Tuesday, June 12, 2012

“Holi Aai Re Kanhai Rang Chhalke Suna De Zara Bansuri” – Sitara Devi

होली आयी रे कन्हाई रंग छलके सुना दे ज़रा बांसुरी” – सितारा देवी

                               .........शिशिर कृष्ण शर्मा

कत्थक का ज़िक़्र होते ही जो पहला नाम ज़हन में उभरता है वो है सितारा देवी का। ये कहना भी ग़लत नहीं होगा कि सितारा देवी और कत्थक नृत्य एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां तक सवाल है आम लोगों का, तो सितारा देवी का नाम भले ही उनके लिए जाना-पहचाना हो, लेकिन इस बात से वो शायद ही वाक़िफ़ होंगे कि तीस के दशक के आख़िर में सितारा देवी हिंदी सिनेमा में वाकई एक सितारा अभिनेत्री बनकर उभरी थीं। चालीस के दशक में बतौर नायिका उन्होंने कई फ़िल्में कीं, कुछ फ़िल्मों में वो खलनायिका के रूप में भी नज़र आयीं, और फिर पचास के दशक के उत्तरार्ध में अभिनय को अलविदा कहकर वो पूरी तरह से कत्थक नृत्य की सेवा में जुट गयीं। 90 साल की हो चुकी सितारा देवी के शरीर पर भले ही उम्र का असर दिखने लगा हो लेकिन कत्थक के प्रति समर्पण और जोशो-ख़रोश को लेकर वो आज भी युवाओं से पीछे नहीं हैं।

मूलत: बनारस के रहने वाले मिश्रा परिवार की सितारा देवी के ख़ानदान में पिछले पांच सौ बरसों से मंदिरों में गाने-बजाने की परंपरा रही है। नेपाल और नेपाल के राजपरिवार के साथ मिश्रा ख़ानदान का बेहद क़रीबी रिश्ता रहा है। सितारा देवी के दादा पंडित रामदास मिश्रा नेपाल नरेश के दरबार में राज-गायक थे। उनकी दादी और मां मत्स्यकुमारी भी नेपाल की ही रहने वाली थीं इसलिए वो ख़ुद कोआधी-नेपालीमानती हैं। सितारा देवी के नानामाईला पंडित उपाध्यायनेपाल के राजगुरू थे तो पिता आचार्य पंडित सुखदेव महाराज एक उच्चकोटि के कवि, गायक और कथावाचक थे। सुखदेव महाराज ने गीत-संगीत और नृत्य की ख़ानदानी परंपरा को सिर्फ़ नयी ऊंचाईयों पर पहुंचाया था बल्कि कथावाचन के साथ भाव-प्रदर्शन अर्थात कथानृत्य को लेकर कई प्रयोग भी किए थे। सितारा देवीकत्थकशब्द कोकथानृत्यका बिगड़ा हुआ रूप (अपभ्रंश) मानती हैं। वो कहती हैं, इस नृत्य का सही नामकथानृत्यहै क्योंकि इसकी उत्पत्ति मंदिरों में कथावाचन के दौरान किए जाने वाले भाव-प्रदर्शन से हुई थी।

उस ज़माने में अच्छे घरों की लड़कियों के लिए नृत्य और गायन वर्जित था और इसे सिर्फ़ तवायफ़ों का काम माना जाता था। मिश्रा ख़ानदान में भी इस नियम का सख़्ती से पालन किया जाता था। इसीलिए जब सुखदेव महाराज ने अपने प्रयोगों के प्रचार-प्रसार की उत्कट इच्छा के चलते अपनी बेटियों को नृत्य और गायन की शिक्षा देनी चाही तो उन्हें रिश्तेदारों और बिरादरी के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। सुखदेव महाराज ने हार नहीं मानी तो उनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। मजबूरन उन्हें अपना मुहल्ला छोड़कर बनारस में हीकबीर चौराचले जाना पड़ा जहां उन्होंने एक संगीत विद्यालय खोल लिया। फिर कुछ समय बाद वो परिवार को साथ लेकर पूर्वी बंगाल की मेमनसिंह रियासत चले गए और राजपरिवार के बच्चों को संगीत सिखाने लगे। ये बीस के दशक के आख़िर का वाक़या है। सितारा देवी का जन्म कोलकाता में सन 1922 के अक्टूबर माह को धनतेरस के दिन हुआ था, हालांकि उनके मुताबिक़ ये साल 1920 या 1921 भी हो सकता है।

सितारा देवी की दोनों बड़ी बहनें अलकनंदा और तारादेवी अपने दौर की जानी-मानी नृत्यांगनाएं थीं। सितारा देवी भी 10 साल की उम्र में मंच पर उतर पड़ी थीं। वाजिद अली शाह के जमाने में मिश्रा ख़ानदान के ही पंडित ठाकुर प्रसाद लखनऊ जा बसे थे। संगीत और नृत्य को लेकर पंडित ठाकुर प्रसाद और उनकी अगली पीढ़ियों के कालका महाराज, बिंदादीन महाराज, शम्भु महाराज, लच्छू महाराज और अब बिरजू महाराज के प्रयोगों पर मुग़ल सभ्यता का असर पड़ा और उनके लखनऊ घराने का मुख्य आधार श्रृंगार रस बन गया जबकि बनारस घराने का मुख्य आधार भक्ति-रस ही रहा। यही वजह है कि बनारस घराने का होने के नाते सितारा देवी ख़ुद को कथा-नृत्यांगना कहलाना पसंद करती हैं।

सितारा देवी बताती हैं, “उस ज़माने में मुंबई में निर्देशक निरंजन शर्मा फिल्मउषाहरणबना रहे थे जिसमें ज़ुबैदा की बहन सुल्ताना बतौर नायिका काम कर रही थी। उस फ़िल्म की एक अन्य भूमिका के लिए वो शास्त्रीय नृत्य जानने वाली एक छोटी लड़की की तलाश में बनारस की तवायफ़ों से मिले। लखनऊ, आगरा, दिल्ली, कोलकाता और लाहौर जैसे शहरों के विपरीत बनारस की ज़्यादातर तवायफ़ें हिंदू थीं। शास्त्रीय नृत्य से चूंकि वो सब अनजान थीं इसलिए तवायफ़ ख़ानदान की ही मशहूर गायिका सिद्धेश्वरी देवी की सलाह पर निरंजन शर्मा मेरे पिता से आकर मिले। हम लोग रहते तो कोलकाता में थे लेकिन अक्सर हमारा बनारस जाना-आना होता रहता था। निरंजन शर्मा ने मुझे पिता के संगीत विद्यालय में नृत्य करते देखा और फ़िल्मउषाहरणकी उस भूमिका के लिए चुन लिया। नतीजतन साल 1933-34 में मैं मुंबई चली आयी। उस वक़्त मेरी उम्र 12-13 बरस की थी।          

उषाहरण को बनने में 6-7 साल लगे और ये फ़िल्म 1940 में प्रदर्शित हुई थी। लेकिन सितारा देवी को काम मिलते देर नहीं लगी। मुंबई पहुंचते ही उन्हेंवसंत मूवीटोनकीवसंतसेना(1934),सागर मूवीटोनकीअनोखी मोहब्बत’, ‘शहर का जादू(दोनों 1934),वेंजिएंस इज़ माईनउर्फ़वैर का बदला’, ‘रेगिस्तान की रानी (दोनों 1935) और मनमोहन देसाई के पिता कीकूभाई देसाई कीपैरामाऊंट फ़िल्म कंपनीकी एक फ़िल्म में नृत्य करने का मौक़ा मिला।शहर का जादूमोतीलाल की पहली फ़िल्म थी जिसमें सितारा की बड़ी बहन तारादेवी ने भी अभिनय किया था। इसके अलावा तारादेवीमत्स्यगंधा’, ‘शाही लकड़हारा’, ‘थीफ़ ऑफ़ इराक़’, वसंतसेना (सभी 1934) जैसी फ़िल्मों में भी नज़र आयी थीं। मशहूर नर्तक गोपीकृष्ण इन्हीं तारा देवी के बेटे थे। उधर सितारा देवी की सबसे बड़ी बहन अलकनंदा ने भीसूर्यकुमारी(1933),एक्ट्रेस’, ‘सिनेमा क्वीन’, ‘ख़ाक़ का पुतला’, ‘नवभारत(सभी 1934),लाल चिट्ठी’, ‘मैजिक हॉर्सऔरप्रेम पुजारी (सभी 1935) जैसी फ़िल्मों में अभिनय किया था।     

(वरिष्ठ फ़िल्म इतिहासकार श्री डी.बी.सामंत के अनुसार तारा देवी नेमत्स्यगंधा और शाही लकड़हारा के अपने सहकलाकार और उस जमाने के मशहूर अभिनेतामारूतिराव पहलवानसे शादी की थी और कुछ सालों बाद वो दोनों मुंबई छोड़कर धुले शहर में जा बसे थे।)

सितारा देवी को बतौर अभिनेत्री पहला मौक़ा मिला थासागर मूवीटोनकी साल 1935 में बनी फ़िल्मजजमेंट ऑफ़ अल्लाहउर्फ़अल-हिलालमें, जो महबूब ख़ान की बतौर निर्देशक पहली फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के संगीतकार थे प्राणसुख एम.नायक और मुख्य भूमिकाओं में थे कुमार, सितारा, याक़ूब और इंदिरा। सितारा देवी बताती हैं, “उस जमाने में प्लेबैक शुरू नहीं हुआ था और हमें अपने गाने कैमरे के सामने ख़ुद ही गाने पड़ते थे। मैंने भी ऐसी कई फ़िल्मों में गाने गाए थे।“ ‘कुमार मूवीटोनकीनज़र का शिकार’, ‘गोल्डन ईगल मूवीटोनकीप्रेम बंधन’ ‘ताज प्रोडक्शंसकीज़न मुरीद(सभी 1936),हंस पिक्चर्सकीबेगुनाह’, ‘प्रिंस मूवीटोनकीकलकत्ता का रात’, ‘संगीत फ़िल्म कंपनीकीजीवन स्वप्न’, ‘सागर फ़िल्म कंपनीकीमहागीत(सभी 1937), जनरल फ़िल्म्सकीबाग़बान’, ‘रणजीत मूवीटोनकीप्रोफ़ेसर वुमैन एम.एस.सी.’ (दोनों 1938) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाएं निभाने के अलावा साल 1938 में उन्हें एक बार फिर से महबूब के निर्देशन में काम करने का मौक़ा मिला। 

सागर फ़िल्म कंपनीकी इस फ़िल्मवतनमें सितारा देवी के सह कलाकार थे कुमार, बिब्बो, याक़ूब और माया बनर्जी, संगीतकार थे अनिल बिस्वास और इसमें सितारा देवी ने कुछ गीत भी गाए थे। सागर फ़िल्म कंपनीकी ही अनिल बिस्वास द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म महागीत(1937) मुंबई में बनी वो पहली फ़िल्म थी जिसमें पहली बार प्लेबैक का इस्तेमाल किया गया था, हालांकि प्लेबैक की शुरूआतन्यू थिएटर्स(कोलकाता) की फ़िल्मधूपछांवसे 1935 में ही हो चुकी थी।

साल 1939 में सितारा देवी नेरणजीत मूवीटोनकीनदी किनारे’, ‘सुप्रीम पिक्चर्सकीमेरी आंखेंऔरजनरल फ़िल्म्सकीपति-पत्नीमें मुख्य भूमिकाएं निभाईं तो 1940 में वो रणजीत मूवीटोनकीआज का हिंदुस्तान’, ‘अछूत’, ‘होली’, ‘पागल’, ‘नेशनल स्टूडियोज़कीपूजा’, ‘पॉपुलर फ़िल्म्सकीहैवानऔरन्यू थिएटर्स(कोलकाता) की फ़िल्मज़िंदगीमें अहम भूमिकाओं में नजर आयीं। 

अछूतगौहरजान मामाजीवाला की बतौर अभिनेत्री आख़िरी फ़िल्म थी जिसमें ज्ञानदत्त के संगीत में सितारा ने कांतिलाल और वासंती के साथ मिलकर प्यारेलाल संतोषी का लिखा गीतबंसी बनी बंसीधर की, तुम राधा बनो नट-नागर कीगाया था।हैवानमें सितारा के साथ उनकी दोनों बहनों, अलकनंदा और तारा देवी ने भी अभिनय किया था।

रणजीत मूवीटोनमें सितारा की मुलाक़ात उस दौर की मशहूर गायिका-अभिनेत्री वहीदन से हुई जिन्होंने इस बैनर की प्रोफ़ेसर वुमैन एम.एस.सी., ‘पृथ्वीपुत्र’, ‘रिक्शावाला’, ‘सेक्रेट्री(सभी 1938),ठोकर(1939) औरसागर फ़िल्म कंपनीकी महबूब निर्देशितअलीबाबा(1940) जैसी फ़िल्मों में सिर्फ़ अपने अभिनय, बल्कि शानदार गायन के दम पर भी दर्शकों को अपना दीवाना बना लिया था। 

वहीदन की छोटी बहन ज्योति भी गायिका-अभिनेत्री थीं जिन्होंनेसागर मूवीटोनकीकॉमरेड्स’, ‘एक ही रास्ता(दोनों 1939),नेशनल स्टूडियोज़की महबूब निर्देशितऔरत’, ‘संस्कार(दोनों 1940) जैसी फ़िल्मों में काम किया था। कुछ ही दिनों बाद वहीदन बीमार होकर वापस अपने मायके फतेहाबाद लौट गयीं जहां उनका देहांत हो गया। उधर ज्योति ने गायक-अभिनेता जी.एम.दुर्रानी से शादी कर ली। वहीदन की मौत के वक़्त उनकी बेटी निम्मी सात साल की थीं, जो आगे चलकर हिंदी सिनेमा की स्टार अभिनेत्री बनीं। सितारा देवी आज भी वहीदन को बहुत इज़्ज़त के साथ याद करती हैं और बताती हैं कि ज्योति को ये नाम उन्होंने ही दिया था।

चालीस के दशक की शुरूआत में सितारा देवी बतौर नायिकासिरको प्रोडक्शंसकी फ़िल्मस्वामी(1941) में नज़र आयीं जिसमें उनके नायक थे पी.जयराज। कारदार के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में सितारा देवी ने एक सोलो के अलावा राजकुमारी और ख़ान मस्ताना के साथ कुछ युगलगीत भी गाए थे। 1942 में वोरणजीत मूवीटोनकीधीरजऔरदुखसुखमें बतौर नायिका नज़र आयीं।

साल 1938 में बनी फ़िल्मबागबानमें सितारा देवी के साथ काम कर चुके मशहूर अभिनेता नज़ीर ने अभिनेत्री यास्मीन के साथ मिलकरहिंद पिक्चर्सके बैनर में पहली फ़िल्मसंदेशा(1940) बनाई थी। सितारा देवी के अनुसार यास्मीन जो मूल रूप से यहूदी थीं, अचानक बहुत बीमार हो गयीं। नतीजतनहिंद पिक्चर्सके बैनर में फ़िल्म-निर्माण का काम ठप्प हो गया।

(श्री डी.बी.सामंत के अनुसार यास्मीन नज़ीर की पत्नी थीं, हालांकि सितारा देवी इस बात की जानकारी होने से इंकार करती हैं।)    

क़रीब दो साल बादहिंद पिक्चर्सको पुनर्जीवित करने का फैसला लेते हुए नज़ीर ने सितारा देवी को अपनी कंपनी में पार्टनर बनने का प्रस्ताव दिया जिसे सितारा देवी ने स्वीकार कर लिया। नज़ीर के साथ मिलकर उन्होंनेहिंद पिक्चर्सके बैनर में 5 फ़िल्मेंकलयुग’, ‘सोसायटी(दोनों 1942),आबरू, ‘छेड़छाड़औरसलमा(सभी 1943) बनायीं और इन सभी में नायिका की भूमिका भी की। कलयुग’, ‘सोसायटी, आबरू और छेड़छाड़ में सितारा देवी के नायक नज़ीर थे तोसलमामें ईश्वरलाल। उधर 1943 में हीसिल्वर फ़िल्म्सकी, नज़ीर के निर्देशन में बनी फ़िल्मभलाईमें सितारा देवी पृथ्वीराज कपूर की नायिका बनीं। सितारा देवी कहती हैं, “हिंद पिक्चर्स के प्रोडक्शन की ज़िम्मेदारी नज़ीर के भांजे के.आसिफ़ के ज़िम्मे थी जो मेरे हमउम्र और अच्छे दोस्त थे। बतौर पार्टनर पांच फ़िल्में बनाने के बावजूद कंपनी से मुझे एक भी पैसा नहीं मिला तो मेरा ग़ुस्सा बढ़ने लगा। उधर के.आसिफ भी कुछ वजहों से अपने मामा नज़ीर से नाराज़ थे। ऐसे में हमें एक-दूसरे का सहारा मिला, हम अपना दुख-दर्द बांटने लगे, हमारी नज़दीकियां बढ़ती चली गयीं और फिर 1944 में हमने सिविल मैरिज कर ली।

(सितारा देवी के कथन के विपरीत श्री डी.बी.सामंत कहते हैं कि के.आसिफ़ काहिंद पिक्चर्ससे कोई सीधा रिश्ता नहीं था, सिवा इसके कि वो नज़ीर के भांजे थे। नज़ीर को के.आसिफ़ का रोज़-रोज़ स्टूडियो में चले आना पसंद नहीं था इसलिए के.आसिफ़ के लिए उन्होंने दादर टी.टी. में दर्जी की दुकान खुलवा दी थी।)

सितारा देवी के अलग हो जाने के बाद भीहिंद पिक्चर्सके बैनर मेंलैला मजनूं(1945),मां बाप की लाज’, ‘वामिक अज़रा(दोनों 1946),आबिदा’, ‘मलिका’, ‘यादगार(सभी 1947) औरघरबार(1948) जैसी फ़िल्में बनीं, जिनमेंमलिकाऔरयादगारके अलावा बाक़ी सभी फ़िल्मों में नज़ीर की नायिका स्वर्णलता थीं। नज़ीर ने सिख परिवार की स्वर्णलता से शादी की और बंटवारे के बाद वो दोनों पाकिस्तान चले गए।

1942 में बनीनेशनल स्टूडियोज़की फ़िल्मरोटीमें सितारा देवी को बतौर नायिका एक बार फिर से महबूब के निर्देशन में काम करने का मौक़ा मिला। बड़े बजट और बड़ी स्टारकास्ट की इस फ़िल्म में चन्द्रमोहन, सितारा देवी और शेख मुख़्तार के अलावा अख़्तरी फ़ैज़ाबादी ने भी एक अहम भूमिका निभायी थी। आगे चलकर सितारा देवी ने जहां पूरी तरह से कत्थक को अपनाया, वहीं अख़्तरी फैज़ाबादीबेगम अख़्तरके नाम से सुगम-गायन के क्षेत्र में बुलंदियों पर पहुंचीं। फ़िल्मरोटीमें सितारा देवी ने अनिल बिस्वास के संगीत में तीन सोलो गीत भी गाए थे।

साल 1943 में सितारा देवी एक बार फिर सेरणजीत मूवीटोनकी फ़िल्मअंधेरामें नज़र आयीं। इस फ़िल्म में उनके नायक थे अरूण। मशहूर अभिनेता गोविंदा इन्हीं अरूण के बेटे हैं। फ़िल्म अंधेरामें सितारा देवी ने ज्ञानदत्त के संगीत में एक सोलो, के.सी.डे के साथ एक और अरूण के साथ दो युगल गीत गाए थे। 

1943 में ही महबूब ने निर्माता बनने का फ़ैसला करते हुएमहबूब प्रोडक्शंसकी स्थापना की। इस बैनर की पहली फ़िल्म थीनजमाजिसमें सितारा के सहकलाकार थे अशोक कुमार, वीना, मिज्जन कुमार और याक़ूब। रफ़ीक़ गज़नवी के संगीत में सितारा देवी ने इस फ़िल्म में एक सोलो, पारूल घोष के साथ एक और अशोक कुमार के साथ दो युगल गीत गाए थे।

साल 1944 में सितारा नेप्रभात फ़िल्म कंपनी(पुणे) की फ़िल्मचांदमें अभिनय तो किया ही, इस फ़िल्म में दो सोलोगीत भी गाए। फ़िल्मचांदको इसलिए भी याद किया जाएगा क्योंकि भारतीय सिनेमा के इतिहास की पहली संगीतकार जोड़ीहुस्नलाल भगतरामने इसी फ़िल्म से अपना करियर शुरू किया था। अभिनेत्री बेगमपारा की भी ये पहली फ़िल्म थी। 

1945 में सितारा देवी, अभिनेत्री नंदा के पिता मास्टर विनायकप्रफुल्ल पिक्चर्सकी फ़िल्मबड़ी मांमें नज़र आयीं। मास्टर विनायक द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में नूरजहां, ईश्वरलाल, याक़ूब और सितारा देवी के अलावा लता मंगेशकर ने भी सिर्फ़ अभिनय किया था, बल्कि दत्ता कोरगांवकर के संगीत में खुद पर फ़िल्माए गए दो गीत भी गाए थे। 1945 में ही सितारा देवीअत्रे पिक्चर्सकीपरिंदेऔरफ़ेमस फ़िल्म्सकीफूलमें नज़र आयीं।फूलउनके शौहर के.आसिफ़ के निर्देशन में बनी पहली फ़िल्म थी जिसमें सितारा के अलावा वीना, पृथ्वीराज कपूर, सुरैया, याक़ूब और मजहर ख़ान ने मुख्य भूमिकाएं निभायी थीं। इस फ़िल्म के संगीतकार थे ग़ुलाम हैदर।

40 के दशक के उत्तरार्ध में सितारा देवी का झुकाव पूरी तरह से कत्थक की तरफ़ हो चला था। गायन और अभिनय से उन्होंने खुद को करीब क़रीब अलग ही कर लिया था, हालांकि कभी कभार वो इक्का-दुक्का फ़िल्में करती ज़रूर रहीं। 1947 में सितारा देवी नेसनराईज़ पिक्चर्सकी फ़िल्मअमर आशामें अभिनय किया और साथ ही गाने भी गाए। क़रीब दो साल बाद 1949 में वोलिबर्टी आर्ट प्रोडक्शंसकी फ़िल्मलेखमें सुरैया और मोतीलाल के साथ, तो 1950 मेंहिंदुस्तान चित्रकी फ़िल्मबिजलीमें नज़र आयीं। 1951 में उनके शौहर के.आसिफ़ नेके.आसिफ़ प्रोडक्शंसके बैनर में बतौर निर्माता अपनी पहली फ़िल्महलचलबनाई जिसमें सितारा देवी ने दिलीप कुमार और नरगिस जैसे उस दौर के बड़े सितारों के साथ काम किया। इस फ़िल्म में सितारा देवी के लिए प्लेबैक लता मंगेशकर ने दिया था। साल 1957 में बनी चेतन आनंद की जयदेव द्वारा संगीतबद्धअंजलिसितारा देवी की बतौर अभिनेत्री आख़िरी फ़िल्म थी जिसमें उनके सहकलाकार थे चेतन आनंद, निम्मी और शीला रमानी। उसी साल में बनी महबूब ख़ान की फ़िल्ममदर इण्डियाके गीतहोली आयी रे कन्हाई रंग छलकेमें वो कुमकुम के साथ नृत्य करती नजर आयी थीं।          

मदर इंडियासितारा देवी की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई जिसके बाद उन्होंने ख़ुद को पूरी तरह से नृत्य साधना में डुबो दिया। दुनिया के कई देशों में उन्होंने कत्थक के कार्यक्रम पेश किए। के.आसिफ़ और उनके बीच काफ़ी पहले ही दूरियां पैदा हो चुकी थीं। इसकी वजहों का ख़ुलासा करते हुए सितारा देवी बताती हैं, ‘वैसे तो के.आसिफ़ बेहद ही शरीफ़, ज़हीन और तरक़्क़ीपसंद इंसान थे। मेरा ख़्याल भी पूरा रखते थे। लेकिन जिस बात को मैं बर्दाश्त नहीं कर पायी, वो थी उनकी रंगीनमिज़ाजी। हमारी शादी के 2-3 साल बाद ही उन्होंने लाहौर जाकर एक और शादी कर ली थी। 1950 के दशक मेंमुगलेआज़मशुरू की तो उस फ़िल्म में एक अहम भूमिका निभा रहीं निगार सुल्ताना से उन्होंने तीसरी शादी कर ली। मजबूरन कानूनी तौर पर उनकी पत्नी होते हुए भी मुझे उनसे अलग होना पड़ा।

साल 1958 में कार्यक्रम के सिलसिले में मैं पूर्वी अफ़्रीका के दारेस्सलाम शहर गयी थी जहां कई गुजराती परिवार बसे हुए थे। हमारा ठहरने का इंतज़ाम भी एक गुजराती परिवार में ही था। उस परिवार के प्रताप बारोट के साथ हुई मेरी दोस्ती कुछ समय बाद शादी में बदल गयी। प्रताप बारोट, अपने दौर की मशहूर गायिका कमल बारोट और फ़िल्म डॉन के निर्देशक चंद्रा बारोट के भाई हैं। पूर्वी अफ़्रीका में ब्रिटिश राज ख़त्म हुआ तो तमाम भारतीयों की तरह बारोट परिवार को भी देश छोड़ना पड़ा और प्रताप बारोट, जो ब्रिटिश एयरवेज़ में इंजीनियर थे, लंदन जाकर बस गए। वो आज भी लंदन में ही रहते हैं, हालांकि 1970 में प्रताप बारोट से भी मेरा अलगाव हो गया था। हमारा इकलौता बेटा रंजीत बारोट मुंबई में ही रहता है और संगीत के क्षेत्र से जुड़ा हुआ एक बड़ा नाम है। उधर के.आसिफ़ का मन तीसरी शादी से भी नहीं भरा। 1960 के दशक में उन्होंने गुरूदत्त को लेकर फ़िल्मलव एंड गॉडशुरू की और उन्हीं दिनों दिलीप कुमार की छोटी बहन अख़्तर से चौथी शादी कर ली। इसे लेकर दिलीप कुमार आज तक अख़्तर और के.आसिफ को माफ़ नहीं कर पाए हैं।

साल 1964 में गुरुदत्त गुज़रे तो फ़िल्मलव एंड गॉडभी अटक गयी। कुछ सालों बाद के.आसिफ़ ने गुरूदत्त की जगह संजीव कुमार को लेकर नए सिरे से शूटिंग शुरू की। सितारा देवी कहती हैं, “9 मार्च 1971 को मुंबई के षण्मुखानंद हॉल में मेरा कार्यक्रम था। रात के 2 बजे घर पहुंचने के बाद मुझे पता चला कि के.आसिफ नहीं रहे। वो संजीव कुमार से मिलने गए थे कि शाम क़रीब 6 बजे संजीव कुमार के घर पर ही बैठे-बैठे अचानक गिर पड़े और उसी वक़्त उनका देहांत हो गया। उनकी उम्र महज़ 48 साल थी। उनके गुज़रने के बाद पत्नी होने के नाते मैंने भी अपने स्तर पर पूरे हिंदू विधि-विधान सेशैयादानजैसी मृत्यु के बाद की तमाम रस्में अदा कीं।

पद्मश्री’, ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’, ‘खैरागढ़ विश्वविद्यालय की डॉक्ट्रेट’, ‘कालिदास सम्मान’, ‘महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार’, ‘रसिकरंजना’, ‘नृत्यनिपुणाजैसे दसियों सम्मान हासिल कर चुकीं सितारा देवी क़रीब तीन साल पहले तक दक्षिण मुंबई के मशहूर पैडर रोड पर रहती थीं। अब वो अंधेरी (पश्चिम) के सात बंगला इलाक़े के आरामनगर में रहती हैं। 

Sitara Devi tying Rakhi to Dilip Kumar 


दिलीप कुमार की वो मुंहबोली बहन हैं और पिछले कई दशकों लगातार उन्हें राखी बांधती रही हैं।  भारत सरकार के पद्मविभूषण पुरस्कार को ठुकरा चुकीं सितारा देवी कहती हैं, अगर सम्मानित करना ही है तोभारत रत्नसे करो। कथानृत्य के प्रति सारा जीवन समर्पित कर चुकी मुझ जैसी नृत्यांगना के लिएभारत रत्नसे छोटा कोई भी सम्मान, सम्मान नहीं, बल्कि अपमान है।

सितारा देवी का निधन 25 नवम्बर 2014 को मुम्बई में हुआ|


We are thankful to –

Mr. D.B.Samant, Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’  for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. Sanjeev Tanwar for providing Nazeer’s picture.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Akhsher Apoorva for the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Holi Aai Re Kanhai Rang Chhalke Suna De Zara Bansuri” – Sitara Devi

        ………Shishir Krishna Sharma

Whenever Kathak is mentioned the first name to come to mind is Sitara Devi. It won’t be wrong to say that Sitara Devi and Kathak dance complement each other perfectly. Where the common man is concerned, the name Sitara Devi may be a familiar and known name for them but, what they might not be well versed with is that towards the end of 1930’s Sitara Devi actually emerged as a Sitara i.e. Star actress of Hindi cinema. In 1940’s she did many films as a heroine, she also played the vamp in some, and then, in the second half of 1950’s, she bid adieu to acting and completely immersed herself in the service of Kathak dance. It might be that the 90 years old Sitara Devi’s body may have begun to show signs of aging, but, her dedication and zeal for Kathak is still as fresh as that of a youth.

Originally from a Benaras situated Mishra family, Sitara Devi’s clan had a tradition of singing and playing in temples for the last 5 centuries. The Mishra family had very close relations with Nepal and Nepal’s royal family. Sitara Devi’s grandfather Pandit Ramdass Mishra was a royal singer in the Nepalese king’s court. Her grandmother and mother Matsya Kumari hailed from Nepal and hence she considered herself half-Nepalese. Sitara Devi’s maternal grandfather Maila Pandit Upadhyay’ was Nepal’s Rajguru (royal educator & priest) and her father Acharya Pandit Sukhdev Maharaj was a high-ranking poet, singer, and storyteller. Sukhdev Maharaj not only took the family tradition of music and dance to new heights but he also did many experiments with storytelling and emotions, ‘bhāva-Pradarshan’ (display of emotions) namely Kathanritya (Katha: story, Nritya: dance). Sitara Devi considers the word Kathaka corrupted expression (Apabhransha) of Kathanritya. She says, this dance forms true name is Kathanritya because it originated from the emotive performances rendered during story telling in temples.

In those days dancing and singing was forbidden for girls from good families and was considered as the labor of courtesans. This rule was followed very strictly even in the Mishra family. That’s why when Sukhdev Maharaj ardently wanted to announce and publicize his experiments and wanted to train his daughters for the same, he had to face heavy opposition from his relatives and society. When Sukhdev Maharaj refused to give in to social pressures, his family was socially out casted. Inevitably he had to leave his locality and shifted to ‘Kabeer Chaura’ in Benaras itself where he opened a music school. And then after some time he went to East Bengal’s Memansingh homestead with his entire household where he tutored the children of the royal families in music. This was towards the end of 1920’s. Sitara Devi was born in Kolkata in the year 1922 on October on the day of Dhanteras but according to her it could be the year 1920 or even 1921.

Sitara Devi’s elder sisters Alaknanda and Tara Devi, both were well known dancers of their era. At the age of 10 years, Sitara Devi too had joined the stage. In the days of Wajid Ali Shah, Mishra families Pandit Thakur Prasad had migrated to Lucknow. There was a heavy influence of the Moghal culture on the music and dance experiments of Pandit Thakur Prasad and on his successors Kalka Maharaj, Bindadeen Maharaj, Shambhu Maharaj, Lachchhu Maharaj and now Birju Maharaj and thus Shringar Ras (flavor of adornment) became the Lucknow Gharana’s mainstay while Bhakti Ras (flavor of devotion) became the backbone of the Benaras Gharana. This is the reason why inspite of hailing form the Benaras Gharana, Sitara Devi prefers being called katha-nrityangana. (Katha:story, Nrityangana:dancer)   

Sitara Devi tells us, “At that time director Niranjan Sharma was making a movie Usha Haran in Mumbai in which Zubaida’s sister Sultana was cast as a heroine. For another role in the movie he wanted to cast a small girl who knew classical dance and to find such a child they met with the courtesans of Benaras. In contrast to cities like Lucknow, Agra, Delhi, Kolkata and Lahore, the harlots of Benaras were mostly Hindus. Because they were largely unfamiliar with classical dance, on advice of the famous singer Siddheshwari Devi, who herself was from a courtesan’s family, Niranjan Sharma came to meet my father. We used to stay in Kolkata, but we used to visit Benaras quite frequently. Niranjan Sharma saw me dancing in my father’s dance school and chose me for that role in his movieUsha Haran. And subsequently in the year 1933-34, I went to Mumbai. I was 12-13 years old at that time.”  

It took 6-7 years to make Usha Haran and the film was released in 1940. But it didn’t take long for Sitara Devi to get work. Soon after reaching Mumbai she got chance to dance in Vasant Movietone’s’Vasant Sena’ (1934), ‘Sagar Movietones’Anokhi Mohabbat’, ‘Shaher Ka Jadoo’ (both 1934), ‘Vengeance Is MinealiasVair Ka Badla’, ‘Registan Ki Rani’ (both 1935) and Manmohan Desai’s father Kikubhai Desai’s Paramount film Companys one film. Shaher Ka Jadoowas Motilal’s first film wherein Sitara Devi’s elder sister Tara Devi had also acted. Other than this, Tara Devi was also seen in films like Matsyagandha’, ‘Shahi Lakad-hara’, ‘Thief of Iraq’, Vasantsena (all 1934). The famous dancer Gopi Krishna was Tara Devi’s son. Likewise Sitara Devi’s eldest sister Alaknanda also acted in films likeSuryakumari’ (1933), ‘Actress’, ‘Cinema Queen’, ‘Khaak Ka Putla’, ‘Nav Bharat’ (all 1934), ‘Laal Chitthi’, ‘Magic HorseandPrem Pujari’ (all 1935).     

(As per senior film historian Shri D.B.Samant, Tara Devi had married the then famous actor Maruti Rao Pahelwan, also her costar of films like ‘Matsyagandha and Shahi Lakad-hara’, and a few years later the two left Mumbai and settled in Dhule city.)

Sitara Devi got her first break as an actress inSagar Movietones’ movie Judgement of Allahalias ‘Al-Hilal in the year 1935 which was also Mehboob Khan’s first directorial venture. This film’s music director was Pransukh M.Nayak and main leads were Kumar, Sitara, Yaqoob and Indira. Sitara Devi tells us, “at that time playback had not started and we ourselves had to sing songs in front of the camera. I too have also sung many songs like that for my films. Alongwith essaying important roles in films like ‘Kumar Movietones’Nazar Ka Shikar’, ‘Golden Eagle Movietones’ Prem Bandhan’ ‘Taj Productionss’Zan Mureed’ (all 1936), ‘Hans Picturess’Begunaah’, ‘Prince Movietones’ Calcutta Ki Raat’, ‘Sangeet film Companys’ Jeewan Swapn’, ‘Sagar film Companys’ Mahageet’ (all 1937), ‘General Filmss’ Baagbaan’, ‘Ranjit Movietones’ Professor Woman M.Sc.’ (both 1938), in the year 1938 she got a chance to work under Mehboob’s direction once again. This was Sagar film Companys’ filmWatanwhere Sitara Devi’s co-artistes were Kumar, Bibbo, Yaqoob and Maya Banerjee, music director was Anil Biswas and Sitara Devi had sung a few songs in the movie as well. ‘Sagar film Company’s’  film ‘Mahageet’ (1937), composed by Anil Biswas was the first film to be made in Mumbai where playback was used for the first time, although playback had already been introduced in New Theatre – Kolkata’s filmDhoop Chhaonin 1935.

In the year 1939,  Sitara Devi played the main lead inRanjit Movietones’ Nadi Kinaare’, ‘Supreme Picturess’ Meri Ankhein’ andGeneral Filmss’ Pati-Patni, while in 1940 she was seen in important roles in ‘Ranjit Movietone’s’ Aaj Ka Hindustan’, ‘Achhoot’, ‘Holi’, ‘Pagal’, ‘National Studioss’ Pooja’, ‘Popular Filmss’ HaiwaanandNew Theatres-Kolkata’s  filmZindagi. Achhootwas Gauharjaan Mamajiwala’s last film as an actress where under Gyan Dutt’s music, Sitara accompanied with Kantila and Vasanti, sang bansi bani bansidhar ki, tum radha bano nat-nagar ki, which was penned by Pyarelal Santoshi. In the movie Haiwaan, Sitara has acted with both her sisters, Alaknanda and Tara Devi.

At Ranjit Movietone, Sitara met that era’s famous singer-actress Waheedan who had worked under the banner for movies like ‘Professor Woman M.Sc., ‘Prithvi Putra’, ‘Rickshaw-wala’, ‘Secretary’ (all 1938), ‘Thokar’ (1939) and also for Sagar film Companys’ film Alibaba’ (1940) directed by Mehboob where she had won over the audiences with not only her acting but also her brilliant singing. Waheedan’s younger sister Jyoti was also a singer-actress who had worked in movies like Sagar Movietones’ Comrades’, ‘Ek Hi Rasta’ (both 1939), ‘National Studioss’ Mehboob directedAurat’, ‘Sanskaar’ (both 1940). Shortly thereafter Waheedan fell ill and returned to her parents’ house in Fatehabad where she finally died. Meanwhile Jyoti had married singer-actor G.M.Durrani. At the time of Waheedan’s death, her daughter Nimmi was 7 years who later became Hindi Cinema’s star actress. Even today Sitara Devi remembers Waheedan with a lot of respect and tells us that she only had given Jyoti this name.  

In the beginning of 1940’s, Sitara Devi was seen as the heroine in Circo Productionss’ filmSwami’ (1941) where her romantic lead was P.Jairaj. Made under the direction of Kardar, Sitara Devi had sung a solo and a few duets with Rajkumari and Khan Mastana in this film. In 1942 she was the lead actress inRanjit Movietones’DheerajandDukh-Sukh.

Actor Nazeer having costarred with Sitara in 1938’s filmBaagbaan, made Sandesha’ (1940) in partnership with Yasmeen which was the first film under the banner of Hind Pictures. According to Sitara Devi, Yasmeen, who was originally a Jew, suddenly fell very ill. And resultant film-production under the banner of Hind Picturess’ was shut down.

(As per Shri D.B.Samant, Yasmeen was Nazeer’s wife, however Sitara Devi claims to be unknown to this fact.)   

After almost 2 years, Nazeer decided to revive Hind Picturesand offered to make Sitara Devi a partner in his Company which Sitara Devi happily accepted. She made 5 films under the banner of Hind Pictureswith Nazeer, Kalyug’, ‘Society’ (both 1942), ‘Aabroo, ‘ChhedchhaadandSalma’ (all 1943) and played the main lead in all these films. In ‘Kalyug’, ‘Society’, ‘Aabroo and ‘Chhedchhaad’, Sitara Devi’s opposite lead was Nazeer while inSalma, the opposite lead was Ishwarlal. While in 1943 for Silver Filmss’ movie Bhalaai, directed by Nazeer, Sitara Devi played the female lead opposite Prithviraj Kapoor. Sitara Devi says,the production’s responsibility for ‘Hind Pictures’ was given to Nazeer’s sister’s son K.Asif who was of my age and was a good friend of mine. After having made 5 films as a partner, when I didn’t receive a single penny from the Company, I got very upset. There K.Asif was also upset with his uncle (mamoo) Nazeer due to some reasons. In such circumstances we became each other’s support, we started sharing our sorrows, our intimacy increased and then in 1944 we had a civil marriage.

 (In contradiction to Sitara Devi’s story, Shri D.B.Samant says that K.Asif had nothing to do with Hind Picturesother than that that he was Nazeer’s nephew. Nazeer did not like K.Asif’s almost daily presence in the studio and hence he opened a tailoring shop for K.Asif in Dadar TT)

Even after parting ways with Sitara Devi, Hind Picturesmade films likeLaila Majnu’ (1945), ‘Maa Baap Ki Laaj’, ‘Wamik Azra’ (both 1946), ‘Aabida’, ‘Mallika’, ‘Yaadgaar’ (all 1947) andGharbaar’ (1948) under its banner here except in MallikaandYaadgaar,  Nazeer’s heroine in all other films was Swarnlata. Nazeer married Swarnlata who was from a sikh family and after partition, they both shifted to Pakistan.

In the 1942’s National Studioss’ filmRoti, Sitara Devi got a chance to work as a heroine once again under Mehboob’s direction. In this big budget and big starcast film, important roles were played by Chandramohan, Sitara Devi and Sheikh Mukhtar, and Akhtari Faizabadi also essayed an important role. Later, while Sitara Devi completely immersed herself in Kathak, Akhtari Faizabadi crossed many milestones as Begam Akhtarin light-singing. Sitara Devi sung 3 solos for the filmRotiunder the music direction of Anil Biswas.

In the year 1943, Sitara Devi was once again seen inRanjit Movietones’ filmAndhera. Arun was her hero for the film.  The famous actor Govinda is Arun’s son. For the film Andhera’, Sitara Devi, under Gyan Dutt’s music sang one solo and a duet with K.C.Dey and 2 duets with Arun. In 1943 Mehboob decided to become a producer and established his Mehboob Productions. This banner’s first film was Najmawhere Sitara’s co-artistes were Ashok Kumar, Veena, Mijjan Kumar and Yaqoob. Under Rafiq Ghaznavi’s music direction, Sitara Devi sang 1 solo, and 1 duet with Parul Ghosh and 2 duets with Ashok Kumar.

In the year 1944, Sitara Devi acted in ‘Prabhat Film Company (Pune)’s’ film ‘Chand’, she also sung 2 solos for it. Film ‘Chaand’ will also be remembered as the debut film of first music director duo of the history of Indian Cinema ‘Husnlal Bhagatram’ started their career with this film. This was actress Brgumpara’s debut film as well.    

Sitara Devi was also seen in actress Nanda’s father Master Vinayak’s Prafull Picturess’ filmBadi Maain 1945. Directed by Master Vinayak, the film featured Noorjehan, Ishwarlal, Yaqoob and Sitara Devi as well as Lata Mangeshkar who not only acted, but also sang 2 songs, pictured on her, under Datta Korgaonkar’s music. In the same year, 1945, Sitara Devi was seen in Atre Picturess’ ParindeandFamous Filmss’ Phool as well. Phoolwas made under the direction of her husband K.Asif where other than Sitara, actors who essayed main roles were Veena, Prithviraj Kapoor, Suraiya, Yaqoob and Mazhar Khan. The films music director was Ghulam Hyder.  

In the 2nd half of 40’s, Sitara Devi had completely inclined towards Kathak. She had almost separated herself form singing and acting, however she did continue to do the one odd film. In 1947, Sitara Devi acted and sang for Sunrise Picturess’ filmAmar Asha. Almost 2 years later, in 1949 she was seen in Liberty Art Productionss’ filmLekhalong with Suraiya and Motilal, and in 1950 she was seen inHindustan Chitras’ filmBijli. In 1951, her husand K.Asif under the banner ofK.Asif Productions, made his first film Hulchalas a producer in which Sitara Devi worked with big stars like Dilip Kumar and Nargis. Lata Mangeshkar lend her voice in playback for Sitara Devi in this film. Made in the year 1957, Chetan Anand’sAnjali, composed by Jaidev was Sitara Devi’s last film as an actress where her final co-stars were Chetan Anand, Nimmi and Sheela Ramani. In the same year she was seen dancing in a song of Mehboob Khan’s filmMother India, holi aai re kanhai rang chhalke, along with Kumkum.

Mother India’ proved to be Sitara Devi’s last film after which she completely inundated herself in dance. She did Kathak Programs in many countries all over the world. The distance between K.Asif and herself had been growing for a while now. Exposing the reasons behind this growing separation, Sitara Devi says, “In all sense K.Asif was a very decent, intelligent and progressive person. He used to take good care of me. But the thing that I couldn’t tolerate was his colorful nature. 2 – 3 years after our marriage, he went to Lahore and got married once again. He started Mughal-e-Azamin 1950’s and got married for the 3rd time to Nigaar Sultana who was portraying an important role in that movie. And despite being his legal wife, I had to separate from him. In 1958 for a program I had gone to Daressalam city in East Africa where many Gujrati families had settled down. Our accommodation was with one such Gujrati family. After some time, my friendship with Pratap Barot of that family translated into marriage. Pratap Barot is the brother of the then famous singer Kamal Barot and film Don’s director Chandra Barot. As the British raj ended in East Africa, like all Indians, the Barot family was also forced to leave the country and Pratap Barot, who was an engineer with British Airways, went and settled in London. He still lives in London, although in 1970 I separated with Pratap Barot also. Our only son Ranjit Barot lives in Mumbai and is a big name in the music industry. Meanwhile, K.Asif was not satisfied even with his 3rd marriage. In 1960’s he started a new film with Gurudutt, Love and Godand during the same time he married Dilip Kumar’s younger sister Akhtar making it his 4th marriage. Dilip Kumar hasn’t been able to forgive Akhtar and K.Asif for this even today.”

With Gurudutt’s death in the year 1964, the filmLove and Godremained incomplete. Some years later K.Asif replaced Gurudutt with Sanjeev Kumar and started shooting afresh. Sitara Devi says, “On 9 March 1971, I was performing in Mumbai’s Shanmukhanand Hall. At 2 AM after reaching home I got to know that K.Asif is no more.  He had gone to meet Sanjeev Kumar and at around 6 PM at Sanjeev Kumar’s residence he collapsed and died instantly. He was just 48 at that time. After his death, me being his legal wife, I performed the various final rites like “Shaiyadaan” as per Hindu traditions at my level residence.”

Padmshri’, ‘Sangeet Natak Academy award’, ‘Doctorate from Khairagadh University’, ‘Kalidas Samman’, ‘Maharashtra Gaurav Puraskar’, ‘Rasik-Ranjana’, ‘Nritya-Nipuna’, having acquired dozens of such awards, Sitara Devi used to stay at South Mumbai’s famous Peddar Road till around 3 years ago. Today, she stays at Aramnagar in Andheri (West)’s 7 bunglows area.  She is Dilip Kumar’s adopted sister and has been regularly tying him a Rakhi for the last few decades. Having shunned the Government of India’s ‘Padm-Vibhooshan’ award, Sitara Devi says, if you want to honor me then do it with a Bharat Ratan. I have dedicated my entire life to Katha-nritya, and for a dancer like me, any honor other than a Bharat Ratanis not an honor but an insult.

Sitara Devi died in Mumbai on 25 November 2014. 

4 comments:

  1. सिताराजी के अनन्य आलेख के लिये बधाई।यह जानकर खुशी हुई की उन्होंने 'सागर'की भी कुछ फिल्में की है।
    उनको बोलते हुए देखना अपने आपमें एक अनुभव है।

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  2. सिताराजी की सितारों जैसी दास्तान पेश करने के लिये बधाई। पिछले साल एक कार्यक्रम में उनसे मुलाक़ात हुई थी। अदभुत ऊर्जा है उनमें।
    -देवमणि पाण्डेय (मुम्बई)

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  3. In film Roti (1942) there's a song 'Sajna sanjh bahi'. Some people say that Sitaraji has sung that song while some disagree. What's the truth?

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  4. thanx for putting such a nice informative blog. is there any link for the film where all three sisters acted?

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