Monday, August 13, 2018

"Yeh Raaten Nayi Purani" – Reeta Bhaduri

ये रातें नयी पुरानी’ – रीता भादुड़ी  

         ..........शिशिर कृष्ण शर्मा

रीता भादुड़ी का निधन! 17 जुलाई 2018 की सुबह कम्प्युटर ऑन करते ही फेसबुक पर नज़र आयी ये ख़बर किसी झटके से कम नहीं थी| अचानक क्या हुआ उन्हें? अभी तो उम्र नहीं थी जाने की? एकबारगी तो इस ख़बर पर यक़ीन ही नहीं हुआ| उनके क़रीबी लोगों से संपर्क किया तो दुर्भाग्य से ये ख़बर सही निकली| पता चला कि उन्हें कई सालों से डायबिटीज़ थी जिससे उनकी किडनियां ख़राब हो गयी थीं| और अब पिछले कुछ दिनों से वो आई.सी.यू. में भरती थीं

रीता जी से मेरी मुलाक़ात साल 2003-04 में दूरदर्शन के धारावाहिकशिकवाके सेट पर पारिवारिक मित्र अलका आश्लेषा जी के ज़रिये हुई थी| अलका जी भी इस धारावाहिक में एक अहम किरदार निभा रही थीं| निर्माता-निर्देशक राकेश चौधरी के इस धारावाहिक की शूटिंग अंधेरी (पश्चिम) के मिल्लतनगर इलाक़े में स्थित पार्श्वगायिका हेमलता के बंगले में होती थी| उल्लेखनीय है कि ब्लॉगबीते हुए दिनकी संस्थापक सदस्या और मूल हिन्दी पोस्ट्स की अंग्रेज़ी अनुवादिका अक्षर अपूर्वा इन्हीं अलका आश्लेषा जी (चित्र में) की बेटी हैं|

रीता भादुड़ी के पिता श्री रमेशचंद्र भादुड़ी तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार में जागीरों के कमिश्नर थे और नौकरी के सिलसिले में उनका अधिकांश समय मध्य भारत की विभिन्न रियासतों में गुज़रता था| लेकिन एक समय ऐसा आया कि स्थायित्व के लिए उन्हें इंदौर शहर में बस जाना पड़ा| रीता जी का जन्म 11 जनवरी 1950 को इंदौर में हुआ था| 3 बहनों और 1 भाई में वो सबसे छोटी थीं| बातचीत के दौरान रीता जी ने बताया था, “1950 के दशक के मध्य में हम लोग मुम्बई घूमने आए| ये शहर हमें इतना पसंद आया कि 1957 में इंदौर छोड़कर हम मुम्बई शिफ्ट हो गए| उस वक़्त मेरी उम्र 7 साल थी| मुम्बई आने पर मेरी मां चंद्रिमा भादुड़ी को हिन्दी पत्रिकानवनीतमें उपसम्पादिका की नौकरी मिल गयी| मुम्बई में बसे बंगाली परिवारों से संपर्क हुआ तो हम लोग दुर्गापूजा के दौरान होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेने लगे| ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान हुए नाटक में उस ज़माने के मशहूर निर्देशकों नितिन बोस और बिमल रॉय ने मेरी मां को अभिनय करते देखा तो उन्हें अपनी फिल्मों क्रमश: ‘नर्तकीऔरबंदिनीमें ले लिया| ये दोनों ही फ़िल्में 1963 में रिलीज़ हुई थीं| फिल्मबंदिनीमें जेल वार्डन के किरदार से मां को पहचान मिली और वो फिल्मों में व्यस्त होती चली गयीं| आगे चलकर उन्होंनेतीसरा कौन, ‘रिश्ते-नाते, ‘शराफ़त, ‘सावन भादों, ‘नन्ही कलियां, ‘लाल पत्थरऔरआनंद आश्रमजैसी क़रीब 30 फिल्मों में काम किया|”

मां चंद्रिमा भादुड़ी की ही तरह रीता भादुड़ी का भी रूझान अभिनय की तरफ़ था| वो कॉलेज के ज़माने से ही नाटकों में काम करती रही थीं| साल 1971 में उन्होंने फिल्म इंस्टिट्यूट, पुणे में दाखिला ले लिया जहां पार्श्वगायक शैलेन्द्र सिंह, शबाना आज़मी और कंवलजीत जैसे कलाकार उनके बैचमेट थे| दो साल का कोर्स पूरा करके रीता भादुड़ी पासआउट हुईं तो जो पहली फिल्म उन्हें मिली, वो थीआईना| इस फिल्म के निर्देशक के.बालाचंदर और हीरो-हिरोईन राजेश खन्ना और मुमताज़ थे| संगीत नौशाद का था| ये फिल्म 1974 में बनी थीउन्हीं दिनों फिल्म इंस्टिट्यूट के अपने एक बैचमेट मोहन शर्मा के ज़रिये रीता भादुड़ी की मुलाक़ात साउथ के जाने-माने निर्देशक सेतुमाधवन से हुई| उन्होंने रीता भादुड़ी को अपनी  मलयालम फ़िल्मकन्याकुमारीकी मुख्य भूमिका के लिए चुन लिया| इस फिल्म में रीता भादुड़ी के हीरो कमलहासन थे| इसके बाद जब सेतुमाधवन ने अपनी मलयाली फिल्मचट्टकारीपर हिन्दी मेंजूलीबनाई तो उसकी एक अहम भूमिका रीता भादुड़ी को ऑफर की|

रीता जी का कहना था, “फिल्मजूलीऔर इसका संगीत सुपरहिट हुए| इस फिल्म का गानाये रातें नयी पुरानी, कहती हैं कोई कहानीमुझ पर फिल्माया गया था| लेकिनजूलीमें मैंने बहन की भूमिका क्या की कि कैरेक्टर आर्टिस्ट ही बनकर रह गयी| ‘उधार का सिन्दूर, ‘प्रतिमा और पायल, ‘अनुरोधजैसी कुछ फिल्मों में मैंने कैरेक्टर रोल्स किये| लेकिन अचानक ही कुछ ऐसा हुआ कि मैं गुजराती फिल्मों की टॉप की हिरोईन बन गयी|”

दरअसल अपने बैचमेट परेश मेहता के ज़रिये रीता जी की मुलाक़ात गुजराती सिनेमा की जानी-मानी हस्तियों दिगंत ओझा और निरंजन मेहता से हुई जिन्होंने रीता जी को अपनी गुजराती फिल्मलाखों फूलाणीमें हिरोईन की भूमिका में साईन कर लिया| 1976 में रिलीज़ हुई ये फिल्म सुपरहिट हुई और रीता भादुड़ी गुजराती फिल्मों में व्यस्त होते-होते टॉप पर पहुंच गयीं|


रीता जी के अनुसार गुजराती फिल्मों में उनकी ये व्यस्तता लगातार 8 सालों तक बनी रही| हालात यहां तक पहुंच गए कि उन्हें वडोदरा में ही बस जाना पड़ा| उस दौर में बनी ‘कुलवधू’, ‘दीकरी  अने गाय दोरे आ त्यां जाय’, ‘काशीनो दीकरो’, ‘दियर भोजाई’, ‘अखंड चूड़लो’, ‘जाग्या त्यांथी सवार’,  ‘गरवी नार गुजरातण’, ‘अलख निरंजन’, ‘जुगल जोड़ी’, ‘पीठी पीली ने रंग रातो’, ‘साचुं सुख सासरियामां’, ‘कंकुनी किंमत’, ‘माना आंसुं’, ‘मा मने सांभरे छे’ जैसी उनकी ज़्यादातर गुजराती फ़िल्में हिट रहीं|  

रीता भादुड़ी का कहना था, “तमाम व्यस्तताओं के बीच मेरे करियर ने अचानक ही एक नया मोड़ ले लिया| साल 1984 में निर्माता-निर्देशक राकेश चौधरी वडोदरा आकर मुझसे मिले| टी.वी. धारावाहिकों का दौर उस वक़्त अपने शुरुआती चरण में था| राकेश चौधरी ने मुझे दूरदर्शन धारावाहिकबनते-बिगड़तेकी एक अहम भूमिका ऑफर की| इस धारावाहिक से मैंने छोटे परदे पर एंट्री ली और फिर इस क्षेत्र में भी व्यस्त होती चली गयी|” 

रीता भादुड़ी नेखानदान, ‘मुजरिम हाज़िर, ‘तारा, ‘कुमकुम, ‘संजीवनी, ‘हद कर दी, ‘एक महल हो सपनों का, ‘भागोंवाली, ‘एक नयी पहचानजैसे बेशुमार टी.वी. धारावाहिकों में काम किया और इस तरह वो हर घर में एक जाना-पहचाना चेहरा बन गयीं| निधन के समय भी उनका धारावाहिकनिमकी मुखिया’ ‘स्टार भारतचैनल पर ऑन एयर था, जिसमें वो दादी की भूमिका निभा रही थीं| टी.वी के साथ साथ वोयुद्धपथ, ‘बेटा, ‘आतंक ही आतंक, ‘घरजमाई, ‘रंग, ‘कभी हां कभी ना, ‘राजाऔरविरासतजैसी फ़िल्में भी करती रहीं|  

रीता भादुड़ी के बारे में एक आम धारणा ये है कि वो जया भादुड़ी की बहन हैं| लेकिन ये बात बिल्कुल ग़लत है| हक़ीक़त में अभिनेत्री रीता भादुड़ी का जया से कोई भी रिश्ता नहीं है| दरअसल जया भादुड़ी की बहन का नाम भी रीता है लेकिन वो एक अलग शख्सियत हैं| उनके पति अर्थात जया के बहनोई राजीव वर्मा एक जाने माने चरित्र अभिनेता हैं| जबकि स्वर्गीय अभिनेत्री रीता भादुड़ी अविवाहित थीं| इंटरनेट पर दी गयी जानकारियों की संदिग्धता और अविश्वसनीयता का ज्वलंत उदाहरण स्वर्गीय अभिनेत्री रीता भादुड़ी के नाम का विकिपीडिया पेज है जिसमें उनके बेटों के नाम (शिलादित्य वर्मा और तथागत वर्मा) तक दे दिए गए हैं| ज़ाहिर है ये दोनों नाम अभिनेता राजीव वर्मा और उनकी पत्नी रीता भादुड़ी (जया की बहन) के बेटों के हैं

रीता जी उन कलाकारों में से थीं जिनका इंटरव्यू मैंने साप्ताहिकसहारा समयके अपने कॉलमक्या भूलूं क्या याद करूंके लिए क़रीब 14-15 साल पहले किया था| ब्लॉगबीते हुए दिनकी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए उस समय के इंटरव्यूज़ को पोस्ट करने से पहले सम्बंधित कलाकारों अथवा उनके परिवार के सदस्यों से संपर्क करके अपडेट्स ज़रूर ली जाती हैं| इस सूची में रिटायर हो चुके उम्रदराज़ कलाकारों को प्राथमिकता पर रखा जाता है| ऐसे में रीता जी जैसे अपेक्षाकृत युवा और अभी भी सक्रिय कलाकारों का फ़िलहाल पीछे रह जाना स्वाभाविक ही है|

दरअसल वो मेरे लेखन का शुरूआती दौर था और अनुभवहीनता की वजह से तब मैं जन्मतिथि, जन्मस्थान, परिवार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर रीता जी से सवाल ही नहीं कर पाया था| रीता जी के निधन की आकस्मिक सूचना से लगे झटके की एक वजह ये भी थी| उनके परिवार के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी| ऐसे में अपडेट्स के लिए बात करता भी तो किससे? उधर इंटरनेट पर दी गयी जानकारी सिरे से ग़लत  थी| रीता जी के अनुसार 1957 में जब वो लोग मुम्बई शिफ्ट हुए तो उनकी उम्र 7 साल थी| इस हिसाब से तो उनका जन्म 1950 या 51 का होना चाहिए था| लेकिन विकिपीडिया समेत तमाम साइट्स उनकी जन्मतिथि 4 नवम्बर 1955 दिखा रही थीं| उनके जन्मस्थान को लेकर भी मेरे मन में संशय था क्योंकि जो कुछ रीता जी ने बताया था, उसके अनुसार उनका जन्म इंदौर का होना चाहिए था| जबकि विकिपीडिया पर लखनऊ नज़र रहा था| ऐसे में अलका आश्लेषा जी ने रीता जी की बहन रूमा भादुड़ी से बात करने की सलाह दी| रूमा जी भी अभिनेत्री थीं और कुछ धारावाहिकों में काम कर चुकी थीं|

रूमा जी का फोन नंबर तो अलका जी के पास था और ही फिल्म डायरेक्टरी में| ऐसे में हमेशा की तरह एक बार फिर सेसिने एंड टी.वी.आर्टिस्ट एसोसिएशनसिंटाका सहारा मिलासिंटा कार्यालय में कार्यरत सुश्री श्वेता आयरे ने बताया कि सिंटा के रिकार्ड्स में रीता भादुड़ी की जन्मतिथि 1 नवम्बर 1951 दर्ज है| साथ ही उन्होंने रूमा भादुड़ी का फोन नंबर भी दिया हालांकि श्वेता के अनुसार उस फोन नंबर के आगे क्रॉस का निशान लगा हुआ था| सिंटा कार्यालय में 24 सालों से कार्यरत वरिष्ठतम कर्मी अनिल गायकवाड़ से उस क्रॉस की वजह पूछी गयी तो पता चला रूमा जी का तो कई साल पहले निधन हो चुका है| यानि अपडेट्स लेने के तमाम रास्ते बंद हो चुके थे| तभी एकाएक शुभुदा का ख्याल आया| शुभुदा यानि शुभंकर घोष| 1994 की 3 राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्मवो छोकरीके निर्देशक| मशहूर पटकथा लेखक और बांग्ला साहित्यकार (स्व.) श्री नबेंदु घोष के बेटे, जिनका प्रचलित नामशुभुहै और जो हम लोगों के लिए बड़े भाई यानि दादा हैंयानिशुभुदा’! 

शुभुदा से बात हुई तो उन्होंने रीता भादुड़ी के परिवार के बारे में सिर्फ पूरी जानकारी दी बल्कि उनकी बड़ी बहन और भाई के फोन नंबर भी दे दिए| रीता जी की सबसे बड़ी बहन का नाम राका मुकर्जी है| राका जी के पति बरून मुकर्जी एक जाने माने कैमरामैन हैं जिनके नामचक्रऔरगहराईसे लेकरबागबानऔरबाबुलतक जैसी फ़िल्में दर्ज हैं

राका जी से छोटी रूमा (भादुड़ी) सेनगुप्ता लम्बे समय तक टाइम्स ऑफ़ इंडिया और धर्मयुग जैसी पत्र-पत्रिका में बतौर उपसम्पादिका काम करती रहीं| वो एक अभिनेत्री भी थीं| उन्होंने साल 1971 में बनी फिल्मनन्ही कलियांमें अभिनय किया था| क़रीब 30 साल बाद वो धारावाहिककहीं किसी रोज़में नज़र आयीं| 2010 में बनी फिल्म घर के घाट केमें उन्होंने दादी की भूमिका की थी| रूमा जी के पति शंकर सेनगुप्ता एक एडएजेंसी में काम करते थे| 12 जुलाई 2013 को रूमा जी का निधन होने के बाद वो कोलकाता चले गए और अब वहीं रहते हैं|

रूमा जी से छोटे रणदेव भादुड़ी गुजराती फिल्मों के जानेमाने कैमरामैन हैं और वडोदरा में रहते हैं| रीता भादुड़ी इन सबसे  छोटी थीं| रणदेव भादुड़ी जी की पत्नी यानि रीता जी की भाभी श्रीमती तंद्रा भादुड़ी से बात हुई तो उन्होंने बताया, रीता भादुड़ी का जन्म 11 जनवरी 1950 को इंदौर में हुआ था| अर्थात रीता जी के विकिपीडिया पेज पर दी गयी तमाम जानकारी के साथ साथ उनकीसिंटाके रिकॉर्ड में दर्ज जन्मतिथि भी ग़लत  थी| श्रीमती तंद्रा भादुड़ी से ये भी पता चला कि उनकी सास अर्थात अभिनेत्री चंद्रिमा भादुड़ी का निधन 6 जून 1997 को हुआ था| जबकि ससुर यानि रीता जी के पिता 1980 में ही गुज़र चुके थे|  

रीता भादुड़ी की गुजराती फ़िल्मों की जानकारी हासिल करने के लिए भी अब सिर्फ़ इंटरनेट का ही सहारा था| ‘इन्डियन मूवीज़ डेटाबेस-आई.एम.डी.बी.’ में उनकी कुछ गुजराती फ़िल्मों के नाम मिल भी गए| लेकिन अब समस्या थी कि उनकी पुष्टि कैसे की जाए क्योंकि इंटरनेट की असलियत तो सामने ही चुकी थी| उन नामों को सही गुजराती उच्चारण के साथ हिन्दी/देवनागरी में लिखना भी हमारे लिए आसान नहीं था|

ऐसे में गुजराती के मशहूर लेखक-अनुवादक-ब्लॉगर, वडोदरा स्थित श्री बीरेन कोठारी मदद के लिए आगे आए| फोन पर लम्बी बातचीत के दौरान उन्होंने हमारा मार्गदर्शन करते हुए रीता भादुड़ी की गुजराती फिल्मों से जुड़ी तमाम समस्याएं सुलझा दीं

इंटरव्यू के बाद भी रीता जी सेसिंटाकी सालाना मीटिंगों में 4–5 बार मुलाक़ात हुई और वो हर बार बेहद आत्मीयता से मिलीं| लेकिन जैसे जैसे लेखन की व्यस्तताएं बढ़ती गयीं, बाहर निकलना और लोगों से मिलना जुलना कम होता चला गया| और फिर अचानक ये खबर! डेढ़ दशक पुराने इंटरव्यू को अपडेट करने की इस प्रक्रिया में मुझे 15 दिनों से भी ज़्यादा का समय लगा| इस कार्य में सुश्री अलका आश्लेषा, ‘सिंटाकार्यालय में कार्यरत सुश्री श्वेता आयरे और अनिल गायकवाड़, निर्देशक शुभंकर घोष (शुभुदा), श्रीमती तंद्रा भादुड़ी और गुजराती लेखक बीरेन कोठारी जी से मिले सहयोग के लिए ब्लॉगबीते हुए दिनउनका आभार प्रकट करता है|

जहां तक प्रश्न है श्री अनिल गायकवाड़ का, तो ये कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि वोसहारा समयके कॉलमक्या भूलूं क्या याद करूंके समय से ही लगातार मेरी ताक़त बने हुए हैं| जब भी ज़रुरत हुई, वो  ‘सिंटाकी  आलमारियों में बंद बरसों पुराने रजिस्टरों में से तलाशकर भूलेबिसरे बुज़ुर्ग कलाकारों के नाम, फोन नंबर और घर का पता समेत तमाम सूचनाएं मुझे देते रहे, कलाकारों के नाम सुझाते रहे| उनका ये सहयोगपूर्ण रवैया आज भी जारी है, जिसके लिएधन्यवादशब्द भी बहुत छोटा पड़ता है

We are thankful to

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Rita Bhaduri On YT Channel BHD


Yeh Raaten Nayi Purani” – Reeta Bhaduri  

         ............Shishir Krishna Sharma

Reeta Bhaduri Passes Away! This news headline which I saw on the morning of 17th July 2018 as soon as I logged into Facebook was a shock for me. What had happened to her suddenly? She was too young to die in my eyes. I couldn’t believe it initially but on contacting common friends in her circle, I found out that the sad news was indeed unfortunately true. I came to know that she had been suffering from diabetes for many years which had taken a toll on her kidneys over the years. In fact, she was admitted to the ICU during her last few days.

I met Reeta ji in 2003-04 on the sets of Doordarshan’s serial ‘Shikwa’ through our family friend Alka Ashlesha ji. Alka ji was also playing an important role in that serial. Producer-Director Rakesh Chaudhary was the maker of the series and the shooting used to take place at playback singer Hemlata’s bungalow in Andheri (East)’s Millat Nagar Area. It’s important to note that Founder member and English translators of ‘Beete Hue Din’ Akshar Apoorva is the daughter of Alka Ashlesha ji.

Reeta Bhaduri’s father Shri Ramesh Chandra Bhaduri was the Commissioner of Estates during the British Era and due to the nature of his job, he used to spend most of his time in the various places of Central India. He finally settled in the City of Indore. Reeta ji was born in Indore on 11 January 1950. She was the youngest among three sisters and one brother. She recalled during our conversation, “We had gone to Mumbai during the mid-1950s on a visit. We loved it so much that we left Indore and shifted to Mumbai in 1957. I was only 7 years old at that time. On coming here, my mother Chandrima Bhaduri took up the post of Associate Editor for the Hindi Magazine ‘Navneet’. After getting in contact with fellow Bengali families in Mumbai, we started participating heartily in all cultural programs during Durga Pooja. During one such program, during the staging of a play, famous Directors Nitin Bose and Bimal Roy appreciated the acting of my mother and offered her roles in their movies Nartaki and Bandini respectively. Both these films released in 1963. My mother’s role as the jail warden in Bandini was appreciated and she became very busy in doing film roles. She went on to act in nearly 30 films including ‘Teesra Kaun’, ‘Rishte-Naate’, ‘Sharafat’, ‘Sawan Bhadon’, ‘Nanhi Kaliyaan’, ‘Laal Patthar’ and ‘Anand Ashram”.

Just like her mother Chandrima Bhaduri, Reeta Bhaduri also showed an inclination towards acting. She used to be active in theatre from her college days. In 1971, She took admission in Film Institute, Pune where her batchmates included artists like singer Shailendra Singh, Shabana Azmi and Kanwaljeet. After completing the course of two years, she got her first movie ‘Aaina’, It was directed by K Balachander and starred Rajesh Khanna and Mumtaz as the lead pair. The music was composed by Naushad and the movie released in 1974.

At the same time, her batchmate Mohan Sharma introduced her to South’s top director Setumadhavan. He chose her to play the lead role in his Malayalam movie ‘Kanyakumari’. Her hero in the film was Kamal Haasan. After that when he was casting for the Hindi remake ‘Julie’ of his Malayalam movie ‘Chattakari’, he offered her an important role. She recalled, “the movie ‘Julie’ proved to be a superhit and so was the music of the movie including the song ‘ye raatein nayi puraani, kehti hain koi kahaani’ which was pictured on me. Unfortunately, my role of a sister made me typecast as a character artist henceforth. I performed character roles in movies like ‘Udhaar Ka Sindoor’, ‘Pratima Aur Payal’, ‘Anurodh’ etc. Meanwhile some such events took place that soon I became the top Heroine in Gujarati films.”

Actually, Reeta ji’s batchmate Paresh Mehta introduced her to renowned personalities of Gujarati Cinema, Digant Ojha and Niranjan Mehta. They signed her as the heroine in their Gujarati movie, ‘Laakhon Phoolani’. This 1976 release proved to be a superhit and she became busy with Gujarati films becoming the top actress of the industry. This phase continued for nearly eight years which led to a situation where she even had to settle down in Vadodara. Most of her movies proved to be hit on the box office. These include ‘Kulvadhu’, ‘Dikri Ane Gaay Dore tyaan Jaaye’, ‘Kashino Dikro’, ‘Diyar Bhojai’, ‘Akhand Choodlo’, ‘Jaagya Tyaanthi Sawar’, ‘Garwi Naar Gujaratan’, ‘Alakh Niranjan’, ‘Jugal Jodi’, ‘Peethi Peeli Ne Rang Raato’, ‘Saachun Sukh Saasariyamaa’, ‘Kankuni Kimmat’, ‘Maana Aansu’, ‘Ma Mane Sambhare Chhe’. 

She remembered, “During these schedules my career took a sudden new turn. In 1984, Producer-Director Rakesh Chaudhary came and met me in Vadodara. TV serial industry was in its infancy at that time. He offered me an important fole in Doordarshan’s serial ‘Bante-Bigadte’ which marked my debut in the TV industry in which too soon I got immersed in work.”

Reeta Bhaduri acted in numerous TV serials like ‘Khandaan’, ‘Mujrim Haazir, ‘Tara’, ‘Kumkum’, ‘Sanjeevani’, ‘Had Kar Di’, ‘Ek Mahal Ho Sapnon Ka’, ‘Bhaagon Waali’, ‘Ek Nayi Pehchaan’ which made her a well-known face in every household. Even at the time of her demise, her serial ‘Nimki Mukhiya’ was on air in which she was playing the role of the Dadi (Grandmother). Along with TV She continued to act in movies including ‘Yuddhapath’, ‘Beta’, ‘Aatank Hi Aatank’, ‘Ghar Jamai’, ‘Rang’, ‘Kabhi Haan Kabhi Na’, ‘Raja’ and ‘Virasat’.

It is a common misconception that Reeta Bhaduri is the sister of Jaya Bhaduri which is totally wrong. The truth is that both are not related to each other. In fact, Jaya has a sister named Reeta who is a different person married to popular character artist Rajeev Verma whereas (late) actress Reeta Bhaduri remained unmarried all her life. A horrifying example of misinformation on the internet is that her Wikipedia page mentions the names of her sons as Shiladitya Verma and Tathagat Verma who are actually the sons of Jaya’s sister Reeta and her husband Rajeev Verma.

Reeta ji was among those artists whom I had interviewed 14-15 years back for my column ‘Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon’ for the weekly ‘Sahara Samay’. To maintain the authenticity of the blog ‘Beete Hue Din’, before posting that time interviews I try to update the information with the concerned artists or their family members. Among these I try to focus more on retired and elderly artists. As a result, interviews of relatively younger and still active artists like Reeta ji are kept in waiting.

I was an upcoming writer at that time and due to my inexperience then, I did not ask Reeta ji about some important details like Date and Place of birth, family etc. In fact this was one of the reasons that shocked me when I saw the news of her demise. I did not know the details of her family members and didn’t know whom to approach for the updates. On the other hand, misinformation was rampant on the internet. According to her, she was 7 years old in 1957, when they shifted to Mumbai. That means she should have been born in 1950 or 51. However, most of the websites including Wikipedia were claiming her date of birth to be 4th November 1955. There was some doubt about her birthplace as well. According to whatever she told me during the interview, she should have been born in Indore but Wikipedia claimed it to be Lucknow. At this juncture Alka Ashlesha ji suggested that I talk to Reeta ji’s sister Ruma Bhaduri.  Ruma ji was also an actress who had acted in a couple of serials.

Ruma ji’s phone number was neither with Alka ji nor in the Film Directory. In this situation, once again, I contacted the ‘Cine and TV Artist Association – CINTAA’. Ms Shweta Aayre, who works in the CINTAA office informed me that as per their records, Reeta Bhaduri was born on 1st November 1951. She also gave me Ruma Bhaduri’s number though Shweta did point out that a cross was marked against that number. When enquired with Shri Anil Gaikwad, a veteran of over 24 years in the CINTAA office about this cross mark, he informed me that Ruma ji passed away many years back, thus the mark. It appeared as if all doors for getting updates had closed when suddenly I was reminded of Shubhuda. Shubhuda means Shubhankar Ghosh. The director of 3 National awards winner movie ‘Woh Chhokri’ (1994). The son of famous screenplay writer and Bengali author (Late) Shri Nabendu Ghosh, he is popularly called Shubhu and as our big brother or Dada, he is affectionately called Shubhuda.

He gave me not only the full details of Reeta ji’s family but also the phone numbers of her elder sister and brother. Reeta ji’s eldest sister is named Raka Mukherjee. Her husband Barun Mukherjee is a well-known camera man who has the movies like ‘Chakra’, ‘Gehrai’, ‘Baghban’ and ‘Babul’ to his credit.

Ruma Sengupta (nee Bhaduri), the middle sister, had worked with Times of India and the magazine Dharmyug as sub editor for a long time, apart from being an actress. She had acted in the film ‘Nanhi Kaliyaan’ (1971). Nearly three decades later, she was seen in the serial ‘Kahin Kisi Roz’. She had also played the role of the Dadi in the movie ‘Na Ghar Ke Na Ghaat Ke’ which released in 2010. Her husband Shankar Sengupta used to work in an Ad Agency. After her sad demise on12 July 2013, he shifted to Kolkata and now stays there.

Their brother Randev Bhaduri who was younger to Ruma ji is a well-known camera man in Gujarati films and stays in Vadodara. Reeta Bhaduri was the youngest among them. Randev Bhaduri’s wife i.e. Reeta ji’s Bhabhi Smt Tandra Bhaduri told me that Reeta ji was born on 11th January 1950, in Indore. Thus, the date of birth on Wikipedia as well as in CINTAA records was incorrect. She also told me that her mother-in-law actress Chandrima Bhaduri passed away on 6 June 1997, while Reeta ji’s father i.e. her father-in-law had passed away in 1980.

Internet appeared to be the only source for collecting the details of Reeta Bhaduri’s Gujarati movies. Internet Movie Database or IMDB did mention a few but the truth of internet was already in front of me. It was not easy for me to write their names in Hindi/Devanagari with the correct Gujarati pronunciation. In this situation, famous Gujarati writer-translator-blogger Shri Biren Kothari who is based in Vadodara came forward. He sorted out all the doubts about her Gujarati movies during a long telephone conversation.

Even after the interview, I met Reeta ji 4-5 times during the annual meetings of CINTAA and she greeted me very warmly on each occasion. As my writing endeavors increased, my social activities and interaction with other artists gradually reduced. And then I suddenly got this news! It took me nearly 15 days to update this 15 year old interview. Our blog ‘Beete Hue Din’ is extremely greatful to Ms Alka Ashlesha, Ms Shweta Aayre and Anil Gaikwad of CINTAA office, director Shubhandar Ghosh (Shubhuda), Ms Tandra Bhaduri and Gujarati writer Biren Kothari ji for all their help. It would not be an exaggeration to say that Shri Anil Gaikwad has been my strength since the time I started writing my column ‘Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon’ for ‘Sahara Samay’. Whenever needed, he not only used to extract information regarding forgotten elderly artists like their names, phone numbers and addresses from very old registers kept in CINTAA’s almirahs but also used to suggest the names of artists to interview. This helpful approach of his continues to this day and ‘Thanks’ is a very small word to express my gratitude towards him. 


4 comments:

  1. Thanks a lot Sir for all your hard work in digging out all these details about Rita Ji...

    Best Regards.

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  2. Very informative . ShishirJi KEEP IT UP !!!

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  3. Bhaut achchi Jabari meli thanks

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  4. बहुत ही अच्छी और सारगर्भित जानकारी

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