Monday, October 21, 2013

“Waqt Ki Har Shay Ghulam” - Ravi

वक़्त की हर शै ग़ुलामरवि

     ……..शिशिर कृष्ण शर्मा

मुंबई के सांताक्रुज़ (पश्चिम) का मीराबाग इलाक़ा। इतना शांत कि महसूस ही नहीं होता कि ये मुंबई जैसे शोर-शराबे से भरे महानगर का हिस्सा है। इसी मीराबाग़ में है संगीतकार रवि का बहुमंज़िला आलीशान बंगलावचन, जहां नवंबर-2003 के आख़िरी हफ़्ते में रवि जी से मेरी पहली बार मुलाक़ात हुई थी।इस बंगले का नाम मैंने साल 1955 में रिलीज़ हुई अपनी पहली फ़िल्म के नाम पर रखा था” – बातचीत के दौरान रवि जी ने बताया था।

रवि के नाम से मशहूर रविशंकर शर्मा जी का जन्म 3 मार्च 1926 को पुरानी दिल्ली के सीताराम बाज़ार के कूचा पातीराम में एक परंपरावादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी मां का नाम तारावती शर्मा और पिताजी का नाम पं.कन्हैयालाल शर्मा था। पिता नौकरी करते थे और उनके बुज़ुर्ग हरियाणा से आकर दिल्ली में बसे थे। रवि जी को बचपन से ही गाने का शौक़ था। वो फ़िल्मी गीत सुनकर उन्हें याद करते और गाते थे।

खारी बावली के कूचा संजोगीराम में हर साल सावन के महिने में सात दिन का एक संगीत समारोह होता था जिसमें उस ज़माने के बड़े-बड़े गवैये और साज़िंदे हिस्सा लेते थे। रवि जी ने बताया था, “मैं हर साल उस समारोह में जाकर उन संगीतज्ञों का गायन और वादन सुनता था। उस दौरान सुनी हुई कई बंदिशें मेरे दिमाग में इतनी गहराई तक बैठ गयी थीं बतौर संगीतकार आज भी मेरे काम रही हैं

रवि जी ने संगीत की विधिवत शिक्षा कभी नहीं ली और ही कभी उन्होंने संगीतकार बनने की सोची थी। उनका मक़सद सिर्फ़ एक अच्छे गायक के तौर पर पहचान बनाना था। शुरूआती शिक्षा नगरपालिका के स्कूल में लेने के बाद उनका दाख़िला दरियागंज के .एस.वी.जे.हाईस्कूल में करा दिया गया था। रवि जी के मुताबिक, “स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम में मेरा गाया पहला ही गीत, फ़िल्मपुकारकातुम बिन हमरी कौन ख़बर ले गोवर्धन गिरधारीसबको इतना पसंद आया कि मेरा गायन उसके बाद के तमाम कार्यक्रमों अनिवार्य हिस्सा बन गया

रवि जी के पिता उन्हें घर के पास होने वालेकल्कि कीर्तन मंडलके सत्संग में लेकर गए और कहा कि गाना है तो यहां गा। रवि जी के मुताबिक, “मेरा गाया भजन लोगों को बेहद पसंद आया, लोगों ने तारीफ़ भी की और मुझे प्रसाद भी औरों से ज़्यादा मिला। उत्साह इतना बढ़ा कि मैं हर हफ़्ते सत्संग में गाने लगा। लेकिन हारमोनियम बजाने वाले लड़के को शायद मेरी लोकप्रियता के आगे अपनी अहमियत कम होती दिखी तो एक रोज़ उसने जानबूझकर गलत सुर लगा दिया। नतीजा ये हुआ कि ऊपर के सुरों में पहुंचते ही मेरी आवाज़ अटक गयी

इस घटना की वजह से रवि जी ने ख़ुद को बेहद अपमानित महसूस किया। साथ ही उन्हें पिता की डांट भी सुननी पड़ी। ऐसे में रवि जी ने क़सम खा ली कि जब तक वो ख़ुद हारमोनियम बजाना नहीं सीख लेंगे, सार्वजनिक रूप से नहीं गाएंगे। ज़िद करके उन्होंने पिताजी से हारमोनियम मंगाया, ख़ूब रियाज़ किया और जब महिने भर बाद सत्संग में गाया तो, उन्हीं के शब्दों में, “ऐसा लगा जैसे मैंने दुनिया फतह कर ली हो ये साल 1945 की बात है और रवि जी की उम्र उस समय करीब 19 साल थी। उन्हीं दिनों रवि जी को डाकतार विभाग में इलैक्ट्रिशियन की नौकरी भी मिल गयी थी।

देश आज़ाद हुआ। नौकरी के साथ-साथ रवि जी ने अपना गाने का शौक़ भी जारी रखा। उस दौरान वो ऑल इंडिया रेडियो पर भी गाते रहे। लेकिन साल 1950 में उनका ट्रांसफ़र पठानकोट कर दिया गया। साल 1946 में उनकी शादी हुई थी और एक बेटी का जन्म भी हो चुका था। रवि जी के मुताबिक़, “पठानकोट जैसी जगह पर रहकर मैं सिर्फ़ नौकरी ही कर सकता था जबकि संगीत मेरे लिए ज़्यादा अहमियत रखता था। इसलिए मैंने दफ़्तर में छुट्टी की अर्ज़ी दी, पत्नी कांति और बेटी वीणा को दिल्ली में ही छोड़ा, पिताजी से इजाज़त ली और फिल्मों में गाने की तमन्ना लिए दिल्ली से मुंबई के लिए रवाना हो गया। वो तारीख़ थी 24 अप्रैल 1950.

मुंबई पहुंचकर रवि जी ने शुरूआती कुछ दिन हीराबाग धर्मशाला में बिताए। उसके बाद वो गोरेगांव स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर और बंद दुकानों के बाहर रात गुज़ारने लगे। दिल्ली में सीखा गया बिजली का काम मुंबई में संघर्ष के दौरान उनके काम आया। गाने के मौक़े मिलना आसान नहीं था इसलिए पेट भरने के लिए वो कालबादेवी के मूलजी जेठा मार्केट की दुकानों में प्रेस, पंखे जैसे उपकरण ठीक करने लगे। स्वतंत्र रूप से तो उन्हें गाना नहीं मिल पाया लेकिन सचिनदेव बर्मन के संगीत में, साल 1951 में बनी फ़िल्मनौजवानमें कोरस में गाने का मौक़ा ज़रूर मिल गया। रफ़ी और गीतादत्त का गाया वो गीत थाझनक झनक झन झन...ज़रा झूम ले

साल 1952 में रवि जी को फ़िल्मआनंदमठके मशहूर गीतवंदेमातरम-वंदेमातरममें कोरस गाने का मौक़ा मिला। संगीतकार हेमंत कुमार की ये पहली हिंदी फ़िल्म थी और उन्होंने रवि जी को अपना असिस्टेण्ट बना लिया। रवि जी ने हेमंत कुमार के साथ शर्त, सम्राट, दुर्गेशनंदिनी, जागृति, चम्पाकली और नागिन जैसी फ़िल्में बतौर असिस्टेण्ट कीं। फ़िल्मनागिनकी मशहूर बीन की धुन रवि जी और कल्याणजी (आनंदजी) ने मिलकर बजाई थी। उसी दौरान साल 1951 में रवि जी ने अपनी पत्नी और बेटी को भी मुंबई बुला लिया था और अपने परिवार के साथ वो कांदिवली के एक गोदाम में में किराए पर रहने लगे थे।

रवि जी ने बताया था, “साल 1951 में बनी फ़िल्मअदाके मुहुर्त के मौक़े पर मेरी मुलाक़ात एक लड़के से हुई जो दिल्ली में मेरे पड़ोस में रहता था। बातचीत में पता चला कि वो फ़िल्मअदाके निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल का भतीजा था। उसके साथ मेरी गहरी दोस्ती हो गयी। एक रोज़ उसने मेरे सामने प्रस्ताव रखा कि देवेन्द्र गोयल की कम बजट में बनने जा रही अगली फ़िल्म में वो मुझे बतौर स्वतंत्र संगीतकार मौक़ा दिला सकता है बशर्ते कि मैं संगीतकार के तौर पर अपने साथ उसका भी नाम दूं। ये जानते हुए भी कि संगीत से उसका दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं है, मजबूरन मुझे हामी भरनी पड़ी। वो फ़िल्म थी साल 1955 में बनीवचनजिसके संगीतकार के तौर पर परदे पररवि-चन्द्राकी जोड़ी का नाम दिया गया था। उस फ़िल्म में मैंने दो गीतचंदामामा दूर के, पुए पकाएं बूर केऔरइक पैसा दे दे जाने वाले बाबूलिखने के अलावा आशा भोंसले के साथ एक दोगानायूं ही चुपके चुपके बहाने बहानेगाया भी था।

बतौर संगीतकार रवि जी की पहली फ़िल्मवचनम्यूज़िकल हिट साबित हुई। देवेन्द्र गोयल ने अब उन्हें अपनी अगली फ़िल्मअलबेलीके लिए साईन करना चाहा लेकिन रवि जी ने चन्द्रा के साथ मिलकर काम करने से इंकार कर दिया। देवेन्द्र गोयल को जब इसकी वजह पता चली तो उन्होंने एच.एम.वी. को पत्र लिखकर फ़िल्मवचनके रेकॉर्ड्स से चन्द्रा का नाम हटवा दिया। फ़िल्मअलबेली(1955) में रवि जी ने अकेले ही संगीत दिया। आगे चलकर उन्होंनेएक साल, ‘नरसी भगत, ‘चिराग़ कहां रोशनी कहां, ‘प्यार का सागर, ‘दूर की आवाज़, ‘दस लाख, ‘एक फूल दो माली, ‘धड़कन, ‘एक महल हो सपनों काऔरआदमी सड़क काजैसी देवेन्द्र गोयल की लगभग सभी फ़िल्में कीं।

1950 के दशक में रवि जी नेमेहंदी, ‘घर-संसार, ‘दिल्ली का ठग, ‘बॉम्बे का चोर, ‘घूंघट, ‘नयी मां, ‘तू नहीं और सहीजैसी क़रीब 21 फ़िल्मों में संगीत दिया। साथ ही वो हेमंत कुमार के असिस्टेंट के तौर पर भी काम करते रहे। रवि जी ने बताया था, “एक रोज़ मुझे गुरूदत्त ने बुलाकर कहा कि जब मैंने तुम्हारी फ़िल्ममेहंदीदेखी थी, तभी तय कर लिया था कि अगर कभी मुस्लिम पृष्ठभूमि पर फ़िल्म बनाऊंगा तो उसका संगीत तुम ही तैयार करोगे। सो वो मौक़ा अब आया है। और उन्होंने मुझे फ़िल्मचौदहवीं का चांदके लिए साईन कर लिया

साल 1960 में प्रदर्शित हुई फ़िल्मचौदहवीं का चांदरवि जी के करियर का एक अहम मोड़ साबित हुई। इस फ़िल्म की ज़बर्दस्त कामयाबी की वजह से रवि जी को बी.आर.बैनर कीगुमराह(1963) मिली और वो इस बैनर के स्थायी संगीतकार बन बैठे। आगे चलकर उन्होंनेबी.आर.फिल्म्सकीवक़्त, ‘हमराज़, ‘आदमी और इंसान, ‘धुंध, ‘दहलीज़, ‘निकाह, ‘आज की आवाज़, ‘आवामऔरकल की आवाज़जैसी कई म्यूज़िकल हिट फ़िल्में कीं। संगीत की विधिवत शिक्षा उन्होंने भले ही ली हो लेकिन शास्त्रीय बंदिशों पर आधारित गीत बनाने में भी वो पीछे नहीं रहे।दर्शन दो घनश्यामनाथ मोरी अंखियां प्यासी रे’ (नरसी भगत), ‘लागे ना मोरा जिया’ (घूंघट), ‘छुन छुन घुंघरू बोले’ (काजल) औरकैसी मुरली बजाई घनश्याम’ (आवाम) जैसे गीत इस बात का सुबूत हैं।

साल 1971 में रवि जी को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। फ़िल्मघराना(1961) औरख़ानदान(1965) के लिए उन्होंने फ़िल्मफेयर पुरस्कार ज़ीते। साल 1986 में उन्होंने पहली बार एक मलयालम फिल्मपंचाग्निमें संगीत दिया। उस फिल्म की ज़बर्दस्त सफलता के बाद रवि जी मलयालम फ़िल्मों में व्यस्त हो गए। उनके द्वारा संगीतबद्ध कुल 14 मलयालम फ़िल्मों में से 11 जुबली हिट हुईं और तीन राज्य-पुरस्कारों के अलावा मलयालम फ़िल्मोंसुकरूतमऔरपरिणयमके लिए उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया। चूंकि मलयालम फ़िल्मों में रवि नाम के एक अन्य संगीतकार पहले से मौजूद थे इसलिए वहां रवि जी कोबॉम्बे रविका नाम दिया गया।               

रवि जी की पत्नी का देहांत 1986 में हुआ था। उनके परिवार में दो बेटियों वीणा और छाया के अलावा बेटा अजय और अभिनेत्री बहू वर्षा उसगावंकर हैं। रवि जी ने क़रीब 100 फ़िल्मों औरकानून, ‘बसेरा, ‘कुरूक्षेत्रऔरमुल्क़जैसे कुछ धारावाहिकों में संगीत दिया। साल 2003 में प्रदर्शितएक अलग मौसमउनकी आख़िरी हिंदी फ़िल्म थी जिसके निर्माता-निर्देशक के.पी.शशि थे। रवि जी की ज़िंदगी के आख़िरी कुछ साल बेटे-बहू के साथ संबंधों में आयी कड़वाहट की वजह से बेहद तनाव में गुज़रे। हालात यहां तक पहुंचे कि उन्हें अपने बेटे-बहू के ख़िलाफ़ पुलिस और अदालत तक का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा।

रवि जी का देहांत दिनांक 7 मार्च 2012 को मुंबई में हुआ।


We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Mr. Gajendra Khanna for editing the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Waqt Ki Har Shay Ghulam - Ravi

     ........Shishir Krishna Sharma

Mumbai’s Santacruz (West)’s Mirabaug area is so peaceful that one doesn’t realize that it is a part of a bustling metropolis like Mumbai. It is in this Mirabaug, that the palatial bungalow of composer Ravi, named ‘Vachan’ is situated. This is where I had first met him during the last week of November 2003. During the meeting Ravi ji recalled that he had named the Bungalow after his first movie as composer, Vachan which had released in 1955.

Popularly known as Ravi, Ravi Shankar Sharma was born on 3rd March 1926 in Old Delhi’s Sitaram Bazar’s Koocha Patiram into a traditional Brahmin family. His mother’s name was Taravati Sharma and his father’s name was Pt.Kanhaiyalal Sharma. His father was doing a job there and his ancestors had come from Haryana to settle in Delhi. Ravi ji was fond of singing from his childhood. He used to memorise Hindi film songs and sing them. Every year, in Khari Baoli’s Koocha Sanjogiram a weeklong musical programme used to be held in which the biggest singers and musicians of the time used to participate. Ravi ji remembered, “I used to go every year to the program to listen to the singers and musicians. Many tunes (bandish) I heard during that time have got embedded into my brain that I utilize till date in my compositions.

Ravi ji neither took any formal training in music and nor had he planned to become a composer. His only wish in life was to make a mark as a good singer. After completing his initial education in the local Municipal school, he took admission into Daryaganj’s A.S.V.J.High School. According to Ravi ji, “The first song I sang in the school’s Annual Day was from the movie ‘Pukar’. My rendition of ‘Tum Bin Hamri Kaun Khabar Le Govardhan Girdhari’  was appreciated so much that my singing became a permanent fixture for all future programmes in the school!”

Ravi ji’s father took him to the Satsang taking place in the nearby ‘Kalki Kirtan Mandal’and told him that if he wished to sing, he should sing there. Ravi ji remembered, “My bhajan was appreciated a lot. Not only was I showered with praises but I also got more Prasad than the others! My enthusiasm was kindled and I started singing every week in the Satsang. Unfortunately, probably the Harmonium player, out of jealousy one day deliberately played a wrong note. As a result, my voice got stuck as soon as it hit the higher notes”.

I felt quite humiliated by the incident and also got scolded by my father.  That day I decided that till I don’t learn to play the harmonium myself, I will not sing publicly. I pestered my father to buy a harmonium, did lots of practice with it and when I sang in the Satsang a month later I felt as if I had conquered the world!” This incident happened around 1945 when Ravi ji was only 19 years old. Ravi ji also got employed in the Post & Telegraph Department as an electrician at that time.

India became independent. Ravi ji continued with his hobby of singing along with his job. He used to sing on All India Radio. In 1950, he got transferred to Pathankot. He had already got married in 1946 and become the father of a baby girl. According to Ravi ji, “I could only do my job in a place like Pathankot whereas music was much more important for me. Therefore, I applied for leave at my office. I left my wife Kanti and daughter Veena in Delhi. Taking permission of my father and with a wish to sing in films, I left for Mumbai on 24th April 1950.

On reaching Mumbai, Ravi ji spent a few days at the Hirabaug Dharmshala. After that he started spending the nights at Goregaon Station’s platform and outside closed shops. The skills learn during his job as electrician in Delhi proved to be useful to him during his struggle in Mumbai. It was not easy to get singing assignments and he started repairing irons, press, fans, and other equipment in the electrical shops in Kalbadevi’s Moolji Jetha Market. He could not get any solo song, but he did get an opportunity to sing in the chorus under composition of Sachin Dev Burman in movie ‘Naujawan’ in 1951. It was a duet of Rafi and Geeta Dutt ‘Jhanak Jhanak Jhan Jhan…Zara Jhoom Le’.

In 1952, he also sang in the chorus of superhit song  ‘vande mataram-vande mataram’ in movie Anand Math. It was composer Hemant Kumar’s Hindi movie debut and he kept Ravi ji as his assistant. Ravi ji assisted Hemant Kumar in movies including Shart, Samrat, Durgesh Nandini, Jagriti, Champakali and Nagin. Film Nagin’s famous been tune had been played together by Ravi ji and Kalyan ji (of Kalyanji-Anand ji fame). During 1951, Ravi ji had called his wife and daughter to Mumbai. The family had started residing on rent in a godown in Kandivli.

Ravi ji recalled, “In 1951, at the Muhurat of movie Ada, I met a boy who used to be my neighbor in Delhi. I came to know that he was the nephew of the movie’s Producer-Director Devendra Goyal. We became good friends. One day he proposed that he can get me an assignment as independent composer in Devendra Goyal’s next low budget film with the caveat that I should give his name as co-composer for the film. Although, he had nothing to do with music in any way, I was forced to agree to the condition. This film was 1955’s Vachan whose composer credit was given to the duo of ‘Ravi-Chandra’ on screen. I wrote the lyrics for two songs ‘Chanda Mama Door Ke Pooe Pakaaye Boor Ke’ and ‘Ik Paisa De De O Jaane Waale Babu’ and sang a duet with Asha Bhonsle ‘Yun Hi Chupke Chupke Bahane Bahane’.

Ravi ji’s first movie as a composer ‘Vachan’ proved to be a musical hit. When Devendra Goyal tried to sign him for his next movie ‘Albeli’, Ravi ji refused to work with Chandra. When Devendra Goyal came to know the reason for this, he wrote a letter to HMV and got Chandra’s name removed from the records of ‘Vachan’. Ravi ji composed solo for the movie ‘Albeli’ (1955). He went on to compose for almost all future movies including ‘Ek Saal’, ‘Narsi Bhagat’, ‘Chiragh Kahan Roshni Kahan’, ‘Pyar Ka sagar’, ‘Door Ki Awaz’, ‘Dus Lakh’, ‘Ek Phool Do Maali’, ‘Dhadkan’, ‘Ek Mahal Ho Sapno Ka’, and ‘Aadmi Sadak Ka’ which were directed by Devendra Goyal.

During the 1950s, Ravi ji composed for nearly 21 movies. To mention a few, ‘Mehndi’, ‘Ghar-Sansar’, ‘Delhi Ka Thug’, ‘Bombay Ka Chor’, ‘Ghoonghat’, ‘Nai Maa’ and ‘Tu Nahin Aur Sahi’. Parallely he continued to work as Hemant Kumar’s assistant.  Ravi ji told me, “One day Guru Dutt called me and told me that he had seen my film ‘Mehndi’. Guru said that he had decided there and then that if he were to make a muslim social, its music will be composed only by you. The time has come for the same. This is how I got signed for Guru Dutt’s ‘Chaudahvin Ka Chand’.”

This 1960 release ‘Chaudahvin Ka Chand’ proved to be an important milestone in his career. Due to the success of this movie, he got B.R.Film’s ‘Gumrah’ (1963) and later he became the permanent composer for this banner. He went on to composer for B.R.’s  musical hits like ‘Waqt’, ‘Hamraz’, ‘Admi Aur Insan’, ‘Dhundh’, ‘Dehleez’, ‘Nikaah’, ‘Aaj Ki Awaaz’, ‘Awaam’and ‘Kal Ki Awaaz’, Even though he did not have any formal training in music, he was as competent as any other composer in composing classical music based songs. Songs like ‘Darshan Do Ghanshyam Nath Mori Ankhiyan Pyaasi Re’ (Narsi Bhagat), ‘laage na mora jiya’ (Ghoonghat), ‘chhun chhun ghunghroo bole’ (Kajal) and ‘kaisi murli bajaai ghanshyam’ (Awaam) prove this fact.

In 1971 Ravi ji was honoured by Government of India with the Padma Shri. He won the Filmfare awards for movies ‘Gharana’ (1961) and ‘Khandaan’ (1965). In 1986 he composed for his first Malyalam film ‘Panchagni’. After this film’s super success Ravi ji became busy with Malyalam films. Out of the 14 Malyalam films which he composed for, 11 were jubilee hits. Other than three State Awards, his Malyalam films ‘Sukrutham’ and ‘Parinayam’ fetched National Awards for him. Since, there was already another composer by the name of Ravi in Malyalam films, he was given the name of ‘Bombay Ravi’ there.

Ravi ji’s wife died in 1986. His family consists of his two daughters Veena and Chhaya, his son Ajay and daughter in law Varsha Usgaonkar, who is a known actress. Ravi ji has composed for nearly 100 films. He also gave music for some TV serials including ‘Kanoon’, ‘Basera’, ‘Kurukshetra’ and ‘Mulq’. His last Hindi movie ‘Ek Alag Mausam’ released in 2003. Its Producer-Director was K.P.Sasi. Ravi ji’s last few years were spent under great stress due to the souring of his relations with his son and daughter-in-law. They had deteriorated to such an extent that Ravi ji was forced to involve the Police and had to go to court against them.

Ravi ji died on 7th March 2012 in Mumbai.

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