Thursday, November 15, 2012

“Ye Zindagi Ke Mele Duniya Me Kam Na Honge” – Wadia Movietone

ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम होंगेवाडिया मूवीटोन

...........................शिशिर कृष्ण शर्मा

साल 1931 भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक क्रांति लेकर आया था जब दर्शकों ने आर्देशीर ईरानी की कंपनीइम्पीरियल मूवीटोनकी बनाई फ़िल्म आलमआरामें चलती-फिरती तस्वीरों को पहली बार बोलते-गाते सुना था।आलमआरासे टॉकी फ़िल्मों का दौर शुरू होते ही कई नई कंपनियां अस्तित्व में आयीं और मुंबई के साथ साथ पुणे, कोल्हापुर, कोलकाता और लाहौर बहुत तेज़ी से फ़िल्म निर्माण का केन्द्र बनकर उभरने लगे थे। जल्द ही पुणे की प्रभात पिक्चर्स, कोल्हापुर कीजयाप्रभाऔर प्रफुल्ल पिक्चर्स, कोलकाता कीन्यू थिएटर्सऔर माडन थिएटर्स, लाहौर की पंचोली आर्ट्स और मुंबई कीरंजीत मूवीटोनऔर बॉम्बे टॉकीज़जैसी कंपनियां उत्कृष्ट फ़िल्मों का निर्माण करके उस दौर की तमाम फ़िल्म-कंपनियों की कतार में सबसे आगे खड़ी हुईं। लेकिन इन सभी  कंपनियों द्वारा ख़ासतौर से साहित्य और समाज से ली गयी कहानियों पर बनाई जा रही फ़िल्मों के उस ज़माने में एकवाडिया मूवीटोनजैसी कंपनी भी थी जो फ़ैंटेसी और स्टंट फ़िल्मों के ज़रिए अपना एक अलग दर्शक वर्ग तैयार करते हुए बहुत तेज़ी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही थी।  

वाडिया मूवीटोनकी बुनियादजमशेदजी बोमनजी होरमसजी (जे.बी.एच.) वाडियाने रखी थी. पारसी परिवार के जे.बी.एच.वाडिया उन मास्टर बिल्डरलवजी वाडियाके वंशज थे जिन्होंने 17वीं सदी में सूरत (गुजरात) से मुंबई आकरईस्ट इंडिया कंपनीके लिए पहला भारतीय पानी का जहाज़ बनाया था। कुछ साल पहले हुई एक मुलाक़ात के दौरान जे.बी.एच.वाडिया के बेटे विंसी वाडिया ने बताया था कि उनके पिता ने अंग्रेज़ी साहित्य और प्राचीनअवेस्ताऔरपहलवीभाषाओं में एम.. करने के बाद कुछ समय सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया  में नौकरी की और फिरदेवारे भाईयोंके साथ मिलकर फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में कूद पड़े।

साल 1928 से 1933 के बीच जे.बी.एच.वाडिया ने 7 साईलेंट फ़िल्मों - ‘सन ऑफ़ रिचउर्फ़वसंतलीला(1928), ‘बॉण्डेजउर्फ़प्रतिज्ञा बंधन(1929), ‘थंडरबोल्टउर्फ़दिलेर डाकू(1931), ‘तूफ़ान मेलऔरलॉयन मैनउर्फ़सिंह गर्जना(दोनों 1932), ‘व्हर्लविंडउर्फ़वैण्टोलियो’  और अमेज़नउर्फ़दिलरूबा डाकू(दोनों 1933) का निर्माण किया। इनमें से आख़िरी दो फ़िल्में उन्होंने अपने छोटे भाई होमी वाडिया के साथ मिलकरवाडिया ब्रदर्सके बैनर में बनाई थीं।

साल 1933 में ही जे.बी.एच.वाडिया और होमी वाडिया नेवाडिया मूवीटोनकी नींव रखकर टॉकी फ़िल्मों का निर्माण शुरू किया। अपने पूर्वज लवजी वाडिया को श्रद्धांजलि-स्वरूप उन्होंने वाडिया मूवीटोनके प्रतीक-चिह्न के तौर परपानी के जहाजकी तस्वीर को चुना। इस बैनर की पहली फ़िल्मलाल--यमनएक फ़ैंटेसी फ़िल्म थी, जिसकी कामयाबी के बाद उन्होंनेबाग--मिसर’, ‘वामन अवतार’, ‘वीर भारत’, ‘ब्लैक रोज़(सभी 1934), ‘देशदीपकऔरनूर--यमन(दोनों 1935) जैसी फ़िल्में बनाईं। और फिर साल 1935 में बनी फ़िल्महंटरवालीने तमाम रेकॉर्ड तोड़ते हुएवाडिया मूवीटोनको कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचा दिया।

होमी वाडिया द्वारा निर्देशित स्टंट फ़िल्म हंटरवालीमें पिछले कुछ समय सेवाडिया मूवीटोनमें बतौर एक्स्ट्रा कलाकार नौकरी कर रही नाडिया को पहली बार हिरोईन के तौर पर प्रस्तुत किया गया था।नाडियाद्वारा किए गए ख़ौफ़नाक़ स्टंट दृश्यों की बदौलत उस ज़माने में देखते ही देखते उनकी अभिनीत स्टंट फ़िल्मों का एक बहुत बड़ा दर्शकवर्ग तैयार हो गया था। नाडिया के हैरतअंगेज़ कारनामों को देखकर उनके प्रशंसकों ने उन्हेंफ़ीयरलेस (निडर) नाडियाके नाम से ऐसा नवाज़ा कि सारी ज़िंदगी उन्हें इसी नाम से जाना जाता रहा।

8 जनवरी 1910 को पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में जन्मी, अंग्रेज़ पिता हरबर्ट इवांस और ग्रीक मां मारग्रेट इवांस की बेटी नाडिया का असली नाममैरीथा। वो महज़ एक साल की थीं जब उनके फ़ौजी पिता परिवार को साथ लेकर ट्रांसफ़र पर मुंबई के नज़दीक स्थित एलिफ़ेंटा टापू की फ़ौजी छावनी में चले आए थे। लेकिन 1914 से 1918 तक चले पहले विश्वयुद्ध के दौरान हरबर्ट और उनके दो फ़ौजी भाई मारे गए। मारग्रेट ने पति की मौत के बाद भारत में ही रहने का फ़ैसला करते हुए मैरी का दाख़िला क्लेयर रोड, मुंबई के एक कॉंवेंट स्कूल में करा दिया। लेकिन साल 1920 में मारग्रेट ने मुंबई छोड़ दिया और मैरी को साथ लेकर वो पश्चिमोत्तर भारत की क्वेटा छावनी में अपने रिश्तेदारों के पास रहने चली गयीं।

साल 1928 में मार्गरेट और मैरी वापस मुंबई चली आयीं। मैरी, जो अब 18 साल की हो चुकी थीं, मुंबई आकर फ़ौज की कैंटीन में सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगीं। साथ ही वो रूसी बैले डांसर मैडम अस्त्रोवा से बैले भी सीखने लगीं जिसके पीछे उनका असली मक़सद अपने बढ़ते वज़न को कम करना था। लेकिन बहुत जल्द मैडम अस्त्रोवा ने उन्हें अपने डांस ग्रुप में शामिल करके नया नाम दिया, ‘नाडा मैरी को ये नाम कुछ ख़ास पसंद नहीं आया और उन्होंने इसे बदलकरनाडियाकर लिया। क़रीब दो सालों तक वो मैडम अस्त्रोवा के डांस ग्रुप के साथ पूरे देश में घूमघूमकर बैले डांस के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती रहीं और फिर साल 1930 में दिल्ली में इस डांस ग्रुप को छोड़कर उन्होंने उस ज़माने की मशहूरज़ारको सर्कसमें नौकरी कर ली। लेकिन सर्कस की ज़िंदगी उन्हें पसंद नहीं आयी तो वो वापस स्टेज शोज़ की दुनिया में लौट आयीं।

स्टेज कार्यक्रमों के दौरान लाहौर में नाडिया की मुलाक़ात साल 1934 में रीगल थिएटर ग्रुप के मैनेजर मिस्टर कांगा से हुई। नाडिया के डांस और हिंदी गानों से प्रभावित होकर कांगा ने उन्हें फिल्मों में काम करने की सलाह दी। नाडिया मुंबई आकरवाडिया भाईयोंसे मिलीं जिन्होंने अपने दोस्त कांगा की सिफ़ारिश पर नाडिया को फ़िल्मदेशदीपकऔरनूर--यमनमें बेहद छोटी-छोटी भूमिकाएं दीं। अपनी तीसरी फ़िल्महंटरवालीमें नाडिया हिरोईन बनीं, जिसकी जबर्दस्त कामयाबी ने सिर्फ उन्हें स्टार बनाया बल्किवाडिया मूवीटोनको भी अपने दौर की अग्रणी फिल्म कंपनियों में ला खड़ा किया।  

साल 1933 से अगले 40 सालों के दौरानवाडिया मूवीटोनके बैनर मेंफ़ौलादी मुक्का’, ‘जय भारत(दोनों 1936), ‘हरिकेन हंसा’, ‘तूफ़ानी टार्जन(दोनों 1937), ‘लुटारू ललना’, ‘तूफ़ान एक्सप्रेस(दोनों 1938), ‘फ़्लाईंग रानी’, ‘जंगल किंग’, ‘पंजाब मेल’, ‘हरिकेन स्पेशल(सभी 1939), ‘हिंद के लाल’, ‘डायमंड क्वीन(दोनों 1940), ‘बंबईवाली(1941), जंगल प्रिंसेस’, ‘रिटर्न ऑफ़ तूफ़ान मेल(दोनों 1942) जैसी कई स्टंट फ़िल्में बनीं। भारत की पहली गीतविहीन फ़िल्मनौजवान(1937), पहली अंग्रेज़ी फ़िल्मकोर्ट डांसर(1941) और पहली सिंधी फ़िल्मएकता’ (1942) के अलावा दिलीप कुमार और नर्गिस की नौशाद द्वारा संगीतबद्ध बेहद कामयाब फ़िल्म मेला’ (1948), तेलुगू फ़िल्मनरनारायण(1937), तमिल फ़िल्मवनराज कर्ज़न(1938) औरभारत केसरी (1939), बांग्ला फ़िल्मराजनर्तकी(1941) और गुजराती फ़िल्मवालो नामोरी(1973) का निर्माण भी वाडिया मूवीटोनके बैनर में ही किया गया था।राजनर्तकीबांग्ला के अलावा हिंदी में भी बनी थी।कोर्ट डांसरफ़िल्मराजनर्तकीका ही अंग्रेज़ी वर्शन थी।

विंसी के मुताबिक़ 1940 के दशक की शुरूआत में जे.बी.एच.वाडिया का रूझान सामाजिक फ़िल्मों की तरफ़ होने लगा था। लेकिन होमी वाडिया स्टंट और फैंटेसी फ़िल्मों के निर्माण की, ‘वाडिया मूवीटोनकी पहचान को बनाए रखना चाहते थे। इस बात को लेकर दोनों भाईयों में मतभेद इतने बढ़े कि होमी नेवाडिया मूवीटोनसे अलग होकर साल 1942 में अपने निजी बैनरबसंत पिक्चर्सकी स्थापना कर ली। इसके बावजूदबसंत पिक्चर्सकी पहली फ़िल्ममौजजहां एक सामाजिक फ़िल्म थी तो होमी के अलग होने के बादवाडिया मूवीटोनके बैनर में बनी पहली फ़िल्ममुक़ाबला’, इस बैनर की पहचान के मुताबिक़ काफ़ी हद तक एक स्टंट फ़िल्म ही थी। ये दोनों ही फ़िल्में साल 1942 में प्रदर्शित हुई थीं।

जे.बी.एच. वाडिया और होमी वाडिया ने साथ मिलकर साल 1933 से 1942 के बीचवाडिया मूवीटोनके बैनर में कुल 43 फ़िल्में बनाई। लेकिन होमी के अलग होने के बाद जे.बी.एच.वाडिया ने परेल के लालबाग़ इलाक़े में स्थितवाडिया मूवीटोनका स्टूडियो किराए पर वी.शांताराम को दे दिया जो उन्हीं दिनों पुणे कीप्रभात पिक्चर्सको छोड़कर मुंबई आए थे। वी.शांताराम ने उस जगह परराजकमलके नाम से अपना नया बैनर और स्टूडियो स्थापित कर लिया। उधर जे.बी.एच.वाडिया नेवाडिया मूवीटोनके बैनर में फ़िल्में बनाना जारी रखा, हालांकि फ़िल्म निर्माण की उनकी गति अब बेहद धीमी हो चुकी थी।    

1943 से अगले 30 सालों में वाडिया मूवीटोन के बैनर में कुल 24 फ़िल्में बनीं।आंख की शर्म’, ‘विश्वास(दोनों 1943), ‘पिया मिलन’, ‘शरबती आंखें(दोनों 1945), ‘रहनुमा(1948), ‘बालम(1949), ‘मगरूर(1950), ‘मदहोश(1951), ‘कैप्टन किशोर(1957), ‘दुनिया झुकती है(1961) जैसी कामयाब फ़िल्में बनाने के बाद साल 1966 मेंवाडिया मूवीटोनके बैनर में पहली रंगीन फ़िल्मतस्वीरबनी, जिसके मुख्य कलाकार फ़ीरोज़ ख़ान और कल्पना और संगीतकार सी.रामचन्द्र थे। साल 1971 में रेखा और प्रेमेन्द्र अभिनीत और चित्रगुप्त द्वारा संगीतबद्धसाज़ और सनम’ ‘वाडिया मूवीटोनके बैनर में बनी आख़िरी हिंदी फ़िल्म थी और फिर साल 1973 में बनी गुजराती फ़िल्म वालो नामोरीके साथ हीवाडिया मूवीटोनइतिहास का हिस्सा बनकर रह गया।

13 सितम्बर 1901 को जन्मे जे.बी.एच.वाडिया का निधन 4 जनवरी 1986 को हुआ। उनके गुज़रने के बाद उनके पोते और विंसी के बेटे रियाद वाडिया नेवाडिया मूवीटोनके गौरवशाली पन्नों को समेटने का बीड़ा उठाया, जिसके तहत उन्होंने अपने दादा की कंपनी से जुड़े कई लोगों का इंटरव्यू करने के साथ-साथ फ़ीयरलेस नाडिया पर एक डॉक्यूमेंटरी भी बनाई। लेकिन साल 2003 में महज़ 36 साल की उम्र में रियाद भी गुज़र गए। और इसके साथ ही भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुल 67 फ़िल्मों का योगदान देने वाले मशहूर बैनरवाडिया मूवीटोनके फिर से ज़िंदा होने की उम्मीदें भी हमेशा के लिए ख़त्म हो गयीं।

We are thankful to

Mr. D.B. Samant, Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Ms. Aksher Apoorva for the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Ye Zindagi Ke Mele Duniya Me Kam Na Honge” – Wadia Movietone

...........................Shishir Krishna Sharma

The year 1931 of Indian cinema brought in a revolution when the audience heard talking & singing moving images for the first time in Ardeshir Irani’s CompanyImperial Movietones’ film ‘Alamara’. With the advent of the talkie era with Alamara, many new companies came into existence and very soon, other than Mumbai, places like Pune, Kolhapur, Kolkata and Lahore became the centers of film making. And soon enough companies like Pune’s ‘Prabhat Pictures’, Kolhapur’s ‘Jayaprabha’ and ‘Prafull Pictures’, Kolkata’s ‘New Theatres’ and ‘Madan Theatres’, Lahore’s ‘Pancholi Arts’ and Mumbai’s Ranjit Movietoneand ‘Bombay Talkies’ set a high standard of film making thus marking themselves apart from the other film companies of that era. But other than these companies who were mainly concentrated on story lines based on literature and social truths of that era, there was one company viz. Wadia Movietone which was rapidly climbing the ladder of success by creating its own audience base through fantasy and stunt films.

The foundation of Wadia Movietone was laid down by JamshedJi Bomanji Hormasji (J.B.H.) Wadia. Hailing from a Parsi family,  J.B.H.Wadia belonged to the one master builderLuvji Wadias’ bloodline who in the 17th century had come to Mumbai from Surat (Gujarat) to make the first Indian ship for the East India Company. In a rendezvous with J.B.H.Wadia’s son Vinci Wadia, a few years back, he had said that after his father completed his M.A. in English Literature and ancient ‘Avesta’ and ‘Pahelvi’ languages, he worked in the Central Bank Of India for some time and there after he collaborated with the Deware Brothers and jumped into the field of film making.

During the years 1928 to 1933,  J.B.H.Wadia made 7 silent films - ‘Son Of The Rich’ or ‘Vasantleela’ (1928), ‘Bondageor ‘Pratigya bandhan’ (1929), ‘Thunderboltor Diler Daku’ (1931), ‘Toofan MailandLion Manor ‘Sinh Garjana’ (both 1932), ‘Whirlwindor  ‘Vantolio’ and ‘The Amazon’ or ‘Dilruba Daku’ (both 1933). Of these, he made the last two films in collaboration with his younger brother Homi Wadia under the banner of Wadia Brothers.

In the year 1933 itself, J.B.H.Wadia and Homi Wadia laid the foundations of Wadia Movietone’ and started making talkie films henceforth.  As homage to their ancestor Luvji Wadia, they chose to depict a picture of a ship as the logo for ‘Wadia Movietone’. This banner’s first film Laal-e-Yamanwas a fantasy film, and after its success they made many films like  Baag-e-Misar’, ‘Waaman Avtar’, ‘Veer Bharata’, ‘Black Rose’ (all 1934), ‘Desh Deepakand Noor-e-Yaman’ (both 1935). And then their film ‘Hunterwali’, made in the year 1935, broke all box office records and catapulted Wadia Movietone to immense heights of success.

For the very first time Nadia, who had been working at Wadia Movietone as an extra, was presented as the Heroine of the stunt film ‘Hunterwali’ which was directed by Homi Wadia. The impact of the imagery of the dangerous stunts done by Nadia was such that very soon an entirely new audience base for the enacted stunts or as such action films had been created. Seeing Nadia’s astounding exploits onscreen, her fans baptized her as Fearless Nadia, a name that stayed with her throughout her life as her alter identity.

Born on 8th January 1910 in Western Australia’s Perth city, daughter of an English father Herbert Evans and Greek mother Margret Evans, Nadia’s real name was ‘Mary’. She was just a year old when her father who was serving the army moved the whole family to Elephanta Island’s army cantonment near Mumbai on a transfer. But Herbert and his two brothers, who were in the army as well, were killed during the First World War which was fought between 1914 to 1918. After her husband’s death, Margret decided to stay in India and enrolled Mary into a convent school on Clare Road, Mumbai. But in the year 1920, Margret left Mumbai and took Mary with her to live with their relatives in the Quetta cantonment of north-western India.

In 1928, Margret and Mary came back to Mumbai. Mary, who was now 18 years old, on her return to Mumbai started working as a salesgirl in the army canteen.  Also, she started learning Ballet from Russian Ballet dancer Madam Astrova, the real reason being learning ballet was her desire to shed some extra weight. But very soon Madam Astrova included Mary in her dance group and gave her a new name ‘Nada’. Mary wasn’t particularly fond of her new name and hence changed it to Nadia. For almost 2 years she travelled around the country participating in ballet dance programs with Madam Astrova’s dance group and then in the year 1930, in Delhi, she left the dance group to join the then famous Zarco Circus. But she didn’t like the circus lifestyle and thus returned into the world of stage shows.

During one of her stage shows in Lahore in 1934, Nadia met Regal Theatre Group’s manager Mr.Kanga. Impressed by Nadia’s dance and Hindi vocals, Kanga advised her to work in films. On coming to Mumbai, Nadia met the ‘Wadia brothers’ who on the recommendation of their friend Kanga gave Nadia some small parts to play in the films Desh Deepakand Noor-e-Yaman. In her third film Hunterwali Nadia became a heroine, whose enormous success not only made her a big star but also placed Wadia Movietone in the frontline of that era’s film companies.

From 1933 till the next 40 years, Wadia Movietonebanner made many stunt films likeFauladi Mukka’, ‘Jai Bharat’ (both 1936), ‘Hurricane hansa’, ‘Toofani Tarzan’ (both 1937), ‘Lutaru Lalna’, ‘Toofan Express’ (both 1938), ‘Flying Rani’, ‘Jungle King’, ‘Punjab Mail’, ‘Hurricane Special’ (all 1939), ‘Hind Ke Laal’, ‘Diamond Queen’ (both 1940), ‘Bambaiwali’ (1941), ‘Jungle Princess’, ‘Return of Toofan Mail’ (both 1942). Other than India’s first song-less film Naujawan’ (1937), India’s first English filmCourt dancer’ (1941) and first Sindhi film Ekta’ (1942), the very famous film ‘Mela’ (1948) starring Dilip Kumar and Nargis and music given by Naushad was made under the banner of ‘Wadia Movietone’ along with many other landmark films like  Telugu filmNar-Narayan’ (1937), Tamil filmsVanaraja Karzan’ (1938) and Bharat Kesri’ (1939), Bangla filmRajnartaki’ (1941) and Gujrati filmValo Namori’ (1973). Other than Bengali, Rajnartakiwas also made in Hindi. The film ‘Court dancer’ was filmRajnartakis’ English version.

According to Vinci, in the beginning of the 1940’s decade, J.B.H.Wadia had started preferring films with a social storyline. But Homi Wadia wanted to maintain Wadia Movietones’ image of making stunt and fantasy films. This ideological difference escalated to such a huge level that eventually Homi left Wadia Movietone and laid the foundations of his own banner Basant Pictures. But despite the differences, Basant Picturess’ first film Maujwas a social film and Wadia Movietones’ first film made under the banner after Homi’s departure was Muqabla, which keeping with the banners image was a stunt film. Both these films were released in the year 1942.

From 1933 to 1942, J.B.H. Wadia and Homi Wadia, together, had made a total of 43 films under the banner of Wadia Movietone.  But after his split from Homi, J.B.H.Wadia gave the Wadia Movietone studio situated in Parel’s Lalbaug area on rent to V.Shantaram who had recently left Pune’s Prabhat Pictures and had come to Mumbai. V.Shantaram founded his own banner and studio called Rajkamal in its place. J.B.H.Wadia did keep making films under the banner of Wadia Movietone, however his speed of churning out films had greatly tapered.

From 1943 till the next 30 years a total of 24 films were made under the banner of Wadia Movietone. After making many successful films like Aankh Ki Sharm’, ‘Vishwaas’ (both 1943), ‘Piya Milan’, ‘Sharbato Ankhein’ (both 1945), ‘Rehnuma’ (1948), ‘Baalam’ (1949), ‘Maghroor’ (1950), ‘Madhosh’ (1951), ‘Captain Kishore’ (1957), ‘Duniya Jhukti Hai’ (1961),  in the year 1966Wadia Movietone’ made its first colour filmTasweer which starred Feroze Khan and kalpana and its composer was C.Ramchandra.  Featuring Rekha and Premendra and composed by Chitragupt, 1971’s Saaz Aur Sanam was the last hindi film to be made under the banner of Wadia Movietone and then with 1973’s Gujarati film Valo NamoriWadia Movietone became a part of history.

Born on 19th September 1901, J.B.H.Wadia passed away on 4th January 1986. After his death his grandson i.e. Vinci’s son Riyad Wadia took up the mammoth task of acknowledging the glorious years of Wadia Movietone wherein he interviewed many people associated with his grandfather’s company and also made a documentary on Fearless Nadia. But in 2003, merely 36 years old Riyad also passed away. And just like that the hopes of resurrection of the banner Wadia Movietone which contributed 67 films to the history of Indian cinema were lost forever.

4 comments:

  1. Shishir Ji

    Thank you very much for this well informative writing on the history of Wadia Brothers. This institution has made great contribution in the development of Indian sub continent film industry. One aspect which I would like to add that Homi Wadia was signatory and founder member of Indian Motion Pictures Production Association. Homi also married Nadia after their long association finally in 1960.

    Regards

    Pashambay Baloch
    Karachi Pakistan

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  2. thanks for the encouraging comment sir...homi wadia n nadia's issue post 'wadia movietone' is intentionally not touched as the same would be mentioned in 'basant pictures' write up later...

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  3. Shishir Ji

    I today again visited Wadia Brothers write-up. I think JBH and Homi photos are wrongly captioned vice versa. Please look at it.

    Pashambay Baloch
    Karachi

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  4. @Pashambey Baloch ji : sir, pictures of wadia brothers are rightly captioned...homi's picture is cropped from his picture with his wife nadia which was provided to me by j.b.h.'s son vincy wadia...the original one will be used with the forthcoming 'basant pictures' write up.

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