‘Dhanno Ki Aankhon Me, Pyar Ka Surma’
- Ram Mohan
...........Shishir Krishna Sharma
Posters provided by : Shri S.M.M.Ausaja
Ram Mohan’s older photos provided by : Shri Mool
Narayan Sardana
There have been many character artistes like
Sankata Prasad, Hari Shivdasani, Krishna Kant, Keshav Rana,
Krishna Dhawan, Rajan Haksar and Brahm Bharadwaj in Hindi Cinema who appeared
on the screen for decades and gained recognition but could not reach the heights
of popularity they truly deserved. One such artist is Ram Mohan, who has given
more than 6 decades of his life to Hindi Cinema. Still physically and
mentally fit, 84 years old
Ram Mohan says,
“It’s not that easy now to recollect old memories. I often forget things.”
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"sati sulochna" |
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jagdish sethi |





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with his wife |
We are thankful to Shri Mool
Narayan Sardana ji for providing Ram Mohan ji’s older fotos.
Special thanks
to Maitri Manthan for editing of the English translation.
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Few links :
jhuk jhuk jhoola khaaye/do behnein/1959
dhanno ki aankhon mein raat ka surma/kitaab/1977
Jogi ji dheere dheere /nadiya ke paar/1982
http://youtu.be/ehYVXs4A4is
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‘धन्नो की आंखों में, प्यार का सुरमा’- राममोहन
............शिशिर कृष्ण शर्मा
हिंदी
सिनेमा में संकठाप्रसाद,
हरि शिवदासानी, कृष्णकांत,
केशव राणा, कृष्ण
धवन, राजन हक्सर
और ब्रह्म भारद्वाज
जैसे कई चरित्र
अभिनेता हुए, जो
दशकों तक लगातार
परदे पर नज़र
आते रहे और
जिन्होंने अपनी पहचान
भी बनाई लेकिन
वो उन बुलंदियों
तक नहीं पहुंच
पाए जिनके वो
हक़दार थे। इन्हीं
अभिनेताओं में से
एक हैं राममोहन
जिन्हें हिंदी सिनेमा
में कदम रखे
छह दशकों से
भी ज़्यादा का
समय गुज़र चुका
है। 84
साल के राममोहन
आज भी शारीरिक
और मानसिक तौर
पर पूरी तरह
से स्वस्थ हैं
लेकिन वो कहते
हैं, “पुरानी बातों
को याद करना
अब उतना आसान
नहीं रहा। भूलने
बहुत लगा हूं
मैं”।
राममोहन
से फ़ोन पर
मेरा संपर्क हमेशा
से बना हुआ
था। लेकिन “बीते
हुए दिन” के
लिए हमारी ख़ास
मुलाक़ात हाल ही
में जुहू की
नॉर्थ बॉम्बे सोसायटी
स्थित उनके फ़्लैट
पर हुई। उस दौरान ने
राममोहन ने जितना
हो सका, बीते
दिनों को याद
करते हुए बेलाग
बातचीत की। 2 नवंबर
1929 को अंबाला कैंट में
जन्मे राममोहन के
पिता डॉक्टर साधुराम
शर्मा मूल रूप
से जगाधरी के
रहने वाले थे
और अंबाला में
अपना चिकित्सालय चलाते
थे। राममोहन की
माताजी श्रीमती योगमाया
शर्मा गृहिणी थीं।
राममोहन उनकी इकलौती
संतान थे, हालांकि
पिता की पहली
शादी से भी
राममोहन का एक
बड़ा भाई और
एक बड़ी
बहन थे।
राममोहन
बताते हैं, “अंबाला
के आर्या स्कूल
से मैट्रिक करने
के बाद उसी
स्कूल से जुड़े
जी.एम.एन.कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा
देते ही मैं
मुंबई चला आया
था। ये साल
1949 के मार्च-अप्रैल का
वाकया है। फ़िल्में
देखने का मुझे
बेहद शौक़ था
और मुंबई अपनी
तरफ़ खींचती थी।
लेकिन अंबाला छोड़ने
की सबसे बड़ी
वजह थी इश्क़
में नाकामी और
टूटा हुआ दिल,
जिसकी वजह से
मैं एक पल
के लिए भी
अंबाला में रहने
को तैयार नहीं
था। स्टेशन पहुंचा
तो प्लेटफ़ॉर्म पर
फ़्रण्टियर मेल खड़ी
नज़र आयी, सो
उसी पर सवार
हो गया। बड़ौदा
पहुंचते पहुंचते बिना
टिकट पकड़े जाने
का डर इस
क़दर हावी हुआ
कि ट्रेन के
रूकते ही उतरा
और जब तक
टिकट लेकर वापस
आता, ट्रेन छूट
चुकी थी। बड़ौदा
से मुंबई सेंट्रल
तक का सफर
मैंने अगली ट्रेन
से तय किया”।
राममोहन
के एक परिचित
और अंबाला के
ही रहने वाले
महेश उप्पल मुंबई
सेंट्रल के पास
ही मौजूद “फेमस
आर्ट स्टूडियो” में
चित्रकार की नौकरी
करते थे और
रहते भी स्टूडियो
में ही थे।
राममोहन ने क़रीब
2 महिने महेश उप्पल
के साथ रहकर
गुज़ारे। राममोहन के
मुताबिक़ वो उस
दौरान रोज़ाना आसपास
के इलाक़ों दादर
और महालक्ष्मी में
मौजूद “रंजीत मूवीटोन”
और “फ़ेमस स्टूडियो”
जैसे फ़िल्म स्टूडियोज़
के चक्कर काटते
थे। कभीकभार उन
स्टूडियोज़ में घुसने
के लिए दरबान
को रिश्वत भी
देनी पड़ती थी।
2 महिने बाद उन्हें
महेश उप्पल का
स्टूडियो छोड़ना पड़ा
तो वो रहने
के लिए विले
पारले चले आए।
राममोहन
कहते हैं, एक
रोज़ किसी ने
उन्हें जगदीश सेठी
से मिलने की
सलाह दी। जगदीश
सेठी उस ज़माने
के जानेमाने अभिनेता
और निर्माता-निर्देशक
थे। राममोहन जगदीश सेठी
के पैडर रोड
स्थित घर पर
जाकर उनसे मिले।
जगदीश सेठी राममोहन
से बेहद प्रभावित
हुए और बकौल
राममोहन, “मैंने उनका
ऐसा पल्ला पकड़ा
कि उस रोज़
के बाद मैं
उनके साथ-साथ
नज़र आने लगा।
कई फ़िल्मों में
बेहद छोटी-छोटी
भूमिकाओं से मेरे
अभिनय जीवन की
शुरूआत हुई। जगदीश
सेठी द्वारा निर्देशित
फ़िल्म “इंसान” में
पहली बार मुझे
एक अच्छी भूमिका
मिली"।
साल
1952 में बनी फ़िल्म “इंसान”
की मुख्य भूमिकाओं
में पृथ्वीराज कपूर,
रागिनी और कमल
कपूर थे। राममोहन
भी इस फ़िल्म
में एक छोटी
सी भूमिका निभा
रहे थे। राममोहन
के मुताबिक, “इस
फ़िल्म के एक
सीन में कमल
कपूर को घुड़सवारी
करनी थी, लेकिन
घुड़सवारी उन्हें आती
नहीं थी। उन्होंने
मुझे अपनी परेशानी
बताई और फिर
जगदीश सेठी से
स्क्रिप्ट में बदलाव
करके घुड़सवारी मुझसे
कराने का आग्रह
किया। ये काम
हालांकि मेरे लिए
भी आसान नहीं
था इसके बावजूद
मैंने इसे चुनौती
समझकर स्वीकार कर
लिया। और थोड़ी
बहुत कोशिशों के
बाद मैं कामयाब
भी हुआ। मेरे
काम से जगदीश
सेठी इतने ख़ुश
हुए कि उन्होंने
न सिर्फ़ फ़िल्म
“इंसान” में मेरी
भूमिका बढ़ाई बल्कि
वादा किया कि
भविष्य में वो
मुझे और भी
बेहतर भूमिकाएं देंगे”।
जगदीश
सेठी ने अपना
वादा निभाते हुए
साल 1952 में ही
बनी फ़िल्म “जग्गू”
में राममोहन को
सहनायक की भूमिका
दी। इस फ़िल्म
की मुख्य भूमिकाओं
में कमल कपूर
और श्यामा थे।
राममोहन कहते हैं,
“फिल्म “जग्गू” की
कामयाबी ने मेरे
लिए रास्ते आसान
कर दिए। अगले
कुछ सालों में
मैंने “श्री चैतन्य
महाप्रभु” (1953), “पेंशनर” (1954), “होटल”, “लाल-ए-यमन” (दोनों 1956), “देवर
भाभी”, “मिस 58”, “नाईट
क्लब”, “राजसिंहासन” (सभी
1958), “भगवान और शैतान”, “चाचा
ज़िंदाबाद”, “दो बहनें”, “टीपू
सुल्तान” (सभी 1959), “अंगुलिमाल”,
“बहादुर लुटेरा”, “चोरों
की बारात”, “काला
आदमी” और “मिस्टर
सुपरमैन की वापसी”
(सभी 1960) जैसी फ़िल्मों
में अहम भूमिकाएं
निभायीं।
बतौर
नायक या सहनायक
तो राममोहन को ज़्यादा
मौक़े नहीं मिल
पाए लेकिन बहुत
जल्द वो खलनायक
और आगे चलकर
चरित्र अभिनेता के
तौर पर पहचाने
जाने लगे। 60 सालों
के अपने करियर
के दौरान राममोहन
ने “हरियाली और
रास्ता”, “मेरे
हुज़ूर”, “तक़दीर”, “शोर”,
“किताब”, “जियो तो
ऐसे जियो”, “अंगूर”,
“सावन को आने
दो”, “शान”, “नदिया
के पार”, “बंटवारा”,
“ग़ुलामी”, “रंगीला” और
“कोयला” सहित क़रीब
240 फ़िल्मों और “मिर्ज़ा
ग़ालिब”, “तारा”, “शतरंज”,
“संसार”, “बहादुर शाह
ज़फ़र”, “ये दिल्ली
है” और “महाभारत”
जैसे 15 टेलिविज़न धारावाहिकों
में अभिनय किया।
इसके साथ ही
4 साल “सिने आर्टिस्ट
एसोसिएशन” के उपाध्यक्ष
और 6 साल महासचिव
पद पर रहने
के अलावा वो
सिनेमा से जुड़े
लोगों के हित
में कार्यरत विभिन्न
एसोसिएशनों में भी
सक्रिय रहे।
तीन बेटों और एक बेटी के पिता राममोहन पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से पूरी तरह से निवृत्त होने के बाद अब पिछले कुछ समय से सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे हैं। उनकी विवाहिता बेटी दिल्ली में रहती है और उनकी पत्नी, बड़ा और छोटा बेटा मुंबई में और मंझला बेटा अमेरिका में हैं। दोनों बड़े बेटों का अपना व्यवसाय है और छोटा बेटा एयर इंडिया में पायलट है। ये पूछे जाने पर कि आपके बेटी-बेटों में से कोई भी सिनेमा के क्षेत्र में क्यों नहीं गया, राममोहन हंसते हुए कहते हैं, “इस दुनिया की उठापटक को इतना क़रीब से देख लेने के बाद इसके प्रति आकर्षण आख़िर रह ही कहां जाता है”?
राममोहन जी का निधन 86 साल की उम्र में 06.12.2015 को मुम्बई में हुआ।
आभार
: बहुमूल्य
मार्गदर्शन
और
सहायता
के
लिए
हम
श्री
हरमंदिर
सिंह
‘हमराज़’,
श्री
हरीश
रघुवंशी,
श्री
बिरेन
कोठारी,
सुश्री
अक्षर
अपूर्वा
और
श्री
एस.एम.एम.औसजा
के
आभारी
हैं।
राममोहन
जी
की
तस्वीरें
उपलब्ध
कराने
के
लिए
हम
श्री
मूल
नारायण
सरदाना
जी
के
आभारी
हैं।
अंग्रेज़ी अनुवाद के संपादन हेतु हम मैत्रीमंथन के विशेष रूप से आभारी हैं।
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Please cover up Dr.Shree Ram Lagoo also.
ReplyDeletethanks.
Sundar lekh.
ReplyDeleteThat's my grandfather. Great article.
ReplyDeleteI am greatful to your effort. I watch nadiya ke paar then i want to know more about mr. Ram mohan. Thank you once again.
ReplyDeletegreat effort ... but he is no more now .. there are many such artists like bob christo etc
ReplyDeleteNice reading, I saw many of his films.
ReplyDeleteHe died on 6th December, 2015.
May his soul rest in peace
बहुत ही अच्छे अभिनेता थे नदिया के पार में ग़ज़ब का अभिनय। आपका आलेख बहुत ही सुंदर तथा जानकारीपूर्ण।
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