Thursday, May 22, 2014

“Lagat Najar Tori Chhalaiyaan” – Dr. Sushila Rani Patel

लगत नजर तोरी छलैयां” – डॉ. सुशीला रानी पटेल

                     ...........शिशिर कृष्ण शर्मा


1940 के दशक में हिंदी सिनेमा में एक नयी गायिका-अभिनेत्री ने कदम रखा था। उस ज़माने के स्टार अभिनेताओं मज़हर ख़ान और त्रिलोक कपूर के साथ उन्होंने दो फ़िल्मों में नायिका की भूमिका की और साथ ही उन फ़िल्मों में गीत भी गाए। लेकिन एक उत्कृष्ट गायिका और प्रतिभाशाली अभिनेत्री के तौर पर पहचान बना लेने के बावजूद उन्होंने फ़िल्मोद्योग को अलविदा कहा और ख़ुद को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रति समर्पित कर दिया। उन्हीं सुशीला रानी पटेल का नाम आज शास्त्रीय गायन के क्षेत्र में अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है।

सुशीला रानी पटेल से मेरी पहली मुलाक़ात कॉलम ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ के सिलसिले में जनवरी 2006 के दूसरे हफ़्ते में पाली हिल के उनके बंगले ‘गिरनार’में हुई थी। उनका वो इण्टरव्यू 21 जनवरी 2006 के सहारा समय में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद वो 5 मई 2007 को संगीतकार नौशाद की पहली बरसी पर उनके कार्टर रोड स्थित  बंगले ‘आशियाना’ में मिली। अवसर था कार्टर रोड के नए नामकरण “संगीतकार नौशाद अली मार्ग” के समारोह का।

सुशीला रानी का जन्म 20 अक्टूबर 1918 को उत्तरी कर्नाटक के एक चित्रपुर सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता चेन्नई हाईकोर्ट में वक़ील थे। सुशीला रानी कहती हैं, “संगीत के प्रति रूझान मुझे मेरी मां से विरासत में मिला था जो ख़ुद भी एक अच्छी गायिका थीं। बचपन से ही उस्ताद करीम ख़ां, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर और उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ां साहब के रेकॉर्ड सुनसुनकर मैं उनके जैसा गाने की कोशिश करती थी, लिहाज़ा सुरों पर मेरी पकड़ मज़बूत होती चली गयी थी। साल 1938 में मैंने पहली बार ‘ऑल इण्डिया रेडियो’ पर गाया था।”

पढ़ने-लिखने में भी सुशीला रानी बेहद तेज़ थीं। प्रथम श्रेणी में एम.ए. और एल.टी. की डिग्री हासिल करने के बाद साल 1942 में वो चेन्नई से मुम्बई चली आयीं। वो कहती हैं, “गायन के अलावा मुझे लिखने का भी बेहद शौक़ था। मेरे मुम्बई आने की वजह भी यही थी कि मैं पत्रकार बनना चाहती थी। इसी सिलसिले में मेरी मुलाक़ात मशहूर फ़िल्म पत्रकार और ‘फ़िल्म इण्डिया’ पत्रिका के सम्पादक बाबूराव पटेल से हुई जिन्होंने मुझे अपनी पत्रिका में उप-सम्पादक की नौकरी दे दी। लेकिन वो मेरे गायन से कहीं ज़्यादा प्रभावित थे और उन्हीं के ज़रिए मैं एच.एम.वी. तक पहुंची थी।” उस ज़माने में सुशीला रानी के कई ग़ैर-फ़िल्मी गीतों और शास्त्रीय गायन के रेकॉर्ड बाज़ार में आए और पसंद भी किए गए।


पत्रकार होने के साथ साथ बाबूराव पटेल एक फ़िल्मकार भी थे। साल 1944 में उन्होंने सुशीला रानी को नायिका की भूमिका में लेकर फ़िल्म ‘द्रौपदी’ का निर्माण किया। उस फ़िल्म में सुशीला रानी के नायक उस ज़माने के स्टार अभिनेता मज़हर ख़ान थे। हनुमान प्रसाद के संगीत में शास्त्रीय रागों पर सुशीला रानी के गाए फ़िल्म ‘द्रौपदी’ के सभी गीत उस दौर में काफ़ी पसंद किए गए थे। साल 1946 में बाबूराव पटेल ने फ़िल्म ‘ग्वालन’ का निर्माण किया। इस फ़िल्म में सुशीला रानी के नायक त्रिलोक कपूर थे। संगीत हंसराज बहल का था और फ़िल्म के कुल 10 गीतों में 6 सोलो और 2 युगल गीत सुशीला रानी ने गाए थे।

सुशीला रानी बताती हैं, “साल 1945 में मैंने बाबूराव पटेल से शादी की और अभिनय को अलविदा कहकर अपना पूरा ध्यान शास्त्रीय संगीत की ओर लगा दिया। पद्मभूषण मोगूबाई कुर्डीकर, उस्ताद अल्लादिया ख़ां, और सुंदराबाई जाधव की शागिर्दी में मैंने विधिवत रूप से शास्त्रीय गायन, ख़याल गायन और सुगम संगीत सीखा। और तब से मैं लगातार तानसेन समारोह, प्रयाग संगीत समिति समारोह, पं.ओंकारनाथ ठाकुर संगीत समारोह आदि के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी गायन के कार्यक्रम प्रस्तुत करती आ रही हूं”।

आज प्रीति उत्तम, श्रावणी मुकर्जी, शोभा भावे, राधिका नायक और सुजाता मोघे समेत सुशीला रानी पटेल की कई शिष्याएं संगीत के क्षेत्र में अपनी अच्छी पहचान बना चुकी हैं। केन्द्र सरकार की संगीत सलाहकार समिति, फ़िल्म एवं दूरदर्शन संस्थान (पुणे) और सेंसर बोर्ड की सदस्या रह चुकीं सुशीला रानी पटेल को देश की कई ख्यातिप्राप्त संस्थाओं द्वारा ‘सुरश्री’, ‘सुस्वरवाणी’, ‘संगीत सरस्वती’, ‘संगीत सुधा’, ‘स्वर कौमुदी’ के अलावा ‘महाराष्ट्र राज्य सांस्कृतिक पुरस्कार’ और (तत्कालीन) राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे.अबुल कलाम के हाथों ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है।

बाबूराव पटेल की प्रेरणा से सुशीला रानी पटेल ने 61 साल की उम्र में गोल्ड मैडल के साथ एल.एल.बी और फिर एल.एल.एम. की डिग्री हासिल की और उनका नाम आज भी मुम्बई उच्च न्यायालय में बतौर वकील पंजीकृत है। इसके अलावा वो एक सफल होम्योपैथ भी हैं। आने वाले अक्टूबर माह में 96 साल की होने जा रही सुशीला रानी पटेल से मेरी हालिया मुलाक़ात विगत फ़रवरी माह में हुई| अवसर था, 1930 और 40 के मशहूर बैनर ‘सागर मूवीटोन’ पर गुजराती के सम्मानित लेखक मित्र श्री बीरेन कोठारी द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन समारोह| इस पुस्तक का विमोचन ख़ार जिमखाना में हुए समारोह में अभिनेता आमिर खान के हाथों हुआ था| 

सुशीला रानी पटेल के पति बाबूराव पटेल का निधन 4 सितम्बर 1982 को हुआ था। तबसे वो अपने विशाल बंगले ‘गिरनार’ में अकेली रह रही हैं।

सुशीला रानी पटेल का निधन 24 जुलाई 2014 को 96 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ| 


We are thankful to

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Aksher Apoorva for the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Lagat Najar Tori Chhalaiyaan” Dr. Sushila Rani Patel  

                                 ...........Shishir Krishna Sharma

In 1940’s, a new singer-actress stepped into Hindi cinema. She not only played the main lead in two different films opposite then superstars Mazhar Khan and Trilok Kapoor but also sang in them. In spite of instant recognition as a melodious singer and a talented actress, she soon bid adieu to the films and devoted herself to Hindustani Classical Music. That Sushila Rani Patel is a highly respected name in the field of classical singing today.

I first met Sushila Rani Patel in the 2nd week in January 2006 at her Pali Hill bungalow ‘Girnar’ for my column ‘Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon” and her interview was published in ‘Sahara Samay’ on 21st January 2006. The second time I met her was at composer Naushad’s Carter Road bungalow ‘Ashiana’ on the occasion where Carter Road was being renamed as ‘Composer Naushad Ali Road’ on his first death anniversary on 5th May 2007.  

Sushila Rani was born on 20th October 1918 in a Chitrapur Saraswat Brahmin family of North Karnataka. Her father was a practicing advocate at Chennai High Court. Sushila Rani says, “Music was in my blood as my mother was a good singer. I played the records of Ustad Kareem Khan, Pandit Onkar Nath Thakur and Ustad Fayyaz Khan and tried to copy them ever since I was kid which led to strengthening the hold on my musical notes. I got my first chance to sing on ‘All India Radio’ in the year 1938”.

Sushila Rani was a bright student. She passed her M.A. and L.T. degrees in first class and then shifted to Mumbai in the year 1942. She says, “Apart from singing, I had a passion for writing and the reason behind my coming to Mumbai was to become a journalist. I met renowned film journalist Baburao Patel who was the editor of the film magazine ‘Film India’. He immediately hired me as the sub-editor in his magazine. But he was more impressed with my singing and it was through him that I reached H.M.V”. A number of Sushila Rani’s non-film and classical records came into market and were appreciated during that period.

Apart from renowned journalist, Baburao Patel was a film maker too. He made a film ‘Draupadi’ in the year 1944 with Sushila Rani as the main lead. Sushila Rani’s hero in the film was that time star actor Mazhar Khan. Based on classical ragas, all songs sung by Sushila Rani under the baton of composer Hanuman Prasad in the movie ‘Draupadi’ were highly appreciated by the audiences. In the year 1946 Baburao Patel made another movie ‘Gwalan’. Sushila Rani’s hero in ‘Gwalan’ was Trilok Kapoor. Out of total 10 songs of ‘Gwalan’ which were composed by Hansraj Behl, Sushila Rani sang 6 solo and 2 duets.

Sushila Rani says, “After my marriage with Baburao Patel, I bid adieu to the films and devoted myself completely to classical singing. I duly started taking music lessons from Padm-Bhushan Mogubai Kurdikar, Ustad Alladia Khan and Sundarabai Jadhav and learned Classical singing, Khyaal singing and light music. Since then I have been continuously presenting singing programs on Akashwani and Door Darshan along with many music festivals which include Tansen Samaroh, Prayag Sangeet Samiti Samaroh, Pandit Onkar Nath Thakur Sangeet Samaroh”.

Today, many of Sushila Rani Patel’s disciples including Preeti Uttam, Shrawani Mukerjee, Shobha Bhave, Radhika Nayak and Sujata Moghe have successfully made a name for themselves in the field of music. She has been a member of central government’s music advisory board, the Film & T.V. Institute (Pune) and the Censor Board. She has also been honoured with ‘Maharashtra Rajya Sanskritik Puraskar’ and the titles of ‘Sur Shri’, ‘Suswarvani’, ‘Sangeet Saraswati’, ‘Swar Kaumudi’ by some of country’s well known organizations. She has also been honoured with ‘Sangeet Natak Academy Award’ by the then president Dr. A.P.J.Abul Kalaam.

With encouragement from Baburao Patel, Sushila Rani Patel passed L.L.B. and then L.L.M. with first division marks at the age of 61 and her name is still registered as an advocate in the Mumbai High Court. She is also a successful homoeopath. I had a chance meeting with Sushila Rani Patel once again recently, in a book release function held in Fabruary ’14 at Khar Gymkhana. Written by Gujrati’s well known writer friend Shri Biren Kothari, this book on 1930’s & 40’s renowned film company ‘Sagar Movietone’ was released by Actor Amir Khan.  

Sushila Rani Patel’s husband Baburao Patel died on 4th September 1982. She has been living alone in her huge ‘Girnar’ bungalow since. 

Sushila Rani Patel died in Mumbai on 24 July 2014 at the age of 96. 

5 comments:

  1. भारतीय सिनेमा और कलाक्षेत्र में कितने ही रत्न हैं जिनके बारे में सामान्यजन कुछ भी नही जानते। सुशीला रानी जी के बारे में जानकारी का आभार।

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  2. Kam se kam main is hastee ke baare mein poori tarah se anjaan thaa
    कम से कम मैंं इस नाम से पूर्णतय: अपरिचित था. आप का कोटीश: धन्यवाद कि आप ने सुशीला जी से हमारे जैसे लोगों को परिचित करवाया.

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  4. Wonderful post. This is the first time I heard about Sushila Rani Patel. Thanks for the revelation.

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  5. Bahut Dhanyvad Sushilarani ji ki amulya jaankaari ke liyen .

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