Saturday, May 19, 2012

“Kaala Dhaga (Black Thread)” – Babubhai Mistry

काला धागा” – बाबूभाई मिस्त्री

       ...........शिशिर कृष्ण शर्मा

साल 1931 में बनी फ़िल्मआलमआरासे भारतीय सिनेमा ने बोलना शुरू किया था। वो दौर हिंदी सिनेमा का ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय सिनेमा की बाल्यावस्था का दौर था। उस ज़माने में तो सिनेमा से सम्बंधित कोई ट्रेनिंग स्कूल था और ही उन्नत तकनीक। जहां तक सवाल है कम्प्यूटर का तो ये जादुई मशीन तो उस ज़माने में इंसान की कल्पना से भी परे की बात थी। ऐसे में जबप्रकाश पिक्चर्सके शंकरभाई भट्ट ने स्पेशल एफ़ेक्ट्स से भरपूर अंग्रेज़ी फ़िल्म इनविज़िबल मैनसे प्रभावित होकर उसी कहानी पर हिंदी फ़िल्म बनानी चाही तो स्पेशल एफ़ेक्ट्स की ज़िम्मेदारी संभाली महज़ अठारह साल के किशोर बाबूभाई मिस्त्री ने। फ़िल्म के परदे पर अदृश्य व्यक्ति की मौजूदगी का अहसास दिलाने के लिए बाबूभाई ने ठेठ देसी तरीक़ों का इस्तेमाल किया था। इसके लिए उन्होंने काले परदे की बैकग्राऊंड और हल्की रोशनी में रोज़मर्रा के काम आने वाली चीज़ों को काले धागे की मदद से गति दी। उनके इस प्रयोग की ज़बर्दस्त कामयाबी ने उन्हें सिनेउद्योग में तो स्थापित किया ही, उन्हेंकाला धागाके नाम से मशहूर भी कर दिया।

वो फ़िल्म थी साल 1937 में बनीख़्वाब की दुनिया’ (उर्फ़ ड्रीमलैंड), जिसके निर्देशक थे विजय भट्ट, संगीतकार लल्लूभाई नायक, गीतकार सम्पतलाल श्रीवास्तवअनुजऔर मुख्य कलाकार थे जयंत, सरदार अख़्तर, शीरीन, उमाकांत, इस्माईल, माधव मराठे और ज़हूर। ख़्वाब की दुनिया भारत में बनी पहली फ़िल्म थी जिसमें स्पेशल एफ़ेक्ट्स का इस्तेमाल किया गया था। निर्देशक विजय भट्ट के करियर की भी ये पहली फ़िल्म थी।

बाबूभाई का जन्म 5 सितम्बर 1918 को गुजरात के सूरत शहर में हुआ था। उनके पिता मक़ान बनाने के ठेके लिया करते थे। बाबूभाई सिर्फ़ 14 साल के थे कि उनके पिता गुज़र गए। बड़ा होने के नाते विधवा मां और नौ छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी बाबूभाई के कंधों पर गयी। मजबूरन रोज़गार की तलाश में उन्हें अपने चाचा के पास मुंबई चले आना पड़ा जहां उनके चाचा रंगीलदास भगवानदासकृष्णाटोनफ़िल्म कंपनी में बतौर आर्ट डायरेक्टर नौकरी कर रहे थे।कृष्णाटोनके बैनर में उन दिनों लगातारहरिश्चन्द्र’, ‘हीर रांझा’, ‘लैला मजनूं’, ‘पाक दामन’, ‘घर की लक्ष्मी (सभी 1931),भक्त प्रह्लाद’, ‘कृष्णावतारऔरनवचेतन (सभी 1932) जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया जा रहा था।

बोलती फ़िल्मों के शुरूआती दौर के मशहूर संगीतकारमधुलाल दामोदर मास्टरके करियर की शुरूआत फ़िल्मनवचेतनसे ही हुई थी। बाबूभाई के मुताबिक़, ‘चाचा ने उनकी पूरी मदद की और उनकी सिफ़ारिश पर बाबूभाई को साल 1933 में बनी फ़िल्महातिमताईमें असिस्टेंट आर्ट डायरेक्टर की नौकरी मिल गयी। चार हिस्सों में बनी फ़िल्म हातिमताई का निर्माणभारत मूवीटोनके बैनर में किया गया था जिसके लेखक-गीतकार और निर्देशक थे जी.आर.सेठीशादऔर संगीत मधुलाल दामोदर मास्टर का था। बाबूभाई के मुताबिक़ शुरूआती दौर में उनका काम फ़िल्मों के पोस्टर बनाना और सेट के निर्माण में हाथ बंटाना था लेकिन धीरे धीरे उनका रूझान फ़िल्म-निर्माण के सभी पहलुओं की तरफ़ होने लगा। नतीजतन उन्होंने मौक़ा मिलते ही फ़िल्म निर्माण के बाक़ी विभागों में भी काम करना शुरू कर दिया। और फिर जैसे जैसे जान-पहचान का दायरा बढ़ा, बाबूभाई पर लोगों का भरोसा जमता चला गया।

यही वो वक़्त था जब वो शंकरभाई भट्ट और विजय भट्ट के सम्पर्क में आए जो फ़िल्मख़्वाब की दुनियाके स्पेशल एफ़ेक्ट्स को लेकर उलझन में पड़े हुए थे। बाबूभाई का कहना था, ‘उन दिनों भारत में स्पेशल एफ़ेक्ट्स विशेषज्ञ का होना तो दूर, इसके बारे में मामूली जानकारी तक उपलब्ध नहीं थी। बस, मैंने थोड़ा सा दिमाग़ दौड़ाया और काम आसान होता चला गया।

उस ज़माने में वाडिया भाईयों, जे.बी.एच.वाडिया और होमी वाडिया की कंपनीवाडिया मूवीटोनधार्मिक, स्टंट और फ़ैंटेसी फ़िल्में बनाने के लिए मशहूर थी जिनकी बुनियाद ही स्पेशल एफ़ेक्ट्स पर टिकी होती थी। फ़िल्मख़्वाब की दुनियाकी कामयाबी के बाद वाडिया भाईयों ने बाबूभाई को बुलाकर उन्हें अपने बैनर की फ़िल्मों के स्पेशल एफ़ेक्ट्स की ज़िम्मेदारी से सौंप दी। ये कहना गलत नहीं होगा कि बाबूभाई मिस्त्री भारतीय सिनेमा में स्पेशल एफ़ेक्ट्स के जनक थे।

अपने लंबे करियर के दौरान उन्होंने नूर--यमन, सर्कसवाली, अलादीन और जादुई चिराग़, ‘गुलसनोवर’, ‘अलीबाबा और चालीस चोर’, ‘अंगारे’, ‘जगदगुरू शंकराचार्य’, ‘वीर राजपूतानी’, ‘पाकदामन’, ‘नवदुर्गा’, ‘मिस्टर एक्स’, ‘अंगुलीमाल’, ‘जनम जनम के फेरे’, ‘हमराही’, ‘लव इन टोक्यो’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘जुगनू’, ‘नागिन’, ‘वॉरंट’, ‘ड्रीम गर्ल’, ‘बारूद’, ‘धर्मवीर’, ‘बंडलबाज’, ‘ख़ुद्दार’, ‘ज़माने को दिखाना हैजैसी फ़िल्मों के अलावा धारावाहिकमहाभारत’, ‘शिवमहापुराण’, ‘कृष्णाऔरविश्वामित्रके स्पेशल एफ़ेक्ट्स तैयार किए। फ़िल्मअलादीन और जादुई चिराग़का उड़ता हुआ कालीन हो या फ़िल्मऔरतके क्लाईमेक्स में इमारतों का गिरना, या फिर फ़िल्मड्रीमगर्लके शीर्षक गीत में हेमा मालिनी के उड़ने का चर्चित दृश्य, ये सब बाबूभाई मिस्त्री की ही कल्पनाशक्ति का कमाल थे।

साल 1942 में होमी वाडिया नेवाडिया मूवीटोनसे अलग होकरबसंत पिक्चर्सकी स्थापना कर ली थी। बाबूभाई के मुताबिक़ ये वो दौर था जब आर्ट डायरेक्शन और स्पेशल एफ़ेक्ट्स का एक बड़ा नाम बन जाने के बाद वो निर्देशन में भी हाथ आज़माना चाहते थे। ऐसे में दोनों वाडिया भाई उनकी मदद के लिए आगे आए। जे.बी.एच.वाडिया ने बाबूभाई को वाडिया मूवीटोनकी फ़िल्ममुक़ाबलाके, तो होमी नेबसंत पिक्चर्सकी पहली फ़िल्ममौजके निर्देशन की ज़िम्मेदारी सौंप दी।मुक़ाबलासाल 1942 में रिलीज़ हुई थी, जिसके संगीतकार थे ख़ान मस्ताना, गीतकार .करीम और कलाकार थे नाडिया, याक़ूब, आग़ा, दलपत, रजनी, जाल खम्बाटा और ख़ान मस्ताना। उधर साल 1943 में रिलीज़ हुई फ़िल्ममौजका संगीत वसंत देसाई ने तैयार किया था, गीतकार थे .करीम, और कलाकार थे पहाड़ी सान्याल, कौशल्या, नाडिया, आग़ा, मीरा और मंसूर। इन दोनों ही फ़िल्मों में बाबूभाई के सह-निर्देशक बटुक भट्ट थे। लेकिन ये दोनों ही फ़िल्में कोई ख़ास करिश्मा नहीं दिखा पायीं। इसके बावजूद बाबूभाई कभी-कभारहनुमान पाताल विजय (1951),नवदुर्गा(1953),तिलोत्तमा (1954) औरश्री कृष्ण भक्ति(1955) जैसी फ़िल्मों के ज़रिए निर्देशन में हाथ आजमाते रहे। 

लेकिन बतौर निर्देशक उन्हें पहचान मिली साल 1956 में बनी फ़िल्मसती नागकन्यासे, जिसका निर्माणमुक्ति फ़िल्म्सके बैनर में किया गया था। संगीतकार थे एस.एन.त्रिपाठी और इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे निरूपा राय, मनहर देसाई, इंदिरा बंसल, पी.कैलाश, एस.एन.त्रिपाठी, और महिपाल। फ़िल्मसती नागकन्याकी ज़बर्दस्त कामयाबी के साथ ही बाबूभाई मिस्त्री की गिनती हिन्दी सिनेमा के व्यस्ततम निर्देशकों में होने लगी। आगे चलकर उन्होंनेनागलोक’, ‘पवनपुत्र हनुमान (दोनों 1957),माया बाज़ार’, ‘सम्राट चन्द्रगुप्त(1958),बेदर्द ज़माना क्या जाने’, ‘चन्द्रसेना’, ‘मदारी(1959),माया मछिन्दर(1960),

सम्पूर्ण रामायण(1961),किंगकांग’, ‘मायाजाल(1962), सुनहरी नागिन’, ‘पारसमणि’, कण कण में भगवान (1963),महाभारत’, ‘भरत मिलाप’, ‘संग्राम(1965), सरदार’, ‘शमशीर(1967),हर हर गंगे(1968),अनजान है कोई(1969),भगवान परशुराम(1970),सात सवाल और हातिमताई’, ‘श्री कृष्ण अर्जुन युद्ध’, ‘ब्रह्मा विष्णु महेश’, ‘डाकू मानसिंह(1971),नाग पंचमी(1972),हनुमान विजय(1974),अलख निरंजन(1975),महाबली हनुमान(1980),सती नागकन्या(1983),कलयुग और रामायण(1987) और हातिमताई(1990) जैसी हिंदी फ़िल्मों के अलावा एक तेलुगू और नौ गुजराती फ़िल्मों और धारावाहिकशिव महापुराणका भी निर्देशन किया। संगीतकारकल्याणजी वीरजी शाहने अपने करियर की शुरूआत बाबूभाई की फ़िल्मसम्राट चन्द्रगुप्त(1958) से की थी तोलक्ष्मीकांत प्यारेलालकी जोड़ी ने पारसमणि(1963) से। पीटर परेरा, रवि नगाईच, सत्येन और डैनी देसाई जैसे मशहूरट्रिक फ़ोटोग्राफ़ी और स्पेशल एफ़ेक्ट्सविशेषज्ञों ने भी अपना करियर बाबूभाई के सहायक के तौर पर ही शुरू किया था।

कई दशक पहले बाबूभाई के गले से कैंसरग्रस्त स्वरग्रंथि को निकाल दिया गया था जिसकी वजह से उन्हें अपनी बात कहने के लिए कृत्रिम स्वर यंत्र का सहारा लेना पड़ता था। बाबूभाई की बहन के बेटे औरसहारा न्यूज़ चैनलमें कैमरा और स्टूडियो प्रभारी कमलेश कापड़िया के मुताबिक़ बाबूभाई का ये ऑपरेशन 1960 के दशक की शुरूआत में, फ़िल्मपारसमणिकी रिलीज़ के दिनों में हुआ था। इसके बावजूद बाबूभाई ने तमाम मुश्किल हालात से जूझते हुए अपने करियर को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया। बाबूभाई मिस्त्री की इस मज़बूत इच्छाशक्ति और कामयाबी को देखते हुए मुम्बई के मशहूरटाटा मेमोरियल कैंसर अस्पतालने कैंसर के मरीज़ों के प्रेरणास्वरूप बाबूभाई पर एक डॉक्यूमेंटरी फ़िल्म का निर्माण किया था।

रतन मोहन द्वारा निर्मित फ़िल्महातिमताई(1990) बाबूभाई द्वारा निर्देशित आख़िरी फ़िल्म थी, जिसके संगीतकार थेलक्ष्मीकांत प्यारेलालऔर मुख्य भूमिकाओं में थे जीतेन्द्र, संगीता बिजलानी, सोनू वालिया, सतीश शाह और रज़ा मुराद। नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में उन्होंने एक बार फिर से धारावाहिकमहाशिवपुराणके निर्देशन के ज़रिए छोटे परदे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और फिर बढ़ती उम्र के साथ रिटायर हो जाना बेहतर समझा। नब्बे के दशक में पत्नी के देहांत के बाद से नि:संतान बाबूभाई मिस्त्री पूरी तरह अकेले हो गए थे। ऐसे में उनकी सबसे छोटी बहन और कमलेश कापड़िया की मां ने उनकी भरपूर सेवा की।


विलेपार्ले (पूर्व) मेंदीनानाथ मंगेशकर सभागृहके पास स्थितश्यामकमल बिल्डिंगकी दूसरी मंज़िल पर मौजूद उनके फ़्लैट का ड्रॉईंगरूमज़ी लक्स सिने अवार्डके तहतलाईफ़टाईम अचीवमेंट अवार्डऔर कोडक टेक्निकल एक्सेलेंस अवार्डसमेत उन्हें मिले अनगिनत सम्मान, ट्रॉफ़ियों और पुरस्कारों से भरा पड़ा था।कोडक टेक्निकल एक्सेलेंस अवार्डउन्हें 6 जनवरी 2005 को मुंबई केरवीन्द्र नाट्य मंदिरमेंमामी फ़िल्म समारोहके उद्घाटन के मौक़े पर उस समय के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के हाथों दिया गया था।

भारतीय सिनेमा में ट्रिक फ़ोटोग्राफ़ी और स्पेशल एफ़ेक्ट्स के जनककाला धागायानि बाबूभाई मिस्त्री का देहांत 20 दिसम्बर 2010 को 92 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ।


We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. Sanjeev Tanwar for providing Madhulal D. Master’s extremely rare picture.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters

Ms. Akhsher Apoorva for the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.

Babubhai Mistry on YT Channel BHD

Kaala Dhaga (Black Thread)”Babubhai  Mistry

                             ...........Shishir Krishna Sharma 

In the year 1931, Indian Cinema had finally got its voice with the film ‘Aalamara’. That era was not only Hindi cinema’s but also Indian cinema’s early juvenile stage. That period didn’t have any film making schools or todays cutting-edge technology. And as far as the question of computers goes, this magical machine was a thing beyond people’s imagination. At such a time when Shankarbhai Bhatt of ‘Prakash Pictures’ saw ‘The Invisible Man’, an English film full of special effects, he was so impressed that he decided to make a Hindi film based on the same story and likewise the responsibilities of tendering the special effects fell on the shoulders of an 18 year old teenager, Babubhai Mistry. To show the presence of the invisible man on the screen, babubhai used some very ingenious home-grown techniques. For this, he used dim lights and a black curtain as the background on which objects of daily use were given the illusion of movement with the help of a black thread. The phenomenal success of his experiment not only established him in the cine world but also made him famous as Kaala Dhaga (Black Thread). This film was ‘Khwaab Ki Duniya’ (aka Dreamland), made in the year 1937, was directed by Vijay Bhatt, music director was Lallubhai Nayak, lyricist was Sampat Lal Shrivastav ‘Anuj’ and artistes were Jayant, Sardar Akhtar, Shirin, Umakant, Ismail, Madhav Marathe and Zahoor. ‘Khwaab Ki Duniya’ was the very first film made in India in which special effects were used. This also happened to be Director Vijay Bhatt’s career’s first film.

Babubhai was born on 5th September 1918 in Surat City, Gujarat. His father was a building contractor. Babubhai was just 14 years old when his father died. As he was the eldest, he had to shoulder the responsibility of a widowed mother and 9 younger siblings. To find employment he was obligated to go to his paternal uncle in Mumbai where his uncle Rangeeldass Bhagwandass was working as an art director in KrishnatoneFilm Company. Those days Krishnatone banners was involved in making films like ‘Harishchandra’, ‘Heer Ranjha’, ‘laila Majnu’, ‘Pak daman’, ‘Ghar Ki lakshmi’ (all 1931) and ‘Bhakt Prahlad’, ‘Krishnavtar’, ‘Navchetan’ (all 1932). Renowned music director ‘Madhulal Damodar Master’ from the initial phase of talkie films started his career with the film ‘Navchetan’. As per Babubhai, his uncle helped him a lot and, on his referral, Babubhai got a job as an assistant art director for the film ‘Hatimtai’ which was made in the year 1933. Made in four parts, film Hatimtai was produced under the banner of ‘Bharat Movietone’, whose writer-lyricist and director was G.R.Sethi ‘Shad’ and music was by Madhulal Damodar Master. As per Babubhai, initially his job was to make film posters and to assist in set designing, but slowly and steadily, his interests expanded to all the various aspects of film. And resultant as soon as he got the chance, he started working in all other film making departments as well. As people started getting to know him, their faith in Babubhai’s abilities started growing. This was about the same time when Shankarbhai Bhatt and Vijay Bhatt had come to learn of the film ‘Khwaab Ki Duniya’ and were confounded about its special effects. Babubhai had said, ‘in those days to have special effect experts in India was a long shot, people didn’t even have the basic know how available yet. I just used a little bit of brain and it became very easy.’

In that era, Wadia brothers, J.B.H.Wadia and Homi Wadia’s CompanyWadia Movietonewas famous for making devotional, stunt and fantasy films, these movies were predominantly made based on  special effects. With the success of ‘Khwaab Ki Duniya’, Wadia Brothers gave Babubhai the responsibility of special effects of the films made under their banner. It wouldn’t be wrong to state that Babubhai Mistry was the father of special effects in Indian Cinema. In his extensive career he gave special effects for films not only like ‘Noor-E-Yaman’, ‘Circuswali’, ‘Alladin Aur Jadui Chirag’, ‘Gul Sanovar’, ‘Alibaba Aur Chalis Chor’, ‘Angare’, ‘Jagadguru Shankaracharya’, ‘Veer Rajputani’, ‘Pak Daman’, ‘Nav Durga’, ‘Mr. X’, ‘Angulimal’, ‘Janam Janam Ke Phere’, ‘Hamrahi’, ‘Love In Tokyo’, ‘Mera Naam Joker’, ‘Jugnu’, ‘Nagin’, ‘Warrant’, ‘Dream Girl’, ‘Barood’, ‘Dharam Veer’,  ‘Bundlebaaz’, ‘Khuddar’, ‘Zamane Ko Dikhana Hai’ but also rendered special effects for tele serials like ‘Mahabharat’, ‘Shiv Maha Puran’, ‘Krishna’ and ‘Vishwamitra’. Be it ‘Alladin Aur Jadui Chirag’s’ flying carpet or falling buildings from the climax of the film ‘Aurat’ or the much talked about scene where Hema Malini is seen flying in the title song of ‘Dream Girl’, all these were possible because of Babubhai  Mistry’s dynamic imagination.

In the year 1942, Homi Wadia parted ways from Wadia Movietoneand had established Basant Pictures. According to Babubhai, this was that juncture where after having made a name for himself in art direction and special effects, he now wanted to try his hand in direction as well. At this point both the Wadia brothers came forward to help him. J.B.H.Wadia’ gave ‘Wadia Movietone’s’ film ‘Muqabla’ and Homi gaveBasant Pictures first film ‘Mouj’s’ directorial responsibilities to Babubhai. ‘Muqabla’ was released in the year 1942, whose music director was Khan Mastana, lyricist A.Kareem and actors were Nadia, Yakoob, Agha, Dalpat, Rajni, Jal Khambata and Khan Mastana. On the other hand year 1943 saw the release of film ‘Mouj’ whose music was given by Vasant Desai, lyricist was A.Kareem, and actors were Pahadi Sanyal, Kaushalya, Nadia, Agha, Meera and Mansoor. Batuk Bhatt was Babubhai’s Co-director for both the movies. But either of the movies didn’t do very well on the box office. Inspite of this, through films like ‘Hanuman Patal Vijay’ (1951), ‘Nav Durga’ (1953), ‘Tilottama’ (1954) and ‘Shri Krishna Bhakti’ (1955) Babubhai kept dabbling in direction. But he ultimately got recognition as a director with the film ‘Sati Nagkanya’ made in the year 1956 under the banner of ‘Mukti Films’. Music director was S.N.Tripathi and the main cast featured actors like Nirupa Roy, Manhar Desai, Indira Bansal, P.Kailash, S.N.Tripathi and Mahipal. After film ‘Sati Nagkanya’s’ phenomenal success, Babubhai Mistry was considered as one of Hindi cinema’s busiest directors. Later on he directed Hindi films like ‘Naglok’, ‘Pawanputra Hanuman’ (both 1957), ‘Maya Bazar’, Samrat Chandragupt (1958), ‘Bedard Zamana Kya Jaane’, ‘Chandrasena’, ‘madari’ (1959), ‘Maya Machhindar’ (1960), ‘Sampoorna Ramayan’ (1961), ‘King Kong’, ‘Mayajaal’ (1962), ‘Sunehri Nagin’, ‘Parasmani’, ‘Kan Kan Me Bhagwan’ (1963), Mahabharat’, ‘Bharat Milap’, ‘Sangram’ (1965), ‘Sardar’, ‘Shamsheer’ (1967), ‘Har Har Gange’ (1968),  ‘Anjaan Hai Koi’ (1969), ‘Bhagwan Parshuram’ (1970), ‘Saat Sawaal aur Hatimtai, ‘Shri Krishna Arjun Yuddha’, ‘Brahma Vishnu Mahesh’, ‘Daku Mansingh (1971), ‘Nag Panchami’ (1972), ‘hanuman Vijay’ (1974), ‘Alakh Niranjan’ (1975), ‘mahabali hanuman’ (1980), ‘Sati Nagkanya’ (1983) and ‘Kalyug aur Ramayan’ (1987) and also directed one Telugu and nine Gujrati films as well as the teleserial ‘Shiv Maha Puran’. While music director ‘Kalyanji Virji Shah’ began his career with Babubhai’s film Samrat Chandragupt (1958), ‘Laxmikant Pyarelal’s’ pair began with ‘Parasmani’ (1963). renownedtrick photography and special effectsexperts like Peter Pareira, Ravi Nagaich, Satyen and Danny Desai also started their careers as Babubhai’s assistant

Many decades ago, Babubhai cancerous voice-box was removed from his throat because of which he had to rely on artificial voice equipment to express himself. According to Babubhai’s sister’s son and Sahara News Channel’s camera and studio incharge Kamlesh Kapadia, Babubhai was operated on in the early 1960’s, during the release of film ‘Parasmani’. Despite the ordeals he faced, he steered his career towards the heights of success. Stirred by Babubhai Mistry’s unfailing will power and success, Mumbai’s famous ‘Tata memorial cancer hospital’ made a documentary on Babubhai to inspire other cancer patients.

FilmHatimtai(1990), produced by Ratan Mohan, was the last film directed by Babubhai, its music director was ‘Laxmikant Pyarelal’ and in the main characters were played by Jeetendra, Sangeeta Bijlani, Sonu Walia, Satish Shah and Raza Murad. once again in late 90’s by directing the teleserial ‘Shiv Maha Puran’ he made his presence known on the small and then, with the onset of old age, he thought it best to retire from the limelight. After his wife’s demise in mid-1990’s a childless Babubhai Mistry became completely alone. Henceforth his youngest sister and Kamlesh Kapadia’s mother, took very good care of him. His apartments drawing room situated on the 2nd floor of Shyam Kamal Building near ‘Dinanath Mangeshkar Hall’ of Vile Parle (East) is brimming full with many awards like ‘Zee Lux Cine Awards’, ‘Lifetime Achievement Award’ and ‘Kodak Technical Excellence Award’. He received the ‘Kodak Technical Excellence Award’ on 6th January 2005 at Mumbai’s ‘Ravindra Natya Mandir’ during the inauguration of ‘MAMI film festival’ from the then CM Vilas Rao Deshmukh.

The father of Trick Photography and special effects of Indian Cinema, ‘Kaala Dhaga’ (black thread) viz. Babubhai Mistry died on 20th December 2010 at the age of 92 years.

3 comments:

  1. Sharma ji,
    This is an excellent piece.
    Thank you very much for giving us a gem.
    -Arunkumar Deshmukh

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  2. शुक्रिया अरूण साहब !!!-:):)

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  3. Very nice stuff. I read both of the versions (Hindi & English)with interest and enjoyed it. I would like to convey my thanks to you and Aksher Apoorva for giving such article full of information and beautiful translation............Fantastic job by both of you sirji.

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