका नाम रामकृष्ण रखा गया था। (साल 1918 में रामनवमी 19 अप्रैल को थी| अत: रामकृष्ण शिंदे का जन्म 19 अप्रैल 1918 का होना चाहिए|) दो भाई और दो बहनों में रामकृष्ण सबसे बड़े थे। वो नौ-दस बरस के हुए कि उनके पिता का देहांत हो गया। ऐसे में उनके मामा और मौसी अपनी विधवा बहन और उनके चारों बच्चों को साथ लेकर मुम्बई चले आए, जहां नानाचौक के इलाक़े में रामकृष्ण का बचपन ग़ुज़रा।
परिवार में संगीत की परंपरा न होते हुए भी रामकृष्ण का झुकाव ख़ुद-ब-ख़ुद इस ओर होने लगा था। घर में बताए बिना उन्होंने पं.सीताराम पंत मोदी से गायन और पं.माधव कुलकर्णी से सितार सीखना तो शुरू किया ही, मेलों और नुमाईशों में होने वाले संगीत के कार्यक्रमों में भी वो हिस्सा लेने लगे। ऐसे ही कुछ कार्यक्रमों में उनके साथ लता ने भी शिरक़त की थी, जिन पर अपने पिता मास्टर दीनानाथ के निधन के बाद बड़ी संतान होने के नाते परिवार की ज़िम्मेदारी आ पड़ी थी। उधर रामकृष्ण को विधवा मां और भाई-बहनों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उस जमाने के जानेमाने कपड़ा उद्योगपति रूईया परिवार की परेल स्थित डॉन मिल्स में नौकरी करनी पड़ी।
साल 1944 में उनकी शादी मुम्बई के ऑपेरा हाऊस इलाक़े के रहने वाले मांजरेकर परिवार की बेटी नलिनी से हुई। उसी दौरान रामकृष्ण मशहूर तबला-वादक रमाकांत पार्सेकर और नृत्य-निर्देशक पार्वती कुमार कांबली के सम्पर्क में आए और फिर एक रोज़ संगीत को ही रोज़ी-रोटी का जरिया बनाने का फ़ैसला कर उन्होंने डॉन मिल्स की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया।
शुरूआत में रामकृष्ण ने मराठी नाटकों में संगीत देना शुरू किया। उनकी बनायी बंदिशें बेहद मशहूर होने लगीं और बहुत जल्द वो मराठी नाटकों के दर्शकों के बीच एक जाना-पहचाना नाम बन गए। अपनी बनाई कर्णप्रिय धुनों की वजह से ही उन्हें फ़िल्म “मैनेजर” मिली थी। “तिवारी प्रोडक्शंस” के बैनर में 1947
में बनी इस फ़िल्म के निर्देशक थे आई.पी.तिवारी और मुख्य कलाकार थे जयप्रकाश, पूर्णिमा, गोबिंद, सरला, अज़ीज़, अमीना और तिवारी। उसी दौरान उन्हें फ़िल्म “बिहारी” का संगीत तैयार करने का भी मौक़ा मिला जिसमें उनके अलावा एक अन्य संगीतकार नरेश भट्टाचार्य भी काम कर रहे थे। “समाज चित्र, बम्बई” के बैनर में बनी इस फ़िल्म का निर्देशन के.डी.काटकर और ए.आर.ज़मींदार की जोड़ी ने किया था, कलाकार थे बी.नान्द्रेकर, सुरेखा, एच.प्रकाश, फ़ैयाजबाई, निम्बालकर, सैम्सन और शबनम, और मुंशी फरोग़ का लिखा और लता का गाया गीत “सब्ज़े की दुर्फ़िशानी, फूलों का शामियाना” उस दौर में ख़ासा मशहूर हुआ था। बाक़ी नौ गीत अमीरबाई कर्नाटकी, एन.सी.भट्टाचार्य और ए.आर.ओझा के स्वरों में थे। फ़िल्म बिहारी साल 1948
में प्रदर्शित हुई थी। साल 1948
में ही उनकी एक और फ़िल्म “किसकी जीत” प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म का निर्माण भी तिवारी प्रोडक्शन के बैनर में ही हुआ था, निर्देशक थे सफदर मिर्ज़ा और मुख्य कलाकार सादिक़, इंदु कुलकर्णी, पुष्पा, मक़बूल, अमीना बाई, चन्द्रिका और तिवारी। गीतकार थे कुमार शर्मा।
मराठी नाटकों के अलावा इण्डियन नेशनल थिएटर के बैले-नृत्यों के संगीत ने भी रामकृष्ण शिंदे को ख़ासी लोकप्रियता दी और फिर एक समय ऐसा आया जब उनका नाम बैले-नृत्य संगीत का पर्याय बन गया। अपने जीवनकाल में उन्होंने कुल 27 बैले-नृत्यों का संगीत संयोजन किया जिनके देश-विदेश में हुए प्रदर्शनों को भरपूर सराहना मिली। ये उनके बैले-संगीत का ही कमाल था कि निर्देशक अमेय चक्रवर्ती ने उन्हें साल 1950
में बनी अपनी फ़िल्म “गौना” के एक नृत्य के संगीत के संयोजन की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। हालांकि इस फ़िल्म के संगीतकार हुस्नलाल-भगतराम थे लेकिन उषाकिरण पर फ़िल्माए गए उस नृत्य-संगीत के लिए ख़ासतौर से रामकृष्ण शिंदे को बुलाया गया था।
चालीस के दशक में आर.के.शिंदे और रामकृष्ण शिंदे के नाम से संगीत देते आए रामकृष्ण पचास के दशक में एक नए नाम के साथ सामने आए, और वो था “हेमंत केदार”, जिसे लेकर आज भी कई लोग इस ग़लतफहमी के शिकार हैं कि ये कोई संगीतकार जोड़ी थी। हाल ही में हुई मुलाक़ात के दौरान रामकृष्ण की पत्नी नलिनी ने बताया कि “हेमंत” और “केदार”, ये दोनों ही रामकृष्ण के पसंदीदा राग थे और इसी वजह से उन्होंने अपना नाम बदल कर “हेमंत केदार” रखा था। इस नए नाम से उन्होंने “ख़ौफ़नाक़ जंगल”, “पुलिस स्टेशन” और “कैप्टन इण्डिया” फ़िल्मों में संगीत दिया था। साल 1955 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म “ख़ौफ़नाक जंगल” का निर्माण श्याम फ़िल्म सर्विस ने किया था और निर्देशक थे गोदरेज के.अप्पू। मुख्य भूमिकाओं में थे बाबूराव, इंदिरा, निहाल, राजा सलीम और मंजु। गीत गिरीश माथुर ने लिखे थे।
उधर फ़िल्म “पुलिस स्टेशन” का निर्माण साल 1959 में सावित्री मूवीटोन के बैनर में किया गया था। इस फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक थे के.कांत, मुख्य कलाकार थे कामरान, कृष्णाकुमारी, अनवरी बाई, शीला काश्मीरी, इंदिरा और मिरजकर, और गीतकार प्रभातकिरण, इंदीवर और हैरत सीतापुरी के लिखे गीतों को मन्नाडे, मुबारक बेगम, उषा खन्ना, सबिता बनर्जी, शोभा शर्मा और अब्दुल रब क़व्वाल ने गाया था। फ़िल्म पुलिस स्टेशन में हेमंत केदार के अलावा रॉबिन नाम के एक संगीतकार और थे। साल 1960
में बनी फ़िल्म “कैप्टन इण्डिया” का निर्माण मधुशाला प्रोडक्शन के बैनर में राजाराम साक़ी ने और निर्देशन सी.कांत ने किया था। कलाकार थे कामरान, कृष्णाकुमारी, राजन कपूर, मोनी चटर्जी और मधुमती। राजाराम साक़ी के लिखे गीतों को आशा भोंसले, तलत महमूद और सुधा मल्होत्रा ने गाया था।
रामकृष्ण शिंदे की बड़ी बेटी रागिनी बताती हैं कि कुछ फ़िल्में ऐसी थीं जिनके लिए शिंदे ने गीत रेकॉर्ड किए लेकिन वो फ़िल्में अधूरी रह गयीं। इनमें राज थिएटर के बैनर की चालीस के दशक की “हमारी कहानी” और पचास के दशक की चित्र शिखर की “अविनाश”, शंकर प्रोडक्शन की “सती महानन्दा”, ए.करीम प्रोडक्शंस की “जन्नत की हूर” के अलावा एक फ़िल्म “पीली कोठी” भी शामिल है जिसके लिए शिंदे ने दो गीत रेकॉर्ड किए थे। ऐसी ही एक अन्य फ़िल्म थी “पातालदेवता” जिसमें अभिनेत्री मुमताज़ ने पहली बार कैमरे का सामना किया था। ये फ़िल्म अगर बनकर प्रदर्शित हो जाती तो ये मुमताज़ की पहली फ़िल्म कहलाती।
शिंदे ने दो मराठी फिल्मों में भी संगीत दिया था। ये थीं साल 1966 में बनी “तोची साधु ओळाखावा” और 1970
में बनी “आई आहे शेतात”, जिसका निर्माण भी शिंदे ने ही किया था। इसके अलावा उन्होंने ऑल इण्डिया रेडियो के भी कुछ कार्यक्रमों में संगीत दिया था जिनमें “होनाजी बाला”, “बिल्ली मौसी की फ़जीहत”, “सोना और सात बौने”, “मानसी” और “उषा मुस्काई” को बेहद सराहा गया।
रामकृष्ण के साथ शुरू हुआ सिनेमा से शिंदे परिवार का जुड़ाव रामकृष्ण के साथ ही ख़त्म भी हो गया। इस क्षेत्र की भयावह आर्थिक अनिश्चितताओं को देखते हुए उनकी पत्नी नलिनी को नौकरी करनी पड़ी। क़रीब तीस साल उन्होंने एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका के रूप में कार्य किया और नौकरी के बलबूते पर ही दोनों बेटियों की शादियां अच्छे घरों में कीं। उनकी बड़ी बेटी रागिनी के पति विलास अंधारे महाराष्ट्र सरकार के प्रकाशन विभाग “महाराष्ट्र ग्रंथ निर्मिति मंडल” के निदेशक पद से, तो छोटी बेटी अनुराधा के पति हेमंत शेण्डे चालीस साल की नौकरी के बाद क़रीब एक साल पहले देना बैंक से सेवानिवृत्त्त हुए हैं। नलिनी 83 वर्ष की हो चली हैं और अब उनका समय कभी घोड़बंदर रोड ठाणे में बड़ी बेटी रागिनी के परिवार साथ तो कभी वर्ली, मुंबई के ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान रोड पर रहने वाली छोटी बेटी अनुराधा के परिवार साथ गुज़रता है।
हिन्दी सिनेमा ने भले ही रामकृष्ण शिंदे उर्फ़ हेमंत केदार को उनका पूरा हक़ न दिया हो लेकिन बैले –संगीत ने उन्हें ज़बर्दस्त पहचान दी। 14
सितम्बर 1985
को जब हार्ट अटैक से उनका निधन हुआ तो उस वक़्त भी वो राजा ढाले के बैले “चाण्डालिका” और दूरदर्शन के लिए अजित सिन्हा के बैले “ऋतुचक्र” के संगीत पर काम कर रहे थे।
We
are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M. Ausaja for providing pictures & posters.
Mr.
Gajendra Khanna for the English translation of the write up.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
“Sabze Ki Durfishani Phoolon Ka Shamiyana” - Ramkrishna Shinde
……..Shishir Krishna Sharma
The history of
Hindi Cinema contains numerous instances of talented composers who inspite of
their capabilities and knowledge of music could not make the kind of name in
its annals which they were capable of. One of the major reasons for this is
that they did not have the extremely important skill of marketing themselves in
showbiz. One such composer is Ramkrishna Shinde who debuted in 1947 with the
film Manager.
Nearly twenty-six
years have elapsed since the demise of Ramkrishna Shinde but his wife and two
daughters continue to reside in Mumbai. The family neither had much contact
with filmdom nor did they show an inclination towards it. His demise put an end
to whatever limited contact they had with filmdom also.
Ramkrishna Shinde
was born to a Maratha family in Western Maharashtra's Malwan area. The exact
month and date of his birth is not known. According to the estimates of his
family he was born in the year 1918 on the day of Ramnavmi which led to his
being named as Ramkrishna. (In the year 1918, Ramnavmi fell on April 19.
Thus, Ramkrishna Shinde’s date of birth comes to be 19th April 1918). He
was the eldest among two brothers and two sisters. He was merely nine years old
when his father died. In this situation his mother's brother and sister took
the family to Mumbai where his childhood was spent in the Nana Chowk area.
Although the family
did not have a tradition of music, he showed a natural inclination towards it.
Without his mother's permission, he started learning vocals from Pandit Sitaram
Pant Modi and taking sitar lessons from Pandit Madhav Kulkarni. He also started
participating in various musical events at fares and exhibitions. Singer Lata
Mangeshkar had also participated in few such programs, as after her father's
demise she had the responsibility of taking care of her family. To take care of
his family, Ramakrishna also had to take up a job at well known industrial
family Ruia owned Don Mills in Parel. In 1944 he got married to Nalini, the
daughter of the Manjrekar family which resided in Mumbai's Opera House area. It
was during this time that Ramakrishna got introuduced to famous tabla player
Ramakant Parsekar and dance director Parvati Kumar Kambli. One day he decided
to take up music full time as a career and resigned from his job at Don Mills.
Initially, he
started composing for Marathi plays. His compositions started gaining
popularity and he became a known name among the enthusiasts of Marathi plays.
It was these melodious tunes which brought the offer of the movie 'Manager' to
him. This 1947 film was made under the banner of Tiwari Productions and was
directed by I.P. Tiwari. The main cast comprised of Jaiprakash, Poornima,
Gobind, Sarla, Aziz, Ameena and Tiwari. Around the same time, he also got the opportunity
to compose music for the film 'Bihari' which also had another composer Naresh
Bhattacharya for it. This film, made under banner of Samaj Chitra Mumbai was
directed by the duo of K.D. Katkar and A.R. Zamidar. Its artists were B
Nandurekar, Surekha, H.Prakash, Faiyaaz Bai, Namibalkar, Samson and Shabnam.
The song in lyrics of Munshi Farogue, "Sabze Ki Durfishani, Phoolon Ka
Shamiyana" in the voice of Lata mangeshkar became fairly popular. The film
actually got released in 1948. Another film, "Kiski Jeet" also
released in 1948. This film was also made by Tiwari Productions. Its director
was Safdar Mirza and its cast included Sadiq, Indu Kulkarni, Pushpa, Maqbool,
Ameena bai, Chandrika and Tiwari. It had lyrics by Kumar Sharma.
Apart from Marathi
theatre, the ballet dances of Indian National theatre brought him immense
popularity and his name at one time became synonymous with ballet dance music.
During his lifetime he composed for 27 ballet dances whose shows all over the
world brought him lots of accolades. It was due to the popularity of these
music pieces that composer Ameya Chakravorti chose him to arrange some dance
music for his movie 'Gauna' in 1950. Although Husnlal-Bhagatram were the
composers for the movie, Ramkrishna was specially called to compose the dance
music which was picturised on Usha Kiran.
After composing by
the name R.K. Shinde and Ramakrishna Shinde in the 1940s, he returned to film
music with a new name, "Hemant Kedar" which led many to mistakenly
assume him to be a composer duo! When we met his wife Nalini recently, she told
us that Hemant and Kedar were the favourite ragas of Ramakrishna. Due to this
reason he had changed his name to Hemant Kedar. He composed for 'Khaufnaak
Jungle', 'Police Station' and 'Captain India' with this name. Shyam Film Service had
produced 'Khaufnaak Jungle' which released in 1955 under the direction of Godrej
K Appu. The cast consisted of Baburao, Indira, Nihal, Raja Salim and Manju. The
lyrics were by Girish Mathur.
His 1959 movie, ‘Police
Station’ was produced by Savitri Movietone and its Producer-director was
K.Kant. Its cast included Kamran, Krishna Kumari, Anwari Bai, Sheela Kashmiri,
Indira and Mirajkar. Its songs were written by lyricists Prabhat Kiran, Indivar
and Hairat Sitapuri. The singers were Manna Dey, Mubarak Begum, Usha Khanna,
and Abdul Rab Qawwal. The movie had another composer Robin also.
His other film ‘Captain
India’ (1960) was produced by Rajaram Saqi under the banner of Madhushala
Productions and was directed by C.Kant. Its cast included Kamran, Krishna
kumari, Rajan Kapoor, Moni Chatterjee and Madhumati. Rajaram Saqi wrote the
lyrics for them and the songs were sung by Asha Bhosle, Talat Mahmood and Sudha
Malhotra.
Ramakrishna
Shinde's daughter Ragini tells us that there were a few movies composed by him
for which though the songs were recorded but the films remained unreleased.
These include the following movies:-
1. ‘Hamari Kahani’
(1940's) made under banner of Raj Theater
2. ‘Avinash’
(1950s) made under banner of Chitra Shikhar
3. ‘Sati Mahananda’ under banner of Shankar
Productions
4. ‘Jannat Ki Hoor’
under banner of A Karim Productions.
He had also recorded two songs for a movie
"Peeli Kothi". One more movie of his was "Pataal Devta"
which was the first movie for which actress Mumtaz faced the camera. Had the
movie been released, it would have been the debut of Mumtaz.
Shinde also composed for two Marathi films.
The first one was To Chi Sadhu Olakhawa(1966) and the second was Aai Aahe
Shetaat(1970) which was also produced by him. He also composed for a few
programs for All India Radio among which his music for "Honaji Bala",
"Billi Mausi Ki Fajeehat", "Sona Aur Saat Baune",
"Mansi" and "Usha Muskaayi" brought lots of appreciation to
him.
The Shinde family
has been cut off from the film world since the patriarch's death. The financial
uncertainities which his work brought led to his wife Nalini to take up a job.
She worked for over thirty years as a Government school teacher which helped
her get their two daughters married in good homes.
Their elder
daughter Ragini's husband Vilas Andhare retired as director of the Maharashtra
Government's Publication department's "Maharashtra Granth Nirmaata
Mandal". Their second daughter Anuradha's husband Hemant Shende has
retired after a service of forty years from Dena Bank last year. Nalini is now
83 years old. She now spends time with the families of her elder daughter
Ragini (who stays at Ghodbandar Road, Thane) and younger daughter Anuradha (who
lives at Worli, Mumbai's Khan Abdul Gaffar Khan Road).
Although, Hindi Cinema did not give Ramakrishna Shinde his due, Ballet music gave him due recognition. Even at the time when he died due to a heart attack on 14th September 1985, he was composing for Raja Dhale's ballet, Chandalika and Ajit Sinha's ballet Rituchakra which was being made for Doordarshan
बहुत-बहुत शुक्रिया शिशिर जी। बहुत ही महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं आप। हिन्दी सिनेमा में ऐसी अनेक शख्सीयतें हैं जो अनदेखी का शिकार रहीं। आपके माध्यम से मुझे इस कलाकार से पहली बार रू-ब-रू होने का मौका मिला। कम से कम अब तो मैं यह कभी नहीं कहूंगी कि मैंने कभी संगीतकार रामकृष्ण शिंदे या आर. के. शिंदे या हेमंत केदार का नाम नहीं सुना। - नीलम शर्मा ‘अंशु’
ReplyDeletepehli baar is naam se parichit huaa. Koteeshah dhanyawaad.
ReplyDeleteSharma ji,
ReplyDeleteIn 1918, Ramnavmi was on 19th April.
So, his date of birth will be 19-4-1918