“मदर इंडिया” – प्रमिला
...........शिशिर कृष्ण शर्मा
आज की हाईटेक पीढ़ी के लिए प्रमिला का नाम भले ही अनसुना सा हो लेकिन 30 से 50 के दशक के हिंदी सिनेमा के चाहने वालों के लिए ये नाम उन्हें उस दौर की सुनहरी यादों में ले जाने के लिए काफ़ी है। प्रमिला अपने दौर की जानी-मानी अभिनेत्री और निर्मात्री तो थीं ही, उन्हें पहली ‘मिस इंडिया’ होने का गौरव भी हासिल था। 30 दिसम्बर 1916 को कोलकाता के एक अमीर यहूदी परिवार में जन्मीं और पली-बढ़ीं प्रमिला के फ़िल्मी करियर की शुरूआत साल 1935 में आर्देशीर ईरानी की ‘इंपीरियल फ़िल्म कंपनी’ की फ़िल्म ‘रिटर्न ऑफ़ तूफ़ान मेल’ से, महज़ इत्तेफ़ाक़ से हुई थी। दरअसल वो कोलकाता में एक स्कूल में पढ़ाती थीं और छुट्टियों में अपनी अभिनेत्री बहन रोमिला और चचेरी बहन अभिनेत्री रोज़ से मिलने मुंबई आयी थीं। एक रोज़ आर्देशीर ईरानी और निर्देशक आर.एस.चौधरी की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने प्रमिला को फ़िल्म ‘रिटर्न ऑफ़ तूफ़ान मेल’ की मुख्य भूमिका के लिए मना लिया।
निधन से कुछ समय पहले शिवाजी पार्क- दादर स्थित उनके घर पर हुई मुलाक़ात के दौरान प्रमिला ने बताया था कि उस फ़िल्म में काम करने का उनका तजुर्बा अच्छा नहीं रहा था। उनका कहना था, ‘मैं भले ही खुले और आधुनिक माहौल में पली-बढ़ी थी लेकिन थी तो एक हिंदुस्तानी औरत ही। अपने संस्कारों, आत्मसम्मान और पवित्रता के साथ किसी तरह का समझौता करना मेरे लिए मुमक़िन नहीं था। यही वजह है कि निर्देशक की ग़ैर-जरूरी बातें सुनकर मुझे उनसे दो-टूक कह देना पड़ा था कि बतौर अभिनेत्री आपके निर्देशों का पालन करना मेरा फर्ज़ है लेकिन शूटिंग से अलग हटकर मैं आपकी कोई भी बात नहीं सुनना चाहूंगी। मेरे इस कड़े रूख को देखकर वो इतने चिढ़ गए थे कि पहले ही दिन शूटिंग के बहाने उन्होंने मुझे लगातार तीन बार कुतुब मीनार पर चढ़ने-उतरने के लिए मजबूर किया। बाद में पता चला, न तो स्क्रिप्ट में ऐसा कोई सीन था और न ही उस दौरान कैमरे में रील मौजूद थी। कई वजहों से वो फ़िल्म भी पूरी नहीं बन पायी थी’।
निराश होकर प्रमिला कोलकाता वापस लौटने वाली थीं कि निर्माता आर्देशीर ईरानी ने फ़ैसला बदलने के लिए मनाते हुए उनके साथ 5 फ़िल्मों का कांट्रेक्ट कर लिया, हालांकि प्रमिला की सबसे पहले प्रदर्शित होने वाली फ़िल्म ‘कोल्हापुर सिनेटोन’ की ‘भिखारन’ (1935) थी। प्रेमांकुर अटॉर्थी द्वारा निर्देशित और हरिश्चन्द्र बाली द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म ‘भिखारन’ के नायक-नायिका थे मास्टर विनायक और रतनबाई। प्रमिला ने इसमें ‘चन्द्रा’ नाम का एक अहम किरदार निभाया था। प्रमिला का असली नाम ‘एस्थर विक्टोरिया अब्राहम’ था। फ़िल्म ‘भिखारन’ में उनपर एक हास्यगीत ‘तिलचट्टा हाए तिलचट्टा छिपकली ने पकड़ लिया’ फ़िल्माया गया था। ‘कोल्हापुर सिनेटोन’ से मास्टर विनायक, बाबूराव पेण्ढारकर और भालजी पेण्ढारकर जैसे बड़े नाम जुड़े हुए थे और एस्थर को फ़िल्मी नाम ‘प्रमिला’ बाबूराव पेण्ढारकर ने दिया था।
प्रमिला के मुताबिक़ ‘इम्पीरियल’ की जिन फ़िल्मों के लिए आर्देशीर ईरानी (चित्र में) ने उन्हें साईन किया था वो थीं, ‘महामाया’, ‘अवर डार्लिंग डॉटर्स’(हमारी बेटियां) और ‘सरला’ (तीनों 1936), ‘मेरे लाल’ (1937) और ‘मदर इंडिया’ (1938)। महिलाओं के हित में काम करने वाली वर्सोवा, मुंबई स्थित संस्था ‘स्पैरो’ द्वारा प्रकाशित प्रमिला की आत्मकथा में भी ‘मदर इंडिया’ के निर्माता के तौर पर ‘इम्पीरियल फ़िल्म कंपनी’ का नाम दर्ज है लेकिन श्री हरमंदिर सिंह ‘हमराज’ द्वारा संकलित ‘हिंदी फ़िल्म गीतकोश’ और श्री जावेद मोहम्मद ज़ैदी द्वारा संकलित ‘ए टु ज़ेड फ़िल्म डायरेक्टरी’ के मुताबिक़ इस फ़िल्म का निर्माण ‘इंडिया सिने पिक्चर्स’ द्वारा किया गया था। वहीं श्री बद्रीप्रसाद जोशी लिखित ‘हिंदी सिनेमा का सुनहरा सफर’ के मुताबिक़ ‘मदर इंडिया’ का निर्माण ‘सिने कलर’ द्वारा किया गया था। ‘महामाया’, ‘अवर डार्लिंग डॉटर्स’(हमारी बेटियां) और ‘सरला’ के नायक थे मिज्जन कुमार। ‘महामाया’ का निर्देशन गुंजाल ने किया था और संगीतकार थे अन्ना साहिब माईनकर, जिन्होंने ‘अवर डार्लिंग डॉटर्स’ में भी संगीत दिया था। ‘अवर डार्लिंग डॉटर्स’ के निर्देशक आर.एस.चौधरी थे तो ‘सरला’ के निर्देशक प्रेमांकुर अटॉर्थी और संगीतकार हरिश्चन्द्र बाली थे। फ़िल्म ‘मेरे लाल’ के नायक राम मराठे, निर्देशक गुंजाल और संगीतकार थे हरिश्चन्द्र बाली और राम गोपाल।
साल 1938 में बनी फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ का नाम भारतीय सिनेमा के इतिहास में सफलतापूर्वक बनी पहली रंगीन फ़िल्म के तौर पर दर्ज है। इस फ़िल्म का निर्देशन गुंजाल का था और संगीतकार थे रामगोपाल। प्रमिला के अलावा इसमें शरीफ़ा, वज़ीर मुहम्मद ख़ान, ग़ुलाम मोहम्मद, ग़ुलाम रसूल और आशिक़ हुसैन ने अहम भूमिकाएं निभायी थीं। अभिनेत्री आशा सचदेव, गायक अनवर और अभिनेता अरशद वारसी इन्हीं अभिनेता आशिक़ हुसैन की संतानें हैं। फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ से पहले भारत में रंगीन फ़िल्म बनाने की तीन कोशिशें तकनीकी वजहों से पूरी तरह सफल नहीं हो पायी थीं। वो फ़िल्में थीं, ‘माडन थिएटर्स-कोलकाता’ की ‘बिल्वमंगल’ (1932), ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी-पुणे’ की ‘सैरंध्री’ (1933) और ‘इम्पीरियल फ़िल्म कंपनी-मुंबई’ की ‘किसान कन्या’ (1937)। चूंकि ‘बिल्वमंगल’ और ‘सैरंध्री’ के निगेटिव्स को विदेश में डेवलप किया गया था इसलिए इन्हें पूरी तरह भारतीय भी नहीं कहा जा सकता|
साल 1939 में प्रमिला की चार फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिनमें से ‘बिजली’ और ‘हुक़ुम का इक्का’ का निर्माण प्रकाश पिक्चर्स के तो ‘जंगल किंग’ और ‘कहां है मंज़िल तेरी’ का निर्माण ‘वाडिया मूवीटोन’ के बैनर में हुआ था। प्रकाश पिक्चर्स की दोनों फ़िल्मों के संगीतकार थे शंकरराव व्यास और लल्लूभाई नायक। बलवंत भट्ट द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘बिजली’ के अहम किरदार जयराज, प्रमिला, गुलाब, श्यामसुंदर और शीरीन ने निभाए थे। निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट अभिनेत्री शीरीन के बेटे हैं। फ़िल्म ‘हुक़ुम का इक्का’ का निर्देशन शांति जे.दवे ने किया था जिसमें प्रमिला के साथ उमाकांत, एम.ज़हूर, कुमुदिनी और श्यामसुंदर नजर आए थे। ‘जंगल किंग’ में प्रमिला ने पहली बार स्टंट भूमिका की थी। ‘वाडिया मूवीटोन’ की भी ये ऐसी पहली फ़िल्म थी जिसमें उस बैनर की स्थायी अभिनेत्री ‘नाडिया’ की जगह किसी और अभिनेत्री को लिया गया था। निर्देशक नारी घड़ियाली ने इसी फ़िल्म से अपने करियर की शुरूआत की थी और इसके नायक थे जॉन कावस।
मुंशी श्याम के लिखे और मधुलाल दामोदर मास्टर के संगीतबद्ध किए इस फ़िल्म के 6 में से 3 गीत ‘मेरे साजन अब तक नहीं जागे देखो हो गयी भोर’, ‘प्रेम नदी लहराती है, मधुर स्वरों में गाती है’ और ‘हूक उठत है मेरा जिया घबराए’ प्रमिला पर फ़िल्माए गए थे। फ़िल्म ‘कहां है तेरी मंज़िल’ का संगीत भी मधुलाल दामोदर मास्टर ने तैयार किया था, गीतकार थे वाहिद क़ुरैशी और प्रमिला के साथ मुख्य भूमिकाओं में नज़र आए थे इलादेवी, हरिश्चन्द्र, आग़ा, दलपत और मीनू द मिस्टिक। साल 1940 में एक बार फिर प्रमिला ‘प्रकाश पिक्चर्स’ की फ़िल्म ‘सरदार’ में नज़र आयीं जिसमें उनके नायक थे जयंत। अन्य कलाकार थे एम.नज़ीर, निर्मला और अमीरबाई कर्नाटकी। संगीत शंकरराव व्यास का था, गीत लिखे थे ‘बालम’ और ‘अनुज’ ने और निर्देशक थे द्वारका खोसला।
उधर साल 1939 में ‘महामाया’, ‘अवर डार्लिंग डॉटर्स’ और ‘सरला’ के नायक मिज्जन कुमार (चित्र में) के साथ उनकी शादी हो चुकी थी। ये वोही मिज्जन कुमार थे जिन्होंने आगे चलकर फिल्म ‘मुग़ल-ए-आजम’ में मूर्तिकार की भूमिका की थी और जिनपर मशहूर गीत ‘ऐ मोहब्बत ज़िंदाबाद’ फ़िल्माया गया था। मूलत: लखनऊ के रहने वाले कुमार का असली नाम ‘सैयद हसन अली ज़ैदी’ था। उनके ‘कुमार’ बनने का क़िस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है। प्रमिला के मुताबिक़ सैयद हसन अली ज़ैदी, जो शुरूआती दौर में कोलकाता के ‘न्यू थिएटर्स’ की फ़िल्मों में काम करते थे, साल 1933 में बनी इसी बैनर की फ़िल्म ‘पूरण भगत’ में नायक की भूमिका निभा रहे थे। फ़िल्म प्रदर्शन के लिए तैयार थी कि बंगाल में क़ौमी दंगे भड़क उठे। ऐसे नाज़ुक मौक़े पर धार्मिक फ़िल्म के पोस्टरों पर गैर हिंदू नायक का असली नाम छपवाने से वितरकों को हिचकिचाता देख राजसी परिवार से आए निर्देशक ‘कुमार देवकी बोस’ ने कहा, ‘आज से अपने नाम का अहम हिस्सा मैं तुम्हें देता हूं’। और वास्तव में उसके बाद उन्होंने अपने नाम के आगे ‘कुमार’ शब्द का इस्तेमाल कभी नहीं किया।
40 का दशक प्रमिला के लिए जबर्दस्त बदलाव का दौर लेकर आया। साल 1941 में उन्होंने ‘चित्रा प्रोडक्शंस’ की फ़िल्म ‘कंचन’ और ‘मोहन पिक्चर्स’ की ‘शहज़ादी’ में अहम भूमिकाएं निभाईं। ज्ञानदत्त के संगीत से सजी फ़िल्म ‘कंचन’ संगीतकार नौशाद के करियर की पहली फ़िल्म थी जिसमें उन्हें सिर्फ़ एक गीत, डी.एन.मधोक का लिखा और लीला चिटणिस का गाया ‘बता दो कोई कौन गली मोरे श्याम’ संगीतबद्ध करने का मौक़ा मिला था, हालांकि उनकी बतौर स्वतंत्र संगीतकार पहली फ़िल्म ‘प्रेमनगर’ साल 1940 में ही प्रदर्शित हो चुकी थी। निर्देशक जे.पी.आडवाणी और संगीतकार राम गोपाल की फ़िल्म ‘शहज़ादी’ में प्रमिला के नायक थे त्रिलोक कपूर। बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्म ‘बसंत’ (1942) में उन पर फ़िल्माया गया गीत ‘हुआ क्या क़ुसूर जो हमसे हो दूर’ (चित्र में) उस जमाने में बेहद मशहूर हुआ था। फ़िल्म ‘बसंत’ से ‘बेबी मुमताज’ ने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था जो आगे चलकर मधुबाला के नाम से जानी गयीं।
कुमार उन दिनों ‘रणजीत स्टूडियो’ में नौकरी कर रहे थे और इस बैनर की ‘नदी किनारे’ और ‘ठोकर’ जैसी कुछ फ़िल्मों में काम कर चुके थे। अचानक एक रोज़ उन्हें नौकरी से निकले जाने का नोटिस थमा दिया गया। अभिनेता चन्द्रमोहन (चित्र में) उनके क़रीबी दोस्त थे और वो भी फ़िल्म ‘पुकार’ की ज़बर्दस्त कामयाबी के बावजूद वादे के मुताबिक वेतन न बढ़ाए जाने को लेकर अपनी कंपनी ‘मिनर्वा मूवीटोन’ से नाराज थे। ऐसे में दोनों दोस्तों ने ख़ुद ही निर्माता बनने का फैसला करते हुए 16 मार्च 1942 को ‘सिल्वर फ़िल्म्स’ की स्थापना कर ली। कुमार की पत्नी होने के नाते प्रमिला इस बैनर का अहम हिस्सा थीं। इस बैनर की पहली फ़िल्म ‘झंकार’ का मुहुर्त देविका रानी के हाथों हुआ था। निर्देशक थे एस.खलील, संगीतकार बशीर देहलवी और मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं चन्द्रमोहन, कुमार, प्रमिला, अजूरी, शहज़ादी और गोप ने। प्रमिला ने इस फ़िल्म में तीन गीत गाए थे, डी.एन.मधोक के लिखे ‘रात हनेरी माही वे वच चमकन तारे’ जो पंजाबी भाषा में था, कुमार के साथ दोगाना ‘इस दिल का ठिकाना कौन, जीने का बहाना कौन’ और सालिक़ लखनवी का लिखा ‘हम तो दो बोल कह के हारे हैं”। लेकिन ये फ़िल्म बुरी तरह से असफल रही थी।
अगले दो दशकों में प्रमिला और कुमार ने मिलकर ‘सिल्वर फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘भलाई’ (1943), ‘बड़े नवाब साहब’ (1944), ‘नसीब’ (1945), ‘देवर’ (1946), ‘धुन’ (1953) और ‘बहाना’ (1960), ‘शमा प्रोडक्शंस’ के बैनर में ‘नहले पे दहला’ (1946), ‘धूमधाम’ (1949) और ‘दिलबर’ (1951), ‘कुमार स्टूडियोज़ लिमिटेड’ के बैनर में ‘आपबीती’(1948) और ‘आर्टिस्ट्स युनाईटेड’ के बैनर में ‘बादल और बिजली’ (1956) और ‘जंगल किंग’ (1959) जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। इनमें ‘आपबीती’, ‘धुन’ और ‘बहाना’ का निर्देशन कुमार ने और फ़िल्म ‘बादल और बिजली’ का निर्देशन प्रमिला और कुमार के बेटे मॉरिस अब्राहम ने किया था। फ़िल्म ‘धुन’ के नायक-नायिका राज कपूर और नरगिस थे तो ‘बहाना’ की मुख्य भूमिकाओं में सज्जन और मीना कुमारी नज़र आए थे। मदनमोहन द्वारा संगीतबद्ध किए इन दोनों ही फ़िल्मों के गीत अपने दौर में बेहद मशहूर हुए थे।
निर्मात्री बन जाने के बावजूद प्रमिला बाहर के बैनर की फ़िल्मों में भी अभिनय करती रहीं। अपने बैनर की तमाम फ़िल्मों के अलावा वो ‘सहेली’ (1942
/ स्टार प्रोडक्शंस), ‘उल्टी गंगा’ (1942 / मिनर्वा मूवीटोन), ‘सालगिरह’ (1946 / बी.कृषिन मूवीटोन), ‘शालीमार’ (1946 / शोरी पिक्चर्स-लाहौर), ‘दूसरी शादी’ (1947 / बी.कृषिन मूवीटोन), ‘बेक़ुसूर’ (1950 / मधुकर पिक्चर्स), ‘हमारी बेटी’ (1950 / शोभना पिक्चर्स), ‘मजबूरी’ (1954 / मुरली मूवीटोन), ‘फ़ाईटिंग क्वीन’ (1956 / एन.के.जी.प्रोडक्शंस) और ‘मुराद’ (1961 / एन.के.जी.प्रोडक्शंस) जैसी बाहरी बैनर की फ़िल्मों में भी नज़र आयीं। साल 1947 में उन्होंने एक जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा शुरू किया गया पहला ‘मिस इंडिया’ का ख़िताब जीता और ये एक रेकॉर्ड ही है कि ठीक बीस साल बाद साल 1967 में उनकी बेटी नक़ीजहां ये ताज हासिल करने में कामयाब हुईं। नक़ीजहां साल 1966 में बनी फ़िल्म ‘आख़िरी ख़त’ की एक अहम भूमिका में नज़र आयी थीं।
60 के दशक की शुरूआत में कुमार के पाकिस्तान चले जाने के फ़ैसले से प्रमिला को ज़बर्दस्त धक्का लगा। लेकिन तमाम दबावों के बावजूद वो ख़ुद भारत छोड़ने को तैयार नहीं हुईं। कुमार के चले जाने का असर उनकी निजी ही नहीं व्यावसायिक ज़िंदगी पर भी पड़ा और फिल्मों से भी उनका रिश्ता पूरी तरह से टूट गया। साल 1960 में बनी ‘बहाना’ बतौर निर्मात्री और साल 1961 में बनी ‘मुराद’ बतौर अभिनेत्री उनकी आख़िरी फ़िल्में साबित हुईं। लेकिन उन्होंने तमाम मुश्किल हालात का डटकर सामना किया, एक अच्छी मां और बाप, दोनों
का फर्ज़ निभाते हुए अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए और उनके भविष्य को संवारा।
प्रमिला ने ज़िंदगी के आख़िरी 45 साल ‘शिवाजी पार्क-दादर पश्चिम’ के अपने बंगले ‘प्रमिला निवास’ में बेटे-बहुओं और पोते-पोतियों से भरे-पूरे परिवार के साथ ग़ुज़ारे। उनके छोटे बेटे हैदर अली (चित्र में) जाने-माने अभिनेता हैं जो दूरदर्शन धारावाहिक ‘नुक्कड़’ की अपनी भूमिका से चर्चा में आए थे। हैदर अली ने आशुतोष गवारीकर की साल 2008 में बनी फ़िल्म ‘जोधा अकबर’ की कथा-पटकथा तो लिखी ही थी, फ़िल्म का मशहूर गीत ‘ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा’ भी उन्हीं पर फ़िल्माया गया था। उधर प्रमिला की बेटी नक़ीजहां उर्फ़ नंदिनी कामदार आज मुंबई के मशहूर व्यवसायी ‘कामदार’ परिवार की बहू हैं।
हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपनी एक ख़ास जगह बनाने वाली अभिनेत्री-निर्मात्री प्रमिला का निधन 6 अगस्त 2006 को 90 साल की उम्र में मुंबई में हुआ।
We
are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters & pictures.
Ms.
Aksher Apoorva for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Pramila ji On YT Channel BHD
“Mother India” – Pramila
.........Shishir Krishna Sharma
Perhaps for today’s Hi-Tech generation the name Pramila maybe unheard of but, this name is enough to transport aficionados of Hindi cinema back to the golden memories of the 30’s to the 50’s era. Pramila was not only a well-known actress and producer of her time; she also has the privilege of being crowned as the very first ‘Miss India’. Born on 30th December 1916 and raised in a wealthy Jewish family of Kolkata, Pramila came about her film career by sheer coincidence in the year 1935 with Ardeshir Irani’s ‘Imperial Film Company’s ‘Return of Toofan Mail’. She used to teach in a school in Kolkata and during one of her vacations she had come to Mumbai to spend time with her sister, actress Romila and cousin, actor Rose. One day Ardeshir Irani and Director R.S.Chaudhury happened to see Pramila and they persuaded her for the main role in the film ‘Return of Toofan Mail’. In a meeting with her at her home at Shivaji Park – Dadar, sometime before her death, Pramila said that her experience of working in that film was not very pleasant. She said, “I might have been raised in an open and modern environment, but I was still an Indian woman at heart. It was not possible for me to compromise with my culture, my self-resect or my integrity. And hence, for the same reason, when I heard the director’s unnecessary chatter I had to tell him on his face that as an actress it was my duty to follow his directives but other than shooting, I would not indulge in any of his trivialities. On seeing my no-nonsense attitude, he got so irritated that on the pretext of shooting, on the first day itself, he made me climb up and down the Qutub Meenar three times. It was only later that I came to know that there was no such scene in the script and that; there wasn’t any reel in the camera either. For various reasons, the film could never be completed.” A disappointed Pramila was about to return back to Kolkata when Producer Ardeshir Irani tried to convince her otherwise and signed a 5 film contract with her just to persuade her to stay, however, Pramila was first seen on screen in ‘Kolhapur Cinetone’s film ‘Bhikharan’ (1935).
Directed by Premankur Atorthi and musically composed by Harish Chandra Bali, the main leads of film ‘Bhikharan’ were Master Vinayak and Ratan Bai. Pramila had played an important character called ‘Chandra’ in the film. Pramila’s real name was ‘Esther Viktoria Abrahm’. The movie ‘Bhikharan’ featured a comedy song ‘tilchatta haye tilchatta chhipkali ne pakad liya’ that was filmed on her. Many big names like Master Vinayak, Baburao Pendharkar and Bhalji Pendharkar were assocated with ‘Kolhapur Cinetone’ and Baburao Pendharkar was the one who gave Esther her screen name ‘Pramila’.
According to Pramila, the films Ardeshir Irani had signed her on with ‘Imperial’ were ‘Mahamaya’, ‘Our Darling Daughters’ (Hamari Betiyaan) & ‘Sarla’ (all-1936), ‘Mere Laal (1937) and ‘Mother India’ (1938). In Pramila’s biography, published by a Versova, Mumbai based organization ‘Sparrow’, that works for woman’s right, also states ‘Imperial film Company’ as the Producer for ‘Mother India’, but, as per ‘Hindi film Geetkosh’, compiled by Shri Harmandir Singh ‘Hamraaz, and ‘A to Z Film Directory’ compiled by Shri Javed Mohammad Zaidi, this film was produced by ‘India Cine Pictures’. At the same time ‘Hindi Cinema Ka Sunehra Safar’, written by Shri Badri Prasad Joshi, claims ‘Cine Color’ as the producer for ‘Mother India’.
Mijjan Kumar was the main male lead of ‘Mahamaya’, ‘Our Darling Daughters’ (Hamari Betiyaan)
& ‘Sarla’. ‘Mahamaya’ was directed by Gunjal and its music director was
Anna Sahib Mainkara, who also composed for ‘Our Darling Daughters’. While R.S.Chaudhury
directed ‘Our Darling Daughters’, Premankur Atorthi directed ‘Sarla’ and ‘Sarla’s’
Music Director was Harish Chandra Bali. Gunjal directed the film ‘Mere Laal’ whose hero
was Ram Marathe and its Music Directors were Harish Chandra Bali & Ram Gopal.
Made in 1938, the film ‘Mother India’ will always be known in the history of Indian Cinema as first successfully made color film. The film’s director was Gunjal and its Music Director was Ram Gopal. Along with Pramila, important characters were essayed in the film by Shrifa, Wazir Mohammad Khan, Ghulam Mohammad, Ghulam Rasool and Ashiq Hussain. Actress Asha Sachdev, singer Anwar, and actor Arshad Warsi happen to be the children of the same Ashiq Hussain. Prior to ‘Mother India’, there had been three attempts to make a color film in India, but, due to technical reasons, they remained unsuccessful. These films were ‘Bilva mangal’ (1932) of ‘Madan Theatres-Kolkata’, ‘Sairandhri’ (1933) of ‘Prabhata film Company-Pune’ and ‘Kisan Kanya’ (1937) of ‘Imperial film Company-Mumbai’. ‘Bilva mangal’ and ‘Sairandhri’ can’t be even called fully indigenous as their negatives were developed abroad.
1939 saw four films of Pramila of which ‘Bijli’ and ‘Huqum Ka Ikka’ were produced by Prakash Pictures and ‘Jungle King’ & ‘Kahan Hai Manzil Teri’ was produced under the banner of ‘Wadia Movietone’. Shankar Rao Vyas & Lallubhai Nayak were the Music Directors for both of Prakash Pictures films. ‘Bijli’ was directed by Balwant Bhatt and Jairaj, Pramila, Ghulab, Shyam Sunder and Shirin played important charaters in it. Producer-Director Mahesh Bhatt is actress Shirin’s son. Shanti J.Dave directed the movie ‘Huqum Ka Ikka’ which saw Pramila along with actors like Umakant, M.Zahoor, Kumudini and Shyam Sunder. Pramila did her very first stunt role in ‘Jungle King’. Also, this was ‘Wadia Movietone’s first film to feature another actress under their banner other than ‘Nadia’ who was their permanent actress. Director Nari Ghadiyali started his career with this film and its hero was John Kawas. Written by Munshi Shyam and composed by Madhulal Damodar Master, 3 out of the 6 songs in the film ‘mere sajan ab tak nahin jaage dekho ho gai bhor’, ‘prem nadi lehrati hai madhur swaron me gaati hai’ and ‘hook uthat hai mera jiya ghabraaye were picturised on Pramila. Madhulal Damodar Master composed for the film ‘Kahan Hai Manzil Teri’ as well and its lyricist was Wahid Quraishi and along with Pramila the main roles saw Ila Devi, Harishchandra, Agha, Dalpat and Minoo The Mistic. In the year 1940, Pramila was once again seen in ‘Prakash Pictures’s’ film ‘Sardar’ and Jayant was seen opposite her. Rest of the cast comprised of M.Nazir, Nirmala and Amir Bai Karnatki. The composer was Shankar Rao Vyas and the lyrics were penned by ‘balam’ & ‘Anuj’. This movie was directed by Dwarka Khosla. In 1939 Pramila married Mijjan Kumar, hero of films like ‘Mahamaya’, ‘Our Darling Daughters’ and ‘Sarla’. He is the same Mijjan Kumar who later on played The Sculptor in the movie ‘Mughal-E-Azam’ and on whom the famous song ‘aye mohabbat zindabad’ was filmed. Originally from Lucknow, Kumar’s real name was ‘Sayyad Hassan Ali Zaidi’. The story behind his second name ‘Kumar’ is also quite interesting. According to Pramila, Sayyad Hassan Ali Zaidi, who used to work in Kolkata’s ‘New Theatres’ early in his career, was playing the main lead under the same banner in its 1933’s ‘Pooran Bhagat’. The film was ready for release when communal riots broke out in Bengal. Due to the sensitive atmosphere around, the distributers were hesitant to print a non-Hindu hero’s real name on the posters of a devotional film and Director ‘Kumar Devki Bose’, who hails from a royal family, saw the distributers hesitation and said “from today on I give you an important part of my name”. And, after this, he never used the word ‘Kumar’ before his name ever again which was a norm for males in royal families.
The 40’s bought with itself a period of great change for Pramila. In 1941, she essayed important characters in ‘Chitra Productions’s’ film ‘Kanchan’ and in ‘Mohan Pictures’s’ film ‘Shehzadi’. Gyan Dutt was the music composer for the film ‘Kanchan’ and it was also the first film of music director Naushad’s career where he got a chance to compose just one song ‘bata do koi kaun gali more shyam’ which was written by D.N.Madhok and sung by Leela Chinis, however his first film as independent music director ‘Premnagar’, signed later, had already been released in the year 1940. Trilok Kapoor was Pramila’s hero in Director J.P.Adwani and music director Ram Gopal’s film ‘Shehzadi’. She also acted in Bombay Talkies’ film ‘Basant’ (1942). The song ‘hua kya qusoor jo humse ho door’ from ‘Basant’ was filmed on her and had become very popular at that time. ‘Baby Mumtaz’ entered the field of acting with the film ‘Basant’ and later came to be known as Madhubala.
Kumar was working with ‘Ranjit Studio’ at that time and had already done few films like ‘Nadi Kinare’ and ‘Thokar’ under that banner. And suddenly one day he was given a termination notice from the job. On the other side his close friend actor Chandra Mohan was very angry with his Company ‘Minerva Movietone’ because despite the companies promise to increase his salary after the huge success of the film ‘Pukar’ they hadn’t lived up to their promise. Hence the two friends decided to turn producers themselves and established their very own banner ‘Silver Films’ in 16th March 1942. As Pramila was Kumar’s wife, she became a very important part of this banner. The muhurat shot of their banner’s first movie ‘Jhankaar’ was done by Devika Rani. Its Director was S.Khalil, music director was Basheer Dehalvi and the main roles were played by Chandra Mohan, Kumar, Pramila, Ajoori, Shehzadi and Gope. Pramila sang 3 songs in this film, Panjabi solo ‘raat haneri mahi ve vach chamkan taare’ & a duet with Kumar ‘is dil ka thikana kaun, jeene ka bahaana kaun’, both penned by D.N .Madhok and solo ‘hum to do bol keh ke hare hain’ penned by Saaliq Lucknowi. But this film flopped miserably.
Over the next two decades, Pramila and Kumar together produced ‘Bhalai’ (1943), ‘Bade Nawab Sahab’ (1944), ‘Naseeb’ (1945), ‘Devar’ (1946), ‘Dhun’ (1953) and ‘Bahana’ (1960) under the banner of ‘Silver Films’ and ‘Nehle Pe dehla’, (1946), ‘Dhoom Dhaam’ (1949) and ‘Dilbar’ (1951) under the banner of ‘Shama Productions’ and ‘Aap Beeti’ (1948) under the banner of ‘Kumar Studios Ltd.’ and ‘Badal aur Bijli’ (1956) and ‘Jungle King’ (1959) under the banner of ‘Artistes United’. Of these films, ‘Aap Beeti’, ‘Dhun’ and ‘Bahana’ were directed by Kumar and film ‘Badal aur Bijli’ was directed by Pramila and Kumar’s son Maurice Abraham. While Raj Kapoor and Nargis were the main leads of the film ‘Dhun’, Sajjan and Meena Kumari were seen essaying the main roles in ‘Bahana’. Composed by Madan Mohan, the songs of both the films were very popular in that eras.
Even though Pramila had turned producer, she continued to act in films made under other banners. Other than acting for her own banner, she was also seen working in other banners such as ‘Saheli’ (1942 / Star Productions), ‘Ulti Ganga’ (1942 / Minerva Movietone), ‘Saal Girah’ (1946 / B.Krishin Movietone), ‘Shalimar’ (1946 / Shourie Pictures-Lahore), ‘Doosri Shadi’ (1947 / B.Krishin Movietone), ‘Bequsoor’ (1950 / Madhukar Pictures), ‘Hamari Beti’ (1950 / Shobhna Pictures), ‘Majboori’ (1954 / Murli Movietone), Fighting Queen’ (1956 / N.K.G.Productions) and ‘Murad’ (1961 / N.K.G.Productions). She won the first ‘Miss India’ award started by a journalist association in 1947 and it is a record that exactly 20 years later i.e. in the year 1967 her daughter Naqi Jehaan won the same award. Naqi Jehaan was seen playing an important role in 1966’s film ‘Aakhri Khat’.
Pramila was taken aback by Kumar’s decision to migrate to Pakistan in the early 60’s. But despite all the pressures to leave India, she did not succumb to the same. Kumar’s departure not only affected Pramila’s personal life but her professional life was affected as well, and subsequently it broke her association with films completely. Film ‘Bahana’ of 1960 was her last film as a producer and 1961’s ‘Murad’ became her last movie as an actress. She faced many difficulties in life but never gave up, she didn't let her kids miss a father figure, she took on the responsibilities of a father and a mother both and in such a way, she imparted good ethics to them and provided them with a bright future.
Pramila spent her last 45 years in her bungalow ‘Pramila Niwas’ at ‘Shivaji Park-Dadar-West with her bustling family comprising of sons-daughters in law and grandchildren. Her younger son Hyder Ali is a well-known actor who made a mark for himself with Doordarshan’s serial ‘Nukkad’. Hyder Ali wrote the story-screenplay for Ashutosh Govarikar’s ‘Jodha Akbar’ in 2008 and the famous ‘Khwaja mere Khwaja’ song was filmed on him as well. Pramila’s daughter Naqi Jehaan alias Nandini Kamdar is married into the renowned business tycoon ‘Kamdar’ family of Mumbai.
Actress-Producer Pramila who has carved herself a special place in the history of Hindi Cinema, passed away on 6th August 2006 at the age of 90 in Mumbai.
Sir,
ReplyDeleteIt is an excellent article on Pramila.However few facts are missing.
1.Her name was not mentioned anywhere.Pramila was her film name.Her real name was Esther Victoria Abraham.
2.As a teenager she had eloped with a Marwari Theatre Director,mr.Maneklal Dangi.
3.After kumar left for Pakistan in 1963,she started living with a Parsi Filmmaker,Mr.Nari Ghadiali,for the next 4 decades,till she died.
-Arunkumar Deshmukh.
thanks for the information arun ji...her real name is very much there in the write up, please check 2nd paragraph, thanks.
ReplyDeleteso far other facts are concerned, though i know lots of such things about almost all the artistes yet my conscience doesn't allow me to include them into my writings until n unless they themselves reveal the same. gossips n spicy writings might be a part of 'cine-journalists' write-ups but not of 'film historians'...i would always like to be recognised as a sincere n serious film historian sir.
Regards....!!!
Sir,
ReplyDeleteI am sorry that I missed her name in the 2nd para.
I entirely agree with your thoughts about the 'other' info and appreciate your stand too.
I found this information given on a site run by Jews of India.
Henceforth,I will make it a point to ignore such info and ensure that I donot quote such matters in any comments anywhere.This is my firm resolution hereafter.
Thanks for making me realise.
My respect for you has increased manifolds after reading your views.
Thank you sir,
-AD
thanks for appreciation sir...bass aise hi himmat badhaate rahiye, hamaari koshishein jaari rahengi...waise filhaal bahut kuchh aur bhi add hona baaqi hai iss write up me, was out of station, returned today only...shall give finishing touch to the write up in a day or 2...regards!!!
ReplyDeleteVery useful and important information about Pramila. And congrats for showing an exemplary clarity.
ReplyDeleteसर मझे आपका ब्लॉग बेहद पसंद आया सर ,आप अपने इस ब्लॉग में १९७३ में आयी मूवी प्रेम पर्वत के बारे में जानकारी और फोटो देने की कोशिश करें इस फिल्म के हीरो सतीश कौल को फेसबुक पर मिला जा सकता है जो कि S.S.SCHOOL OF PERFORMING ARTS AN ACTING/DANCE/ACTION/DUBBING/SINGING. ETC. FOR MORE DETAIL CALL MR. SATISH KAUL 9920696633 & SUSHMA KAUL 9821323147 चला रहे हैं आप सोहराब मोदी की फिल्म भरोसा के बारे में भी अधिक जानकारी और फोटो देने की कोशिश करें
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 04 जून 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteएक विनम्र प्रश्न, "सम्बन्धित रचना को लिंक करने हेतु आपने मुझसे अनुमति ली क्या? यदि हां, तो कृपया साक्ष्य प्रस्तुत करें, मैं प्रतीक्षा में हूं| धन्यवाद|
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