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'बीते हुए दिन'...हिंदी सिनेमा की भूली-बिसरी यादों का झरोखा !
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(15 October 1949 - 27 August 2024) (6 July 1938 - 15 March 2025)
‘तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको’ – शुभा खोटे
...............शिशिर कृष्ण शर्मा
मुंबई के उपनगर विलेपारले (पश्चिम) का सुप्रसिद्ध जुहू बीच के इलाक़े का मिलीटरी रोड| इसी रोड पर है बीते दौर के हिन्दी सिनेमा की जानीमानी अभिनेत्री शुभा खोटे का ‘शुभांगी बंगला’| साल 2003 के अंतिम सप्ताह में मैंने इसी बंगले में साप्ताहिक ‘सहारा समय’ के अपने कॉलम ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ के लिए शुभा जी का इंटरव्यू किया था, जो 4 अक्तूबर 2003 के अंक में प्रकाशित हुआ था|
शुभा खोटे एक फ़िल्मी परिवार से थीं| उनके पिता नंदू खोटे साईलेन्ट सिनेमा के दौर से बतौर अभिनेता फ़िल्मों से जुड़े हुए थे और मराठी नाटकों के भी जाने माने अभिनेता और निर्माता-निर्देशक थे| मशहूर अभिनेत्री दुर्गा खोटे रिश्ते में शुभा जी की बुआ थीं तो उस दौर के चर्चित अभिनेता एस.बी.नायमपल्ली शुभा जी के मामा थे| मशहूर चरित्र अभिनेता और फ़िल्म ‘शोले’ के कालिया यानि विजु खोटे शुभा जी के भाई थे|
शुभा जी का जन्म 30 अगस्त 1936 को मुंबई में हुआ था| कॉन्वेंट से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने विल्सन कॉलेज में अंग्रेज़ी और फ्रेंच विषयों के साथ बी.ए. में दाखिला ले लिया था| तैराकी और साईकिलिंग शुभा जी के पसंदीदा खेल थे और उन्होंने अंतरकॉलेज तैराकी चैम्पियनशिप जीतने के साथ ही साल 1952 से 1956 तक लगातार ‘ऑलइंडिया साईकिलिंग चैम्पियनशिप’ भी जीती थी|
शुभा जी के अनुसार फ़िल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ में मूर्तिकार की भूमिका करने वाले अभिनेता कुमार की पत्नी, मशहूर अभिनेत्री और फ़िल्म निर्मात्री प्रोमिला शुभा जी से बहुत स्नेह करती थीं| वो एक अच्छी कास्टिंग डायरेक्टर के तौर पर भी जानी जाती थीं| साल 1954 में अभिनेत्री लीला चिटणिस ने फ़िल्म ‘आज की बात’ से अपने प्रोडक्शन हाउस ‘लीला चिटणिस प्रोडक्शंस’ की नींव रखी|
Leela Chitnis
‘आज की बात’ के हीरो थे लीला जी के बेटे अजीत चिटणिस, संगीतकार थे स्नेहल भाटकर| इस फ़िल्म के लिए कास्टिंग प्रमिला जी कर रही थीं| फ़िल्म की हिरोईन के रोल के लिए उन्होंने शुभा खोटे का नाम सुझाया और शुभा जी को चुन लिया गया| शुभा जी लगातार एक महीना रोज़ाना रिहर्सल के लिए लंबा फ़ासला तय करके माटुंगा स्थित लीला जी के घर जाती रहीं| लेकिन मुहूर्त से ठीक पहले उन्हें अपनी वो पहली ही फ़िल्म छोड़ देनी पड़ी क्योंकि एग्रीमेन्ट की कुछ शर्तें उनके पिता को जमी नहीं| ऐसे में शुभा जी सबकुछ भुलाकर वापस अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गयीं|
उन्हीं दिनों दीपावली की छुट्टियों के दौरान जब शुभा जी पुणे में थीं तो उन्हें एक मराठी फ़िल्म ‘शुभमंगल’ में काम करने का मौक़ा मिला| ये फ़िल्म पूरी बनने के बाद भी रिलीज़ तो नहीं हो पायी लेकिन फ़िल्मी हलकों में इसने शुभा जी को एक अभिनेत्री के तौर पर पहचान ज़रूर दे दी| उधर फ़िल्म ‘आज की बात’ साल 1955 में रिलीज़ हुई और उसमें शुभा जी की जगह चित्रा आ गई थीं|
Amey Chakravorty
शुभा जी बताती हैं, ‘जब मैंने 2 मिनट 58 सेकंड में एक मील का रिकार्ड बनाकर ‘ऑलइंडिया साईकिलिंग चैम्पियनशिप’ जीती तो ‘स्क्रीन’ ने फ़िल्म पत्रिका होते हुए भी मेरी फ़ोटो छापी, जिस पर उस ज़माने के मशहूर निर्देशक अमेय चक्रवर्ती की नज़र पड़ी| उन दिनों वो फ़िल्म ‘सीमा’ बना रहे थे| इस फ़िल्म के लिए वो एक ऐसी लड़की की तलाश में थे जो साइकिल चलाना जानती हो| उन्होंने फ़िल्म के डिस्ट्रीब्यूटर एम.बी.कामत को मुझसे मिलने के लिए भेजा| उस वक़्त मैं और भाई विजु घर में अकेले थे और जैसा कि लड़कपन में सभी भाईबहनों में होता है, हम भी लड़ाई-झगड़े में मशगूल थे| खेलों से जुड़ी होने की वजह से मेरा रहनसहन, पहनावा और तौरतरीक़े लड़कोंनुमा हुआ करते थे| मैंने दरवाज़ा खोला और कामत जी के पूछने पर कहा कि शुभांगी (मेरा असली नाम) मैं ही हूं, तो उनके चेहरे के भाव बदल गए| काफ़ी समय बाद मुझे पता चला था कि कामत जी ने वापस लौटकर अमेय चक्रवर्ती से कहा था उस लड़की में लड़कियों वाली तो कोई बात ही नहीं है और वो खासी मर्दाना लगती है| लेकिन तब भी मैं उस रोल के लिए चुन ली गयी थी| और इस तरह साल 1955 की ‘सीमा’ से मैंने फ़िल्मों में कदम रखा| इस फ़िल्म में मेरा तकिया कलाम ‘क्या बात है’ बहुत मशहूर हुआ था|’
‘सीमा’ के एक सीन में शुभा जी को साईकिल से एक उचक्के का पीछा करना था| शूटिंग के लिए खासतौर से प्रतियोगिताओं के लिए बनी फिक्सव्हील साईकिल लाई गयी| टेक में शुभा जी ने तेज़ गति से साईकिल दौड़ाई और जैसे ही ब्रेक लगाया, मुंह के बल ज़मीन पर आ गिरीं| उन्हें इतनी गंभीर चोटें आयीं कि चेहरे पर पूरे पैंतीस टांके लगाने पड़े थे| ये दुर्घटना मई 1955 में घटी थी| लेकिन शुभा जी के साथ दुर्घटनाओं का सिलसिला जारी रहा और उन्हें जीवन में कुल सात दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा| ‘सीमा’ के अगले ही साल, अप्रैल 1956 में एक मराठी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान जीप के ब्रेक फ़ेल हो जाने पर उनका पैर कट गया था और उसमें गैंगरीन फैल गया था| उनके साथ तीसरी बड़ी दुर्घटना साल 2000 में घटी थी जब एक टीवी शो के शूट में सीढ़ी उतरते समय उनका पैर फिसल गया| ‘सीमा’ के दौरान घटी दुर्घटना का उनके मन पर कुछ ऐसा गहरा असर था कि चेहरे को बचाने की कोशिश में हाथ में फ्रैक्चर हो गया| ऐसे में आने वाले कई एपिसोड्स की शूटिंग उन्हें प्लास्टर चढ़े हाथ के साथ करनी पड़ी थी|
Shubha khote with Mehmood & Dhumal
शुभा जी बताती हैं, ‘अमेय चक्रवर्ती कहते थे कि मैं कॉमेडी बहुत अच्छी करती हूं| ‘सीमा’ के बाद मैंने उनकी फ़िल्म ‘देख कबीरा रोया’ में भी काम किया था| लेकिन साल 1957 में अचानक ही उनकी मृत्यु हो गयी थी| उसके बाद मैंने ‘पेइंग गेस्ट’, ‘मुजरिम’, ‘अनाड़ी’, ‘सांझ और सवेरा’, ‘बरखा’, ‘दीदी’ जैसी कई फ़िल्मों में काम किया और इनमें से लगभग सभी फिल्में हिट रहीं| फ़िल्म ‘चंपाकली’ में मैंने टाइटल रोल किया था| ‘दीदी’, ‘पिकनिक’, ‘हीरामोती’, ‘रोड नं.303 जैसी छह सात फिल्में मैंने बतौर हिरोईन कीं| फ़िल्म ‘पेइंग गेस्ट’ मैंने देखी ही नहीं क्योंकि इसमें मेरा रोल खलनायिका का था, जो करना मुझे अच्छा नहीं लगा था| साल 1959 की फ़िल्म ‘छोटी बहन’ से मेरी पहचान एक हास्य अभिनेत्री की बन गयी| महमूद और धूमल के साथ मेरी तिगड़ी खूब जमी| उस दौर में मैंने ‘ससुराल’, ‘हमराही’, ‘बेटी बेटे’, ‘दिल तेरा दीवाना’, ‘भरोसा’, ‘गोदान’, ‘घराना’, ‘ज़िद्दी’, ‘लव इन टोक्यो’ जैसी कई फ़िल्में कीं| ‘हमसे आया न गया’, ‘तुम मुझे भूल भी जाओ’, ‘तड़पाओगे तड़पा लो’, ‘मैं रंगीला प्यार का राही’, ‘वो दिन याद करो, ‘सलामे हसरत कुबूल कर लो’, ‘अजहूं न आये बालमा’, ‘जाऊंगी ससुराल दुल्हन बन के’ जैसे मुझ पर फ़िल्माए गये सभी गीत भी हिट रहे|’
Shubha Khote with Husband
21 जनवरी 1964 को शुभा खोटे का विवाह हुआ| उनके पति दिनेश एम. बलसावर बर्मा शैल में उच्चाधिकारी थे| लेकिन शुभा की मां लीला खोटे बेटी के इस प्रेमविवाह के पूरी तरह खिलाफ़ थीं| इसका शायद एक कारण तो ये था कि उस समय शुभा अपने करियर की ऊंचाईयों पर थीं, और दूसरा, दिनेश पहले से विवाहित और दो बेटों का पिता थे, हालांकि उनकी पत्नी का निधन हो चुका था| मां का ये गुस्सा शुभा की बेटी के जन्म के बाद ही कुछ कम हुआ था|
शुभा जी का कहना था, “विवाह के बाद लोगों ने बिना मुझसे बात किये खुद ही धारणा बना ली कि मैं फिल्मों से अलग हो चुकी हूं| ऐसे में स्वाभाविक रूप से मेरे पास काम कम होता चला गया| हालांकि उस दौरान साल 1968 में मैं निर्माता और निर्देशक भी बन गयी और वो फ़िल्म थी, मराठी भाषा की ‘चिमुकला पाहुना’| और फिर 1970 के दशक के मध्य में मेरे पति का ट्रांसफर लंदन हुआ तो मैं भी उनके साथ चली गयी| और इस तरह फ़िल्मों से मेरा रिश्ता, भले की कुछ समय के लिए ही सही, पूरी तरह टूट गया|
कुछ सालों बाद हम भारत वापस लौटे तो मुझे फ़िल्मों में धमाकेदार कमबैक करने का सुनहरा मौक़ा मिला| मेरी वो कमबैक फ़िल्म थी, साल 1981 की ब्लॉकबस्टर, ‘एक दूजे के लिए’| मैंने इस फ़िल्म में नायिका रति अग्निहोत्री की मां का रोल किया था, जो निगेटिव होने के साथ साथ कॉमिकल कहीं ज्यादा था|”
करियर के इस नये दौर में शुभा जी ने ‘नसीब’, ‘कुली’, ‘जुनून’, ‘किशन कन्हैया’, ‘कोयला’ और ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ जैसी फ़िल्मों के अलावा ‘ज़बान संभाल के’, ‘बा बहू और बेबी’ और ‘खट्टा मीठा’ जैसे टीवी शोज़ में भी काम किया| साथ ही शुभा जी रंगमंच पर भी सक्रिय रहीं और देश-विदेश में होने वाले हिन्दी और अंग्रेज़ी नाटकों के मंचन में लगातार हिस्सा लेती रहीं|
Bhawana Balsawar
शुभा खोटे के बड़े बेटे परमानन्द अमेरिका में रहते हैं और छोटे बेटे अश्विन फ़िल्मों में साउन्ड रेकॉर्डिस्ट हैं| उनकी बेटी भावना बलसावर भी टीवी शोज़ की एक जानीमानी अभिनेत्री हैं| शुभा जी के पति दिनेश एम. बलसावर अब इस दुनिया में नहीं हैं|
आने वाली 30 अगस्त 2025 को शुभा खोटे 89 साल की होने जा रही हैं|
We are thankful to –
(Late) Mr. Harish Raghuvanshi (Surat) & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ (Kanpur) for their valuable suggestion, guidance, and support.
Dr. Ravinder Kumar (NOIDA) for the English translation of the write up.
Mr. S.M.M.Ausaja (Mumbai) for providing movies’ posters.
Mr. Manaswi Sharma (Zurich-Switzerland) for the technical support.