Thursday, September 18, 2014

“Geet Gaya Pattharon Ne” - Rajkamal Studio

गीत गाया पत्थरों ने” - राजकमल स्टूडियो

                         .....शिशिर कृष्ण शर्मा


हिन्दी सिनेमा के इतिहास में साल 1942 का एक खास स्थान है। इस साल तीन ऐसी फिल्म कम्पनियों की नींव रखी गयी जिन्होंने आने वाले सालों में एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट और हिट फिल्मों का निर्माण करके सिर्फ हिन्दी सिनेमा के इतिहास में अपनी जगह बनाई, बल्कि कई मशहूर कलाकार भी सिने-जगत को दिए। ये थींफिल्मिस्तान, बसन्त पिक्चर्सऔरराजकमलफिल्मिस्तानकी नींव शशधर मुकर्जी नेबॉम्बे टॉकीज़से, तोबसन्त पिक्चर्सकी नींव होमी वाडिया ने अपने बड़े भाई जे.बी.एच.वाडिया के बैनरवाडिया मूवीटोनसे अलग होने के बाद रखी थी।राजकमलकी स्थापना वी.शान्ताराम ने की थी जो पुणे के मशहूरप्रभात स्टूडियोसे अलग होकर मुम्बई आए थे।  

कोल्हापुर के एक जैन परिवार में जन्मे शान्ताराम वणकुद्रे ने गंधर्व नाटक कम्पनी से बतौर बालकलाकार अपना करियर शुरु किया था। निर्माता-निर्देशक बाबूराव पेण्टर कीमहाराष्ट्र फिल्म कम्पनीकी फिल्मसुरेखा हरण(1921) वी.शान्ताराम की पहली फिल्म थी जिसमें उन्होंने कृष्ण की भूमिका निभाई थी। इस कम्पनी की फिल्मों में अभिनय के साथ ही शान्ताराम बाबूराव पेण्टर के सहायक के तौर पर फिल्म निर्माण की बारीकियां भी सीखते रहे। साल 1929 में उन्होंने अपने साथियों विष्णुपंत दामले, शेख फत्तेलाल, केशवराव धायबर और सीताराम बी.कुलकर्णी के साथ मिलकर कोल्हापुर मेंप्रभात फिल्म कम्पनीबनाई जिसे 1933 में कोल्हापुर से पुणे ले आया गया था।प्रभातके बैनर में, भारत में बनी दूसरी रंगीन फिल्मसैरन्ध्रीसहितमाया मछिन्दर, अमृत मंथन, दुनिया माने, आदमीऔरपड़ोसीजैसी कई उद्देश्यपूर्ण फिल्में बनाकर शान्ताराम उस दौर के अग्रणी फिल्मकारों में खड़े हुए थे। लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि उन्हेंप्रभातसे भी अलग हो जाना पड़ा। साल 1942 में उन्होंने मुम्बई के लालबाग-परेल के इलाके मेंराजकमल स्टूडियोकी नींव रखी थी।

https://beetehuedin.blogspot.com/search/label/studio%20%3A%20Prabhat%20Film%20Company

प्रभात फिल्म कम्पनी का संस्थापक सदस्य होते हुए भी वी.शांताराम के इस कम्पनी से अलग होने की वजह थी, अपने ही बनाए नियमों को तोड़ना। दरअसल कम्पनी के सभी संस्थापक मराठीभाषी थे जो पूरी तरह भारतीय परम्पराओं और संस्कृति में यक़ीन रखते थे। इन सभी ने मिलकर कम्पनी के लिए कुछ ख़ास नियम बनाए थे, जिसमें प्रमुख था कि इससे जुड़े सभी लोग सद्चरित्रता का पालन करेंगे यानि वो ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे उनके चरित्र पर अंगुली उठे। इसके अलावा एक और नियम था, कि कम्पनी में कोई भी शादीशुदा अभिनेत्री नहीं रखी जाएगी। साल 1941 में वी.शांताराम नेप्रभातके बैनर में फ़िल्मपड़ोसीशुरू की तो उसमें हिरोईन की भूमिका में एक नयी अभिनेत्री जयश्री को लिया। लेकिन फिल्म की शूटिंग के दौरान ही जयश्री और वी.शांताराम के बीच प्यार पनपा और उन दोनों ने शादी कर ली। इस बात को लेकरप्रभातमें खलबली मच गयी क्योंकि वी.शांताराम पहले से शादीशुदा थे। उनकी पत्नी का नाम विमलाताई था जिनसे उन्होंने 1922 में शादी की थी। अब क़रीब 19 साल बाद जयश्री से उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी। नियम के मुताबिक़ शादीशुदा अभिनेत्रीप्रभातमें रह नहीं सकती थी, इसलिएप्रभातके बाक़ी तमाम पार्टनरों ने जयश्री परप्रभातछोड़ने का दबाव बनाया। उधर वी.शांताराम की इस शादी का भी विरोध हो रहा था। मजबूरन वी.शांताराम कोप्रभातछोड़ना पड़ा। वो पुणे से मुम्बई चले आए जहां उन्होंने साल 1942 मेंराजकमल कलामन्दिरऔरराजकमल स्टूडियोकी स्थापना की थी।

वी.शान्ताराम के बेटे किरण शान्ताराम बताते हैं, ‘पहले इस जगह वाडिया भाईयों का स्टूडियोवाडिया मूवीटोनहुआ करता था। होमी वाडिया के अलग होने के बाद जे.बी.एच.वाडिया ने ये स्टूडियो वी.शान्ताराम को किराए पर दे दिया था।राजकमल कलामन्दिरके बैनर में बनी पहली फिल्मशकुन्तलासाल 1943 में प्रदर्शित हुई थी, जिसकी मुख्य भूमिकाओं में चन्द्रमोहन, जयश्री, निम्बालकर, जोहरा और नाना पलशीकर थे। इस फिल्म का संगीत वसन्त देसाई ने तैयार किया था।

अगले क़रीब चालीस सालों मेंराजकमलके बैनर परमाली(1944), परबत पर अपना डेरा(1944), डॉक्टर कोटनीस की अमर कहानी(1946), मतवाला शायर राम जोशी(1948), अंधों की दुनिया(1948), दहेज(1950), सुबह का तारा(1953), नवरंग(1959), सेहरा(1963), बूंद जो बन गयी मोती(1967) जैसी क़रीब चालीस हिन्दी-मराठी फिल्मों के अलावा तेलुगू मेंअपना देश(1949) और बांग्ला मेंपलातक(1963) फिल्में भी बनीं। 

फिल्मझनक झनक पायल बाजे(1955) औरदो आंखें बारह हाथ(1957) ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म काराष्ट्रपति पुरस्कारजीता तोस्त्री(1961) कोअमेरिका मोशन पिक्चर्स एकेडमीने बेस्ट फीचर फिल्म अवार्ड से नवाजा। फिल्मगीत गाया पत्थरों नेको साल 1964 का सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उधर फिल्मसुरंग(1953) से अभी तक छोटी-मोटी भूमिकाओं में नजर आने वाले चन्द्रशेखर हीरो बने तोपरछाईं(1952) में साईड रोल में नजर आने वालीं मराठी फिल्मों की अभिनेत्री संध्या नेतीन बत्ती चार रास्ता(1953) से हिन्दी सिनेमा में बतौर हिरोईन कदम रखा। अभी तक बालभूमिकाएं निभाती आईं नन्दा भी राजकमल की ही फिल्मतूफान और दिया(1956) से हिरोईन बनीं। किरण शान्ताराम के मुताबिक, करीब आठ सालों तक किराए पर रहने के बाद साल 1949 में वी.शान्ताराम ने इस जगह को जे.बी.एच.वाडिया से खरीदकर इसका नामशान्तश्रीरख दिया था।

वी.शान्ताराम एक सफल निर्माता, निर्देशक और अभिनेता होने के साथ ही एक कुशल प्रशासक भी थे। चालीस के दशक में लगातार सात सालों तक सेंसर के एडवाईज़री बोर्ड के अध्यक्ष पद को सम्भालने के बाद वो फिल्म्स डिविजन के निर्माण विभाग के अध्यक्ष बने। 50 के दशक में पांच साल तक गिल्ड का मुखिया रहने के साथ ही उन्होंने चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी की भी स्थापना की। साल 1985 में उन्हें भारत सरकार द्वारादादा साहब फाल्के पुरस्कारसे सम्मानित किया गया था।

सत्तर के दशक में राजकमल के बैनर परजल बिन मछली नृत्य बिन बिजली(1971), पिंजरा(हिन्दी-मराठी / 1973), चानी(1977) औरराजा रानी को चाहिए पसीना(1979) के अलावा दो मराठी फिल्मोंचंदनाची चोली अंग अंग झाली(1975) औरझुंज(1976) का निर्माण किया गया। 

किरण शान्ताराम बताते हैं, अस्सी का दशक आते-आते बढ़ती उम्र के कारण वी.शान्ताराम की सक्रियता में कमी आने लगी थी। सात सालों तक खामोश बैठे रहने के बाद फिल्मझंझार(1986) से उन्होंने एक बार फिर से बतौर निर्माता-निर्देशक सक्रिय होने की कोशिश की। लेकिन बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह असफल रही ये फिल्म राजकमलके बैनर में बनी आखिरी फिल्म साबित हुई। साल 1990 में 89 साल की उम्र में वी. शान्ताराम का निधन हो गया|  

गुज़रे जमाने की मशहूर फिल्म निर्माण संस्थाराजकमल कलामन्दिरकी कमान अब वी.शान्ताराम की दूसरी पत्नी और जयश्री के बेटे किरण शान्ताराम के हाथों में है। वी.शान्ताराम की तीसरी पत्नी औरझनक झनक पायल बाजे, नवरंगऔरसेहराजैसी फिल्मों की नायिका संध्या (विजया देशमुख) आज भी राजकमल स्टूडियो के मुख्य भवन की दूसरी मंजिल पर रहती हैं। लेकिन वो अब बाहरी दुनिया के सम्पर्क में नहीं आना चाहतीं। रहा सवालराजकमल स्टूडियोका, तो इसकी पहचान अब बाहरी निर्माताओं को किराए पर शूटिंग फ्लोर, लैब और रेकॉर्डिंग रुम देने वाले स्टूडियो तक सिमटकर रह गयी है।

'Rajkamal' Logo

We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Akhsher Apoorva for editing the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing


Geet Gaya Pattharon Ne” - Rajkamal  Studio

                    ..........Shishir Krishna Sharma

The year 1942 has a special place in the history of Hindi Cinema. In this year three major film companies came into existence which not only achieved an important place of their own in the history of Hindi Cinema by continuously producing excellent and hit movies but also gave many superfine artistes to the cine world. These were ‘Filmistan’, ‘Basant Pictures’ and ‘Rajkamal’.  ‘Filmistan’ was founded by Shashdhar mukerjee after he parted ways from ‘Bombay Talkies’ and ‘Basant Pictures’ was founded by Homi Wadia who parted ways from his elder brother J.B.H.Wadia’s company Wadia Movietone. ‘Rajkamal’ was founded by V.Shantaram after he severed ties with Pune’s famed ‘Prabhat Studio’ and shifted to Mumbai.

Born in a Kolhapur based Jain family, Shantaram Vankudre started his career as a child actor in Gandharva Natak Company. ‘Surekha Haran’ (1921) was Shantaram’s debut movie which was produced by producer-director Baburao Painter’s ‘Maharashtra Film Company’. Shantaram played Krishna in this movie. Apart from working as an actor in the movies produced under the banner of ‘Maharashtra Film Company’, Shantaram also learnt the nuances of film making as an assistant to Baburao Painter. In the year 1929 Shantaram, along with his partners Vishnupant Damle, Sheikh Fattelal, Keshavrao Dhaibar and Sitaram B.Kulkarni founded ‘Prabhat Film Company’ at Kolhapur which was shifted to Pune in 1933. By making purposeful movies like ‘Maya Machhiner’, ‘Amrit Manthan’, ‘Duniya Na Maane’, ‘Aadmi’, ‘Padosi’ and India’s 2nd color movie ‘Sairandhri under the banner of ‘Prabhat Film Company’, V.Shantaram soon joined the league of that times ace film makers. But suddenly the circumstances took such a turn that he was forced to bid adieu to ‘Prabhat’. In the year 1942 he put the foundation of Rajkamal Studio in Mumbai’s Lalbag-Parel area.

https://beetehuedin.blogspot.com/search/label/studio%20%3A%20Prabhat%20Film%20Company

Inspite of being the founder member of ‘Prabhat Film Company’, the main reason behind V. Shantaram’s parting ways from this company was to break their self-made rules. In fact, all the founding partners of the company were Marathi speaking people who believed in Indian traditions and culture. They all made some specific rules for the company together, among which the main rule was that everybody associated with the company should be of good moral and character. Another rule was that no married actress will be allowed to work with the company. In the year 1941, V. Shantaram started the film ‘Padosi’ in ‘Prabhat’ with a new actress Jaishri in the main lead. But during the shoot of the film, Jaishri and V. Shantaram came close and got married. This incident created turmoil in ‘Prabhat’ as V. Shantaram was already a married man. He married his first wife Vimla Tai in the year 1922 and after 19 years of married life he had remarried Jaishri now. As per the rules a married actress wasn’t allowed to work with the company therefore all other partners in Prabhat pressured Jaishri to resign. On the other hand, there was also great protest against V. Shantaram due to his remarriage. Perforce V. Shantaram had to bid adieu to ‘Prabhat’. He shifted from Pune to Mumbai where he put the foundation of Rajkamal  Kalamandir’ in the year 1942.

V. Shanataram’s son Kiran Shantaran says, “Earlier it was Wadia brother’s ‘Wadia Movietone Studio’ at this place. After Homi Wadia parted ways, J.B.H.Wadia rented this place to V. Shantaram.  First movie made under the banner of ‘Rajkamal Kalamandir’ was ‘Shakuntala’ with Chandra Mohan, Jaishri, Nimbalkar, Johra and Nana Palshikar in the main roles, which released in the year 1943. Music of this film was composed by Vasant Desai.

In the next 4 decades around 40 Hindi-Marathi movies were made under the banner of ‘Rajkamal Kalamandir’. Apart from ‘Maali’ ‘Parbat Par Apna Dera’ (both 1944), ‘Dr. Kotnis Ki Amar kahaani’ (1946), ‘Matwala Shayar Ram Joshi’, ‘Andho Ki Duniya’ (both 1948), Dahej’ (1950), ‘Subah Ka Tara’ (1953), ‘Navrang’ (1959), ‘Sehra’ (1963), ‘Boond Jo Ban Gayi Moti’ (1967), these  also included ‘Apna Desh’ (1949) in Telugu  and ‘Palatak’ (1963) in Bangla”.  

‘Jhanak Jhanak Payal Baaje’ (1955) and ‘Do ankhein Barah Haath’ (1957) won the ‘President Medal’ of the Best Film while ‘Stree’ (1961) was awarded with the ‘Best Feature Film Award’ by American Motion Pictures Academy. ‘Geet Gaaya Pattharon Ne’ won the National Award for Best Direction for the year 1964. Actor Chandrashekhar who was till then used to do small roles was made hero in ‘Surang’ (1953) and Marathi film’s actress Sandhya who played a side role in ‘Parchhain’ (1952) debuted as heroine in Hindi Cinema with ‘Teen Batti Chaar Rasta’ (1953). Child artist (Baby) Nanda also debuted in the main lead with ‘Rajkamal’s ‘Toofan Aur Diya’ (1956).  According to Kiran Shantaram, after remaining a tenant for 8 years, V. Shantaram bought this property from J.B.H.Wadia in the year 1949 and christened it as ‘Shant Shri’.

Apart from being a successful producer, director and actor, V. Shantaram was also an excellent administrator. After looking after ‘Sensor’s Advisory Board’ as its president for 7 straight years in the 1940’s decade, he became president of the Film’s Division’s production department. Apart from being the Head of the Guild in 1950’s he also founded the ‘Children Film Society’. He was awarded with the ‘Dada Saheb Phalke Award’ by the Government of India in 1985.  

In the 1970’s decade ‘Rajkamal’s banner produced ‘Jal Bin Machhli Nritya Bin Bijli’ (1970), ‘Pinjra’ (Hindi/Marathi-1973), ‘Chani’ (1977) and ‘Raja Rani Ko Chahiye Paseena’ (1979) along with 2 Marathi movies ‘Chandana-chi Choli Ang Anh Jhaali’ (1975) and ‘Jhunj’ (1976). Kiran Shantaram says, “Due to increasing age, by the beginning of the 1980’s decade V. Shantaram’s activities started declining. After sitting idle for 7 years he again tried to be active as a producer-director with the 1986 release ‘Jhanjhaar’. But this film flopped miserably on the box office and proved to be the last film of the ‘Rajkamal kalamandir’ banner. V. Shantaram died in the year 1990 at the age of 89 years.  

Command of the prestigious film production company ‘Rajkamal Kalamandir’ of the bygone era is now in the hands of V. Shantaram’s son Kiran Shantaram from his second wife Jaishri. V.Shantaram’s third wife and the heroine of his films ‘Jhanak Jhanak Payal Baaje’, ‘Navrang’ and ‘Sehra’ actress Sandhya (Vijaya Deshmukh) still resides on the second floor of the main building of Rajkamal Studio. But she doesn’t want to keep any contact with the outside world. So far ‘Rajkamal’ is concerned, its identity has been merely reduced to a studio that rents its shooting floor, lab & recording room to the outside producers. 

4 comments:

  1. Very good information and well written, Shishir ji!

    ReplyDelete
  2. thanks biren ji ! next on "beete hue din" is gurudutt's assistant shyam kapoor who is seen playing harmonium in 'leke pehla pehla pyaar bhar ke ankhon me khumaar'(CID)...met him y'day only!!!

    ReplyDelete
  3. व्ही शान्तारामजी का जन्म जैन परिवार में हुआ यह बात पहली बार पता चली।
    हमेशा की तरह बढ़िया और जानकारीपूर्ण लेख।

    ReplyDelete
  4. I have read V. Shantaram Ji's biography "Shantarama" penned by his daughter Madhura Jasraj (w/o Pt. Jasraj). However, I totally missed that fact that he was born in a Jain family. Thanks for sharing this fact.

    ReplyDelete