“आहें न भरीं शिकवे न किए” – कल्याणी बाई
...........शिशिर कृष्ण शर्मा
सिनेमा के आकाश पर चमकते हज़ारों सितारों में कुछेक ऐसे भी होते हैं जो बहुत कम वक़्त के लिए क्षितिज पर उदय होते हैं, अपनी चमक से लोगों का मन मोहते हैं और फिर चाहे-अनचाहे कारणों से किसी उल्का की तरह टूटकर गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं।...और फिर लोगों के जहन पर चढ़ती वक़्त की धूल की परतों के नीचे दबकर वो चमक भी एक दिन सितारे की ही तरह कहीं अंधेरों में खो जाती है। ज़रीना उर्फ़ कल्याणी बाई गुज़रे ज़माने की एक ऐसी ही गायिका-अभिनेत्री थीं जिनके नाम का डंका तीस और चालीस के दशक में कोलकाता से लेकर लाहौर और मुंबई तक में बजता था और हरेक बड़ी फ़िल्म कंपनी उन्हें नौकरी पर रखने को लालायित रहती थी। कोलकाता की मशहूर कंपनी ‘न्यू थिएटर्स’ से फ़िल्मों में कदम रखने वाली उन्हीं कल्याणी बाई के आख़िरी कई बरस घोर आर्थिक अभावों से जूझते हुए मुंबई के माहिम में और उसके बाद जोगेश्वरी (पश्चिम) में गुज़रे थे।
दिल्ली के तुर्क़मान गेट इलाक़े की रहने वाली कल्याणी बाई को बचपन से ही गाने का शौक़ था जिसके चलते उन्होंने बाक़ायदा उस्ताद वज़ीरे ख़ां से संगीत सीखना शुरू किया था। फिर वो जल्द ही ऑल इण्डिया रेडियो और एच.एम.वी. पर भी गाने लगीं। उनकी गाई गज़लों, ख़्याल और ठुमरी के उस जमाने में कई रेकॉर्ड बने थे। कुछ साल पहले माहिम (पश्चिम) की दरगाह वाली गली के ‘टेकरीवाला बंगले’ के कल्याणी बाई के घर पर हुई मुलाक़ात के दौरान उन्होंने बताया था कि बोलती फ़िल्मों का दौर शुरू होते ही साफ़ ज़ुबान और सुरीला गाने वालों की मांग बढ़ गयी थी क्योंकि तब तक प्लेबैक चलन में आया नहीं था और कलाकारों को ख़ुद ही कैमरे के सामने गाना पड़ता था। ऐसे में एक रोज़ कल्याणी बाई को किसी रेकॉर्डिंग में देखकर पंजाब से दो भाई उनके घर आ पहुंचे। वो दोनों कल्याणी को लेकर फ़िल्म बनाना चाहते थे। उन्होंने कल्याणी के अब्बा की तमाम शर्तें मंज़ूर कर ली थीं इसलिए अब्बा-अम्मी अपने सभी 15 बच्चों को साथ लेकर कोलकाता चले गए।
ये वाक़या 30 के दशक के मध्य का है। उस वक़्त कल्याणी बाई की उम्र क़रीब 13 बरस की थी। कल्याणी के मुताबिक़ वो फ़िल्म ‘परदेसी’ आधी ही बन पायी थी कि दोनों भाईयों में झगड़ा हो गया और फ़िल्म बंद हो गयी। इस बात का पता चलते ही ‘न्यू-थिएटर्स’ के मालिक बी.एन.सरकार और संगीतकार आर.सी.बोराल ने कल्याणी को बुलाया और 250 रूपए महिने की पगार पर अपनी कंपनी में रख लिया। चूंकि उन्हें घर में सभी लोग ‘कल्लो’ कहकर बुलाते थे इसलिए आर.सी.बोराल ने ही उन्हें ज़रीना की जगह नया नाम ‘कल्याणी बाई’ दिया था।
कल्याणी के मुताबिक़ उन्होंने न्यू थिएटर्स की साल 1937 में प्रदर्शित हुई चारों फ़िल्मों, ‘अनाथ आश्रम’, ‘मुक्ति’, ‘प्रेसिडेंट’ और ‘विद्यापति’ में पृथ्वीराज कपूर, त्रिलोक कपूर, उमाशशि, जगदीश सेठी, पी.सी बरूआ, कानन देवी, पंकज मल्लिक, के.एल.सहगल, लीला देसाई, पहाड़ी सान्याल, के.सी.डे और के.एन.सिंह जैसे दिग्गजों के साथ अभिनय तो किया ही था, अपने लिए कुछ गीत भी गाए थे।
इन गीतों में आर.सी.बोराल के संगीत में केदार शर्मा का लिखा फ़िल्म ‘अनाथ आश्रम’ का गीत ‘पायल बाजे छनन सखी’ उस जमाने में बेहद मशहूर हुआ था। इसी तरह से फ़िल्म ‘मुक्ति’ में पंकज मल्लिक द्वारा संगीतबद्ध किए और कल्याणी के गाए दो गीत, असगर हुसैन ‘शोर’ का लिखा ‘हम बेक़सों को पूछने वाला कोई नहीं’ और ‘प्रेम’ का लिखा और पंकज मल्लिक के साथ गाया दोगाना ‘दुखभरे दुखवाले, शराबी सोच न कर मतवाले’ भी बेहद सराहे गए थे। कल्याणी के मुताबिक़ उस ज़माने में प्लेबैक अपने शुरूआती दौर में था जिसकी शुरूआत ‘न्यू थिएटर्स’ की ही 1935 में बनी फ़िल्म ‘धूपछांव’ से हुई थी। चूंकि अगले क़रीब डेढ़ दशक तक फ़िल्म के रेकॉर्ड्स पर बजाय असली गायक के, फ़िल्म के उस क़िरदार का नाम दिए जाने का चलन था, जिस पर वो गीत फ़िल्माया गया हो, इसलिए कल्याणी समेत उस दौर के तक़रीबन सभी गायक-गायिकाओं के गाए कई गीतों की पुष्टि कर पाना आज संभव ही नहीं है।
कल्याणी के गायन और अभिनय से मुंबई स्थित ‘रणजीत मूवीटोन’ के मालिक सरदार चंदूलाल शाह इतने प्रभावित थे कि ‘न्यू थिएटर्स’ के साथ कल्याणी के कांट्रेक्ट के ख़त्म होते ही उन्होंने कल्याणी को 800 रूपए महिने पर मुंबई बुलवा लिया। साल 1937 में प्रदर्शित हुई ‘तूफ़ानी टोली’ रणजीत मूवीटोन के बैनर में कल्याणी की पहली फ़िल्म थी जिसके निर्देशक थे जयंत देसाई और संगीतकार थे ज्ञानदत्त। इसमें कल्याणी के तीन गीत थे, जिनमें प्यारेलाल संतोषी का लिखा सोलो था ‘कोई आकर ये समझाए...’ और आरज़ू लखनवी का लिखा दोगाना था ‘छतियन धड़के अंखियन फड़के...’, जो कल्याणी और कांतिलाल की आवाज़ों में था। प्यारेलाल संतोषी का ही लिखा एक अन्य गीत ‘रानी रानी रानी आओ सुनाऊं मन की नगरी की तुमको एक कहानी...’ कांतिलाल, कल्याणी और ई.बिलिमोरिया ने गाया था।
साल 1938
में कल्याणी ने रणजीत मूवीटोन के बैनर में बनी कुल 8 में से 4 फ़िल्मों ‘बिल्ली’, ‘गोरख आया’, ‘पृथ्वीपुत्र’ और ‘सेक्रेट्री’ में अभिनय के साथ-साथ गीत भी गाए। इन सभी फ़िल्मों के संगीतकार ज्ञानदत्त और गीतकार प्यारेलाल संतोषी थे। ये गीत थे, ‘पा ली मैंने पा ली, गाड़ी पों पों वाली’ (‘बिल्ली’ / कल्याणी और कांतिलाल), ‘वो दिन गए हमारे, मैं थी छैल छबीली राधा’ (‘गोरख आया’ / कल्याणी और राजकुमारी), ‘नारायण को भूल न जा रे’ (‘पृथ्वीपुत्र’ / कल्याणी) और ‘कहां छुपा है चितचोर’ और ‘कौन राह तू जाए मुसाफ़िर’ (‘सेक्रेट्री’ / कल्याणी)। साल 1939 में इसी बैनर की कुल प्रदर्शित 4
फ़िल्मों में से एक, ‘नदी किनारे’ में कल्याणी ने अभिनय के अलावा कांतिलाल के साथ मिलकर एक दोगाना ‘वो दिल ही नहीं जिसमें न हो चाह किसी की’ गाया था। साल 1940 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘आज का हिंदुस्तान’ में कल्याणी ने सिर्फ़ अभिनय किया और फिर वो ‘रणजीत मूवीटोन’ से अलग हो गयीं। उधर साल 1939 में बनी निर्देशक डी.एन.मधोक की पंजाबी फ़िल्म ‘मिर्ज़ा साहिबां’ में उनका गाया गीत ‘मेरा रब वे दिलां तो नेड़े...’ भी काफ़ी मशहूर हुआ था।
‘रणजीत मूवीटोन’ से अलग होने के बाद कल्याणी ने ‘सुपर पिक्चर्स’ की ‘कन्यादान’ (1940), ‘मोहन पिक्चर्स’ की ‘जादुई कंगन’ (1940), ‘मुस्लिम का लाल’ (1941) और ‘जादुई अंगूठी’ (1948), ’तरूण पिक्चर्स’ की ‘प्रभात’ (1941), ‘सनराईज़ पिक्चर्स’ की ‘घर की लाज’ (1941), ‘घर-संसार’ (1942), ‘मालन’ (1942) और ‘मां-बाप’ (1944) और ‘राधिका पिक्चर्स’ की ‘प्यारा वतन’ (1942) जैसी कई फ़िल्मों में नायिका से लेकर खलनायिका तक के किरदार निभाने के साथ-साथ गीत भी गाए। उनके गाए कई गीत उस जमाने में बेहद मशहूर हुए थे, जैसे – ‘आ आ री निंदिया’ और ‘मन दुख से क्यूं घबराता है’ (‘प्रभात’-1941 / गीत : एहसान रिज़वी / संगीत : शांति कुमार), ‘जवानी जवानी सुंदर छब दिखलाए’, ‘दिल है तुम्हारी याद की दुनिया लिए हुए’ और सहगायिका कौशल्या के साथ ‘हम गाएं तुम नाचो’ (‘घर की लाज’-1941 / गीत : एहसान रिज़वी / संगीत : अन्नासाहब माईनकर),
‘जी में ठनी है के हंस हंस के रूलाना होगा’ और ‘बादरवा बरसन को आए दिन दिन बीती जाए जवानी’ (‘घर संसार’-1942
/ गीत : एहसान रिज़वी / संगीत : श्याम बाबू पाठक), ‘श्याम न अब तक आए सखी री’ और ‘ऐसे बेदर्द हो तुम जिसपे कोई ज़ोर नहीं’ (‘मालन’-1942 / गीत : एहसान रिज़वी / संगीत : श्याम बाबू पाठक), ‘मिस्ल-ए-ख़्याल आए थे आकर चले गए’ (‘आईना’-1944 / गीत : पंडित फ़ानी / संगीत : गुलशन सूफ़ी) और इन सबसे बढ़कर नूरजहां और जोहराबाई अंबालेवाली के साथ मिलकर गाई हिंदी सिनेमा के इतिहास की पहली क़व्वाली ‘आहें ना भरीं शिकवे ना किए’ (‘ज़ीनत’-1945 / गीत : नख़्शब / संगीत : हफ़ीज़ ख़ां) जिसमें श्यामा और शशिकला पहली बार परदे पर नज़र आई थीं। इनके अलावा अन्य कलाकारों में यास्मीन, ज़ेबुन्निसा, रेहाना, ज़ोहराबाई और ख़ुद कल्याणी भी इस क़व्वाली में शामिल थीं|
साल 1948 में शादी के बाद कल्याणी तमाम फ़िल्मी चकाचौंध से दूर होकर घर-गृहस्थी में जुट गयीं। फिर कई दशकों बाद उन्होंने ‘आ जा सनम’ (1975), ‘प्रेम कहानी’ (1975), ‘आख़िरी सजदा’ (1977) और ‘सलाम-ए-मुहब्बत’ (1983) जैसी फ़िल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं निभाईं लेकिन करियर का ये दूसरा दौर उन्हें रास नहीं आया और वो हमेशा के लिए फ़िल्मी दुनिया से किनारा करके ख़ामोशी से बेटे-बहू, पोते-पोतियों के साथ ज़िंदगी गुज़ारने लगीं।
उनके शौहर का इंतकाल बहुत पहले हो चुका था और बेटा फ़िल्मों में स्पॉट-ब्वाय का काम करके जैसे-तैसे घर चला रहा था। रिचर्ड एटनबरो द्वारा बनाए गए ‘गांधी वेलफ़ेयर ट्रस्ट’ से कल्याणी को हर महिने 750 रूपए की पेंशन मिलती थी लेकिन आर्थिक बदहाली से निजात उन्हें आख़िरी वक़्त तक नहीं मिली। तमाम मुश्क़िलों के बावजूद उनकी ख़ुद्दारी ने किसी से भी ‘शिकवे’ करने की इजाज़त उन्हें कभी नहीं दी। उनकी ख़ुद्दारी का ही नतीजा था कि देवआनंद और सुनील दत्त जैसे सुपरस्टार तक हमेशा उनके साथ बेहद अदब से पेश आते रहे। और फिर 1 अक्तूबर 2009 को 86-87 साल की उम्र में अपने दौर की वो महान कलाकार इस दुनिया को अलविदा कह गयीं।
We
are thankful to –
Mr.
D.B. Samant, Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for
their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr.
Sanjeev Tanwar for providing some of the rare pictures.
Ms. Akhsher Apoorva for the English
translation of the write up.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
“Aahein
Na bhareen Shikwe Na Kiye” – Kalyani Bai
..........Shishir Krishna Sharma
Of the many stars of the cine world there are some that rise up on the horizon for a very limited time, but their luminance wins over everyone’s heart and then for reasons unknown that bright star breaks and falls away into the abyss of the unknown…and then buried underneath the sands of time, one day, the sparks of memories of that bright star dwindles away as well, just like that. Yesteryears singer-actress Zarina alias Kalyani Bai was one such whose name was so well-known during the 30’s and 40’s that every major film company from Kolkata to Lahore and Mumbai were eager for her to work with them. The same Kalyani Bai who forayed into films through the famous company ‘New Theatres’ spent her last years immersed in grave economic depravity in Mumbai’s Mahim and then in Jogeshwari (West).
Hailing from Turkman Gate in Delhi, Kalyani Bai was passionate about
singing from a very young age and subsequently started her formal training with
Ustad Wazire Khan and in no time started singing for All India Radio and
HMV. That era saw an influx of records made from the many Ghazals, Khyaal &
Thumris that she had sung. When I spoke to her at her house situated
in ‘Tekriwala bunglow’ on Dargah lane in Mahim (West), a few years back, Kalyani Bai said that
with the advent of talkie films the demand for well enunciated and melodious
singers suddenly went up as till then playback hadn’t been the trend and actors
would themselves have to sing the songs live in front of the camera. In midst
of this, one day, two brothers from Punjab saw her in a recording and came over
to her house. They wanted to make a film with Kalyani. They agreed to all the
conditions that Kalyani’s Abba put forth and hence Abba-Ammi along with their
15 children went on to Kolkata. This was during the Mid 30’s. Kalyani Bai was
approximately 13 years old at that time. This film ‘Pardesi’, according to
Kalyani, was completed halfway when a spat took place between the two brothers
and the film had to be shut down. As soon as B.N.Sircar, the owner of ‘New
Theatres’ and R.C.Boral, the music director came to know of this, they called
Kalyani and immediately employed her in their company at a salary of Rupees 250
a month. Since her nickname was ‘Kallo’, R.C.Boral gave Zarina a new name and
henceforth she came to be known as ‘Kalyani Bai’.
Kalyani was featured in all the four films released by New Theatres in 1937 viz ‘Anath Ashram’, ‘Mukti’, ‘President’ and ‘Vidyapati’, here she not only acted alongside heavyweights like Prithviraj Kapoor, Trilok Kapoor, Uma Shashi, Jagdish Sethi, P.C.Barua, Kanan devi, Pankaj Mullick, K.L.Sehgal, Leela Desai, Pahadi Sanyal, K.C.Dey, and K.N.Singh, she also sang some songs for her characters in those films. Out of these songs, ‘payal baaje chhanan sakhi’ of the movie ‘Anath Ashram’ written by Kedar Sharma and composed by R.C.Boral had gained much popularity in that era. Similarly songs ‘hum bekason ko poochhne waala koi nahin’ (Kalyani / lyrics: Asgar Hussain ‘Shor’) and a duet ‘dukh bhare dukh waale, sharabi soch na kar matwaale’ (Kalyani & Pankaj mullick / lyrics : ‘Prem’) both composed by Pankaj Mullick for film ‘Mukti’ gained much fame as well. According to Kalyani, playback was in its initial phase and had just been introduced in 1935 by ‘New Theatres’ in their film ‘Dhoop Chhaon’. And in practice, it wasn’t the singer’s name (who had actually sung the song) that appeared on the music records but the name of the character of the movie on whom the song was filmed and since this practice continued for another one and a half decade, it is virtually impossible to verify the songs sung by almost all the artists of that era including Kalyani.
Mumbai based Sardar Chandulal Shah, owner of ‘Ranjit Movietone’, was so impressed by Kalyani’s singing and acting skills that as soon as her contract with new theaters was over, he called Kalyani to Mumbai and employed her at Rupees 800 per month. In 1937, ‘Toofani Toli’ was Kalyani’s first movie to be screened under the banner of Ranjit Movietone. The film was directed by Jayant Desai and Gyan Dutt was its music composer. Kalyani sung three songs for this movie of which one was ‘koi aakar ye samjhaaye’, a solo written by Pyarelal Santoshi and another was ‘chhatiyan dhadke ankhiyan phadke’, a duet written by Arzoo Lucknowi and sung by Kalyani and Kantilal. Also an ensemble song, written by Pyarelal Santoshi, ‘rani rani rani aao sunaoon mann ki nagri ki tumko ek kahani’ was sung by Kantilal, Kalyani and E.Billimoria.
In 1938 Ranjit Movietone made a total of 8 films under its banner of which Kalyani sang and acted in 4 viz. ‘Billi’, ‘Gorakh Aya’, ‘Prithvi Putra’ and ‘Secretary’. Gyan Dutt was the composer and Pyarelal Santoshi was the lyricist for all of these films. The songs were, ‘paa li maine pa li gaadi poun poun waali’ (‘Billi’ / Kalyani, Kantilal), ‘wo din gaye hamare, mai thi chhail chhabili radha’ (‘Gorakh Aya’/ Kalyani, Rajkumari), ‘narayan ko bhool na ja re’ (‘Prithvi Putra’ / Kalyani ) and ‘kahan chhupa hai chitchor’ & ‘kaun raah tu jaaye musafir’ (‘Secretary’ / Kalyani ). In the year 1939 of the 4 films that were screened under this banner, in ‘Nadi Kinare’ Kalyani acted as well as sang a duet ‘wo dil hi nahi jisme na ho chah kisi ki’ with Kantilal. In the year 1940 Kalyani merely acted in ‘Aaj Ka Hindustan’ after which she parted ways from ‘Ranjit Movietone’. Her song ‘mera rabb we dilaan to nede’ from director D.N.Madhok’s Panjabi film ‘Mirza Sahiban’ from the year 1939 also gained lots of popularity.
After parting ways from ‘Ranjit Movietone’, Kalyani appeared in movies like ‘Super Picture’s’ ‘Kanyadan’ (1940), ‘Mohan Picture’s’ ‘Jadui Kangan’ (1940), ‘Muslim ka laal’ (1941) and ‘Jadui Angoothi’ (1948), ‘Tarun Picture’s’ ‘Prabhat’ (1941), ‘Sunrise Picture’s’ ‘Ghar ki laaj’ (1941), ‘Ghar Sansar’ (1942), ‘Malan’ (1942) and ‘Maa Baap’ (1944) and ‘Radhika Picture’s’ ‘Pyara Watan’ (1942) where she not only played a range of roles from that of a heroine to a vamp, but she also sang many songs for these films. Songs sung by her had gained much appeal among the masses such as, ‘aa aa ri nindia’ & ‘mann dukh se kyon ghabrata hai’ (‘Prabhat’ -1941 / Lyrics : Ehsan Rizvi / Music : Shanti Kumar), ‘jawani jawani sunder chhab dikhlaaye’, ‘dil hai tumhari yaad ki duniya liye hue’ & duet with kaushalya ‘hum gayein tum nacho’ (‘Ghar ki laaj’-1941 / Lyrics : Ehsan Rizvi / Music : Annasaheb Maainkar), ‘ji me thani hai ke hans hans ke rulana hoga’ & ‘badarwa barsan ko aaye din din beeti jaaye jawani’ (‘Ghar Sansar’ -1942 / Lyrics : Ehsan Rizvi / Music : Shyam Babu Pathak), ‘shyam na ab tak aye sakhi ri’ & ‘aise bedard ho tum jispe koi zor nahin’ (‘Malan’-1942 / Lyrics : Ehsan Rizvi / Music : Shyam Babu Pathak), ‘misl-e-khyal aaye the aakar chale gaye’ (‘Aaina’-1944 / Lyrics : Pandit Faani / Music : Gulshan Sufi) but one that predominates all is the first film-qawaali of the history of Indian Cinema ‘aahein naa bhareen shikwe naa kiye’ (‘Zeenat’-1945 / Lyrics : Nakhshab / Music : Hafeez Khan) sung by Kalyani, Noorjehan and Johrabai Ambalewali in which Shyama and Shashikala were seen on the big screen for the first time ever. Others who were seen on screen in this qawwali were Yasmin, Zebunnisa, Rehana, Zohrabai and Kalyani Bai herself.
After her marriage in the year 1948, Kalyani left aside the ostentatious world of glamour and completely immersed herself in her domesticated life. After a number of decades she was once again seen in movies like ‘Aa Ja Sanam’ (1975), ‘Prem Kahani’ (1975), ‘Aakhiri Sajda’ (1977) and ‘Salaam-E-Mohabbat’ (1983) where she played a number of small character roles but her comeback films couldn’t bring back the magic that once was and she bid her final farewell to the big screen and spent the rest of her days quietly with her son, daughter-in-law and grandchildren. Her husband had died very early on and her son, working as a spot boy in films, barely managed to keep the household running. Although she had some relief in the form of pension of Rupees 750 per month through the ‘Gandhi Welfare Trust’ set up by Richard Attenborough, Kalyani could never rise above the financial difficulties of livelihood till the very end. Despite all the pains and troubles that she faced, she never uttered a single word of complain. And it was this decorous and dignified nature of hers that even superstars like Dev Anand and Sunil Dutt always showered her with the utmost respect. And then on 1st October 2009 at the age of 86-87, this remarkable artist of her era took her final journey.
Very good write up shishir , strange is the world of films it takes you to the peak and in the end leads you no where, a top star like her had to survive on a pension very disturbing . [ Ajay kanagat bangalore]
ReplyDeletethanks ajay ji...lots of such write ups are there in the queue...a series on history of various studios of that era e.g. ranjit, wadia, bombay talkies etc.etc.is among them...
ReplyDeleteKalyani Bai ke baare me chhoti jaankariyan thi lekin aapne sab kuchh bata diya...afsos ki industry me koi kisi ke kaam nahin aata hai. kalyani bai khuddar thi lekin industry ko khayal toh rakhna chaahiye tha.
ReplyDeleteVery good information on Kalyani. Thanx for sharing this valuable info.
ReplyDeleteभूले बिसरे, गुमनामी की जिंदगी जीने वाले, कालाकारों की जानकारी विश्व भर में पहुंचाने के लिये आपका कोटि कोटि धन्यवाद ! इस फिल्म उद्योग में सिर्फ चढ़ते सूरज को प्रणाम किया जाता है - जो एक बार आँख से ओझल हो गया उसे मानो सारा संसार भूल गया | कटु , मगर सत्य ...
ReplyDeleteभूले बिसरे, गुमनामी की जिंदगी जीने वाले, कालाकारों की जानकारी विश्व भर में पहुंचाने के लिये आपका कोटि कोटि धन्यवाद ! इस फिल्म उद्योग में सिर्फ चढ़ते सूरज को प्रणाम किया जाता है - जो एक बार आँख से ओझल हो गया उसे मानो सारा संसार भूल गया | कटु , मगर सत्य ...
ReplyDeletehum nayi peeedhi ke logo ke liye purane zamane ke aise sunahre motiyo ko beete samay ki seepiyo se chura lana apne aap me behad umada kaam hai...iske liye aapka sadhuvaad :) lekh padhkar bahut achcha laga....!!!
ReplyDeleteधन्यवाद आनंदजी, बीरेनजी और प्रशांत...!!!
ReplyDeleteप्रशांत, ब्लॉग अभी शैशवावस्था में है और मेरे तकनीकी ज्ञान से प्रभु भी डरते हैं। सीपियों में बेशुमार अनमोल मोती छिपे हुए हैं, उन्हें बाहर लाने की ज़िम्मेदारी मेरी है, लेकिन सीपियों के मुंह तो तुम्हें ही खोलने हैं !!!...समय निकालो...!!!-:):)
Shishirji, my best wishes for your wonderful success! Your efforts, sooner or later are going to be the part of the history of Indian cinema. There are very few people who are interested in searching and researching the ancient pages of the history. It is again a very creative idea to include its English version of the text for wider range of readers . Aksher Apoorva’s language, unlike the other translated version, is flawless and crisp .It gives a tinge of original writing. I congratulate your entire team for this creative historical journey . God bless you all.
ReplyDeleteधन्यवाद राधेश्याम जी, आप सभी पाठकों का स्नेह यथावत मिलता रहे, ब्लॉग के स्तर को बनाए रखने का वादा हमारा है। सुश्री अक्षर अपूर्वा और प्रशांत कुमार के सहयोग के बिना ब्लॉग के निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। ब्लॉग फ़िलहाल प्रारंभिक अवस्था में है, रूपाकार ले ही रहा है, शीघ्र ही हमारी टीम का परिचय भी पाठकों के सामने आएगा जिसके चौथे सदस्य हैं मनस्वी शर्मा जो आने वाले दिनों में 'ऑन कैमरा' लिए गए इंटरव्यूज़ (वीडियोज़) का संपादन करेंगे !!!
ReplyDeletenamskaar
ReplyDeletethanks very good old is gold
वाह वाह! न जाने कैसे आप इतने नायब इंटरव्यू लेते हैं हमारे फिल्मों के बड़े - बड़े कलाकारों की. कल्याणी जी के बहुत कम गाने मिलते हैं लेकिन जब मैंने कुछ साल पेहले उनको 'आहें न भरीं' गीत में सबसे पहले सुना था तो वो मुझे बहुत ही भा गईं. मैं उनके बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक था और आपने मेरी तमन्ना पूरा कर दिया है. आपका बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteलेकिन उन्होंने पार्श्व गायन भी किया था, नहीं? जैसे कि तलाश (१९४३), क़िस्मतवाला (१९४४), गाँव की गोरी (१९४५), घर (१९४५), ज़ीनत (१९४५), अरब का सितारा (१९४६), मेहँदी (१९४७), पतझड़ (१९४८), शिक़ायत (१९४८), दिल की दुनिया (१९४९), जन्नत (१९४९),परदा (१९४९), सुनहरे दिन (१९४९), रशीद दुल्हन (१९५०), ग़ज़ब (१९५१), मान (१९५०). इनमें से तो बहुत फिल्में १९४८ के बाद में हैं न, तो मेरे ख्याल से उन्होंने शादी के बाद भी थोड़े से गीत गाये होंगे फिल्मों में, पार्श्व गायिका के रूप में. और एक बात, क्या वे ज़ीनत (१९४५) के क़व्वाली और अमीरबाई कर्नाटकी जी और ज़ोहराबाई अम्बलेवाली जी के साथ गाए 'सखी आया सावन आया' गानों में आई थीं? मुझे लगता है कि क़व्वाली के 'इस पर भी मोहब्बत चुप न सकी' - पंक्ति में और 'सखी आया' गीत के 'मुझ पर भी जवानी लाई' - पंक्ति, इन दोनों में वो आई थीं. वैसे देखा जाए तो उन्होंने फिल्मों में काफी क़व्वालियाँ गाए हैं. उन्होंने ज़ीनत फिल्म में शादी का गाना 'दुल्हन बन जाओ' भी ज़ोहराबाई अम्बलेवाली जी (वे भी इस गाने में आई थीं!) और मेनका शिरोडकर जी के साथ गाए थे. बड़ा ग़म कि बात है कि फिल्मों में वो इतनी आसानी से भूली गईं.
कल्याणी जी के तस्वीर देखके मुझे एकदम मुक्ति (१९३७) में वे याद आ गईं. क्या कल्याणी जी अभी जिंदा हैं? उनका जनम कब हुआ था? इंटरव्यू पढ़कर बड़ी ख़ुशी हवी. ऐसे ही अच्छे इंटरव्यू लिखते रहिएगा.
Life itself is very ruthless, leaving hardly any room for carrying the emotions.
ReplyDeleteBut the world of Glamour is absolutely ruthless. RK had symbolized this ruthlessness so succinctness in Mera Naam Joker, when Padmini says to Raj Kapoor to leave back her dog, as 'अब उसकी क्या जरुरत है?'.
The articles like this leave a very poignant taste of that ruthlessness, and points once again to the ephemeral nature of the emotional relationships.