"मेरा सुन्दर सपना बीत गया" - फिल्मिस्तान स्टूडियो
...............शिशिर कृष्ण शर्मा
मुंबई के उपनगर गोरेगांव (पश्चिम) में एस.वी.रोड पर स्थित है ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’। आज की पीढ़ी के लिए ये नाम भले ही शूटिंग के लिए किराए पर जगह उपलब्ध कराने वाले एक स्टूडियो मात्र का हो लेकिन 1940 और 50 के दशक के फिल्मप्रेमी जानते हैं कि उस ज़माने में इस बैनर ने एक से बढ़कर एक संगीतप्रधान और स्तरीय फिल्मों का निर्माण करके दर्शकों के मनोमस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोड़ी थी| यही वो बैनर था जिसने एस.डी.बर्मन और हेमंत कुमार जैसे उच्चकोटि के संगीतकार और सुबोध मुकर्जी जैसे प्रख्यात निर्माता-निर्देशक फिल्मोद्योग को दिये और इसी बैनर से 50 के दशक की ख़ूबसूरत और चुलबुली अभिनेत्री श्यामा ने बतौर हिरोईन अपने करियर की शुरूआत की थी| हिन्दी सिनेमा का पूरी तरह से पाश्चात्य शैली का पहला गाना भी इसी बैनर में बना था|
फिल्मिस्तान की स्थापना का श्रेय अभिनेता अशोककुमार के बहनोई (उनकी छोटी बहन सतीरानी के पति) शशधर मुकर्जी को जाता है जो हिमांशु राय द्वारा एक पब्लिक लिमिटेड कम्पनी के तौर पर स्थापित ‘बॉम्बे टाकीज़’ के प्रमुख शेयरधारकों में से थे| साल 1940 में हिमांशु राय के गुजरने के बाद बॉम्बे टाकीज की कमान उनकी अभिनेत्री पत्नी देविका रानी ने संभाल ली थी| लेकिन देविका रानी की विवादास्पद कार्यशैली की वजह से बॉम्बे टाकीज के शेयरधारकों के बीच मतभेद उभरने लगे| नतीजन शशधर मुकर्जी की अगुवाई में अशोक कुमार, ज्ञान मुकर्जी और रायबहादुर चुन्नीलाल जैसे दिग्गजों ने बॉम्बे टाकीज़ छोड़ दिया| इन सभी ने मिलकर साल 1943 में ‘फिल्मिस्तान’ की नींव रखी, जिसका कला और सृजन पक्ष शशधर मुकर्जी ने और आर्थिक और व्यावसायिक पक्ष रायबहादुर चुन्नीलाल ने संभाला| इन्हीं रायबहादुर चुन्नीलाल कोहली के बेटे मदनमोहन ने आगे चलकर हिन्दी सिनेमा के एक गुणी संगीतकार के रूप में नाम कमाया|
बॉम्बे टाकीज से अलग होने के बावजूद उस कंपनी के साथ इन लोगों का भावनात्मक जुड़ाव कम नहीं हुआ था| शायद यही वजह थी कि ‘फिल्मिस्तान’ के बैनर में बनी पहली फिल्म ‘चल चल रे नौजवान’ का टाइटल ‘बॉम्बे टाकीज’ की साल 1940 में बनी हिट फिल्म ‘बंधन’ के एक मशहूर गीत के मुखड़े से लिया गया| साल 1944 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘चल चल रे नौजवान’ के मुख्य कलाकार अशोक कुमार और नसीम, निर्देशक ज्ञान मुकर्जी और संगीतकार गुलाम हैदर थे| गुलाम हैदर लाहौर में बनी हिन्दी और पंजाबी की कई हिट फिल्मों में संगीत देने के बाद हाल ही में मुम्बई आये थे| शमशाद बेगम को पार्श्वगायन में ब्रेक देने का श्रेय भी गुलाम हैदर को ही जाता है| ‘फिल्मिस्तान’ की दूसरी फिल्म ‘शिकारी’ (1946) से संगीतकार सचिनदेव बर्मन ने हिन्दी सिनेमा में कदम रखा था तो ‘शहनाई’ (1947) में पहली बार पूरी तरह पाश्चात्य स्टाईल की धुन पर ‘मेरी जान मेरी जान सन्डे के सन्डे...’ जैसा गाना बनाया गया था| सी.रामचंद्र द्वारा संगीतबद्ध इस फिल्म के ‘जवानी की रेल चली जाए रे...’ और ‘मार कटारी मर जाना...’ जैसे बाकी गीत भी उस ज़माने में बहुत हिट हुए थे|
शशधर मुकर्जी के छोटे भाई और मशहूर निर्माता-निर्देशक सुबोध मुकर्जी ने फिल्म ‘चल चल रे नौजवान’ से बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर अपना करियर शुरू किया था| उन्होंने एक मुलाक़ात के दौरान मुझे बताया था, ‘फिल्मिस्तान’ में होते हुए भी अशोक कुमार खुद को भावनात्मक तौर पर ‘बॉम्बे टाकीज’ से अलग नहीं कर पा रहे थे| उधर 1943 की फिल्म ‘हमारी बात’ के बाद देविका रानी ने भी ‘बॉम्बे टाकीज’ के अपने शेयर निर्माता शीराज़ अली हक़ीम को बेचकर फिल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया था| ऐसे में साल 1947 में बनी फिल्म ‘एट डेज़’ (‘आठ दिन’) के बाद अशोक कुमार ने ‘फिल्मिस्तान’ से अलग होकर ‘बॉम्बे टाकीज’ की कमान संभाल ली थी|
1940 के दशक में फिल्मिस्तान’ के बैनर में ‘शहीद’, ‘नदिया के पार’, ‘शबनम’, ‘समाधि’ और ‘सरगम’ समेत कुल 18 फ़िल्में बनीं और इनमें से ज़्यादातर हिट हुईं| सुबोध मुकर्जी के अनुसार साल 1950 में रायबहादुर चुन्नीलाल के आकस्मिक निधन के बाद ‘फिल्मिस्तान’ का आर्थिक और व्यावसायिक पक्ष संभालने की ज़िम्मेदारी भी शशधर मुकर्जी के कन्धों पर आ गयी थी| लेकिन न तो उन्हें इसका कोई अनुभव था और न ही इसमें उनकी दिलचस्पी थी| इसलिए ‘फिल्मिस्तान’ को मुम्बई के रईस और प्रकाश कॉटन मिल्स के मालिक तोलाराम जालान को बेच दिया गया| लेकिन शशधर मुकर्जी की देखरेख में यहां फ़िल्में बनती रहीं|
‘फिल्मिस्तान’ की ही फिल्म ‘श्रीमतीजी’ (1952) में, अब तक छोटी-मोटी भूमिकाएं करती आयीं श्यामा पहली बार नायिका बनीं तो उसी साल की ‘आनंदमठ’ से संगीतकार हेमंत कुमार ने हिन्दी सिनेमा में कदम रखा| उधर सुबोध मुकर्जी भी फिल्म ‘मुनीमजी’ (1955) से स्वतंत्र निर्देशक बने| इससे पहले उत्तरी मुम्बई की सीमा पर स्थित घोड़बंदर के इलाक़े में चल रही ‘फिल्मिस्तान’ की फिल्म ‘शबिस्तान’ (1951) की शूटिंग के दौरान उस दौर के बेहद खूबसूरत हीरो श्याम की घोड़े से गिरकर मौत हो गयी थी|
1950 के दशक में फिल्मिस्तान’ द्वारा शशधर मुकर्जी की देखरेख में ‘अनारकली’, ‘शर्त’, ‘नास्तिक’, ‘नागिन’, ‘जागृति’, ‘मुनीमजी’, ‘दुर्गेशनंदिनी’, ‘हम सब चोर हैं’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘चम्पाकली’ जैसी कई संगीतप्रधान और हिट फिल्मों का निर्माण किया गया| लेकिन सेठ तोलाराम जालान के साथ मतभेदों की वजह से फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ (1957) के बाद शशधर मुकर्जी ने ‘फिल्मिस्तान’ को अलविदा कहकर ‘फिल्मालय’ की स्थापना कर ली|
एक मुलाक़ात के दौरान ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’ के प्रबंधक मुरारी सेकसरिया ने बताया था, "शशधर मुकर्जी’ के जाने के बाद भी यहां ‘संस्कार’, ‘घरगृहस्थी’, ‘साज़िश’, ‘बाबर’, ‘पिकनिक’ आदि कई फ़िल्में बनीं तो ज़रूर लेकिन उनकी गुणवत्ता पर मुकर्जी की अनुपस्थिति का असर साफ़ दिखाई दिया| अंतत: सेठ तोलाराम जालान ने फिल्म-निर्माण से हमेशा के लिए हाथ खींच लिया|"
निर्देशक एस.वी.रामन की ’पायल की झंकार’ ‘फिल्मिस्तान’ के बैनर में बनी आख़िरी फिल्म थी, जो 1968 में प्रदर्शित हुई थी| इस फिल्म के नायक-नायिका किशोर कुमार और ज्योतिलक्ष्मी और संगीतकार सी.रामचंद्र थे| हालांकि ये फिल्म दक्षिण भारत के कुछ शहरों को छोड़कर बाक़ी जगहों पर ठीक से प्रदर्शित भी नहीं हो पायी थी| आगे चलकर फिल्मिस्तान स्टूडियो के विभिन्न फ्लोर शूटिंग के लिए बाहर के निर्माताओं को दिए जाने लगे और तब से आज तक यही सिलसिला चला आ रहा है|”
एक निर्माण-संस्था के रूप में ‘फिल्मिस्तान’ आज भले ही अपनी पहचान खो चुका हो लेकिन भारतीय सिनेमा के इतिहास में 56 हिन्दी, 5 मराठी, 3 पंजाबी, 1 गुजराती और 1 अंग्रेज़ी फिल्म के इसके अमूल्य योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा|
We
are thankful to –
Mrs. Sangeeta Gupta for providing information about her grandfather (Late) Rai
Bahadur Chunnilal Kohli.
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
"Mera Sundar Sapna Beet Gaya" – Filmistan Studio
..............Shishir Krishna Sharma
Filmistan Studio is situated in Mumbai’s Goregaon (West)’s S.V. Road. For today’s generation it is just a studio which makes place available on rent for shooting. However, lovers of films of 1940s and 50s remember it as a banner which with its wonderful music based high quality movies mesmerized its viewers leaving an indelible imprint on their minds. It was this banner which gave us ace composers like S.D.Burman and Hemant Kumar and well-known producer-director like Subodh Mukherjee. The beautiful and bubbly actress of the 1950s, Shyama had also made her debut as a heroine under this banner. Hindi Cinema’s first totally western music inspired song was also made under this banner.
The credit for the foundation of Filmistan goes to Actor Ashok Kumar’s brother-in-law (his younger sister Sati Rani’s husband) Shashdhar Mukherjee who was one of the primary shareholders of Himanshu Rai’s public limited company ‘Bombay Talkies’. In 1940, after the demise of Himanshu Rai, his actress wife Devika Rani had taken over the reins of Bombay Talkies. Due to Devika Rani’s controversial working style differences started cropping up between the shareholders of Bombay Talkies. As a result, under the leadership of Shashdhar Mukherjee, stalwarts like Ashok Kumar, Gyan Mukherjee and Rai Bahadur Chunnilal left Bombay Talkies. Together they laid the foundation of Filmistan in 1943. Shasdhar Mukherjee took care of the Art and Creative departments while the Financial and Commercial side was being handled by Rai Bahadur Chunnilal. Rai Bahadur Chunnilal’s son Madan Mohan went on to be a talented composer in the decades to come.
Despite separation from Bombay Talkies, they still retained an emotional connect with Bombay Talkies. Perhaps, due to this reason, Filmistan’s first movie, 'Chal Chal Re Naujawan’s title was inspired from a popular song from Bombay Talkies’ hit movie 'Bandhan' which had released in 1940. This movie’s primary cast comprised of Ashok Kumar and Naseem. It was directed by Gyan Mukherjee and its composer was Ghulam Haider. Ghulam Haider had recently come to Bombay after successfully giving music to many hit Hindi and Punjabi films in Lahore. Shamshad Begum had made her playback debut under his composition only. Composer Sachin Dev Burman had entered Hindi films with Filmistan’s second movie 'Shikari' (1946) and their next 'Shehnai' (1947) had the first totally western style inspired composition “Aana Meri Jaan Sunday Ke Sunday”. C Ramchandra had composed this and other songs of Shehnai like “Jawani Ki Rail Chali Jaaye Re” and “Maar Kataari Mar Jaana” which were massive hits at the time of release of the movie.
Shashdhar Mukherjee’s younger brother and famous producer-director Subodh Mukherjee had started his career as an Assistant Director in ‘Chal Chal Re Naujawan’. During a meeting, he had told me that even though Ashok Kumar was with Filmistan at an emotional level, he was finding it difficult to separate himself from Bombay Talkies. At Bombay Talkies in 1943, after the movie ‘Hamari Baat’, Devika Rani had bid adieu to Hindi films after selling her shares of Bombay Talkies to Producer Shiraaz Ali Hakeem. In this situation, after doing the movie 'Eight Days' (Aath Din) in 1947, Ashok Kumar dissociated himself from Filmistan and took over the reins of Bombay Talkies himself.
During the 1940s, Filmistan made 18 movies like ‘Shaheed’, ‘Nadiya Ke Paar’, ‘Shabnam’, ‘Samadhi’ and ‘Sargam’, a majority of which proved to be hit on the box office. According to Subodh Mukherjee, after the sudden demise of Rai Bahadur Chunnilal in 1950, the responsibility of handling the financial and commercial aspects of Filmistan had also come on the shoulders of Shashdhar Mukherjee. However, he neither had any experience of it nor did he have any interest in it. Due to this reason, Filmistan was sold to Tolaram Jalan, the wealthy owner of Mumbai’s Prakash Cotton Mills. However, films continued to be made there under the supervision of Shashdhar Mukherjee.
It was in Filmistan’s movie 'Shrimatiji' (1952), that Shyama, who had hitherto been doing small roles, became a heroine. The same year Hemant Kumar also entered Hindi films as a composer with ‘Anand Math’. Subodh Mukherjee also became an independent director with ‘Munimji’ (1955). Before this in 1951, on the sets of Filmistan’s ‘Shabistan’ at North Mumbai’s Ghodbandar area, its extremely handsome hero Shyam had in a tragic accident passed away after falling from a horse.
Under supervision of Shashdhar Mukherjee, Filmistan produced many music centric hit films like ‘Anarkali’, ‘Shart’, ‘Nastik’, ‘Nagin’, ‘Jagriti’, ‘Munimji’, ‘Durgesh Nandini’, ‘Hum Sab Chor Hain’, ‘Paying Guest’ and ‘Champakali’. However, after ‘Tumsa Nahin Dekha’ (1957), Shashdhar Mukherjee separated and founded Filmalaya due to differences with Seth Tolaram Jalan.
During a meeting, Filmistan Studio’s Manager Murari Seksaria had told me that even after the departure of Shashdhar Mukherjee, many movies were made there like ‘Sanskaar’, ‘Ghar Grihasti’, ‘Saazish’, ‘Baabar’, ‘Picnic’ etc. but their quality showed the lack of value that Shashdhar Mukherjee added to Filmistan. At last, Seth Tolaram Jalan stopped film production. Director S V Raman’s ‘Payal Ki Jhankaar’ was the last released movie of ‘Filmistan’ in 1968. This film starred Kishore Kumar and Jyoti Lakshmi while its music was composed by C Ramchandra. Sadly, this film failed to get properly released and exhibited barring a few cities of South India. Later outside producer started renting the many floors of Filmistan Studio and this practice has continued till date.
Though Filmistan has lost its recognition as a Production center, its major contribution to Indian Cinema in the form of 56 Hindi, 5 Marathi, 3 Punjabi, 1 Gujrati and 1 English film can never be forgotten.
(Special Information: Late composer Madan Mohan’s Jaipur based daughter Mrs. Sangeeta Gupta shared the information that her grandfather and Filmistan’s Chief Executive Rai Bahadur Chunnilal Kohli was born on 16 June 1901. Chunnilal’s father Yograj Kohli was a famous Unani Hakeem from Chakwal area of Jhelum (now in Pakistan). Rai Bahadur Chunnilal was the accountant general of Iraqi Police and worked in Baghdad. His elder son composer Madan Mohan was also born there. When the Iraqi government asked Rai Bahadur Chunnilal to either take Iraq’s citizenship of resign, he opted to resign and return to Chakwal instead. To aid the children’s studies better, the family stayed in Lahore for some time and finally, he came to Mumbai in 1933, as a shareholder of Bombay Talkies. He passed away on 2 December 1950, due to a sudden massive heart attack at the premiere of the movie ‘Sargam’ in Delhi at Odeon Cinema.)
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